आइए दुर्लभ पक्षियों की दुनिया में, जानिए हिमालय के शिखर से कौन आया है
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में शोर-शराबे से बिल्कुल दूर रहने वाले दुलर्भ पक्षी अपने छह माह के प्रवास के लिए मध्य हिमालय की गोद में पहुंचने लगे हैं।
नैनीताल (जेएनएन): नदी, जंगल, झरना और पहाड़ की बात बिना पक्षियों और उनके कोलाहल के कैसे पूरी हो सकती है। पहाड़ की रौनक झरनों की कलकल, जंगल की सनसनाहट और पक्षियों की मखमली आवाज से है। इस खूबसूरती में चारचांद लगाने और ताल बैठाने हिमालय के शिखर से एक मेहमान आया है। वही जिसका इंतजार प्रकृति प्रेमियों को सदा से रहता है। नाम है ट्रैगोपान। बेइंतहां खूबसूरत और कोमल यह पक्षी मुनस्यारी की पहाडि़यों को आजकल अपना वास बनाया है। आइए इसके बारे में आपको विस्तार से बताते हैं।
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में शोर-शराबे से बिल्कुल दूर रहने वाले दुलर्भ पक्षी अपने छह माह के प्रवास के लिए मध्य हिमालय की गोद में पहुंचने लगे हैं। इन पक्षियों के सबसे पसंदीदा स्थल खलिया टॉप का कलरव पर्यटकों को मुग्ध करने लगा है। इस क्षेत्र में मोनाल के बाद अब ट्रैगोपान बर्ड वॉचिंग के लिए सबसे आकर्षण का केन्द्र बना है। हिमरेखा के पास रहने वाले ये पक्षी शीतऋतु में शिखर से उतर कर इतने करीब आ जाते हैं लोग सहजता से इनका दीदार कर सकें।
मुनस्यारी में यहां बना ट्रैगोपान का बसेरा
ट्रैगोपान मुनस्यारी के कालामुनि, बिटलीधार, पातलथौड़ को अपना बसेरा बनाने लगे हैं। उच्च हिमालय में हिमरेखा के निकट रहने वाले और शीतकाल में अधिकतम 22 सौ मीटर की ऊंचाई तक बसेरा बनाने वाले इन पक्षियों के चलते मध्य हिमालय की इस उंचाई पर पक्षियों का संसार बदल जाता है।
बर्ड वॉचिंग से होने लगा पर्यटन का विकास
उच्च हिमालय के दुलर्भ पक्षियों को देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ अब जुटने लगी है। बीते वर्षों तक केवल स्थानीय लोगों में परिचित ये पक्षी अब देश, विदेश से आने वाले पर्यटकों के कैमरों में कैद हो रहे हैं। मुनस्यारी में शीतकाल में बर्ड वांचिंग होने लगी है। मोनाल संस्था इसे संचालित करती है। संस्था के अध्यक्ष सुरेंद्र पवार बताते हैं कि शीतकाल में पक्षियों को देखने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेश भी पर्यटक पहुंचने लगे हैं। बर्ड वॉचिंग से पर्यटन बढ़ने के कारण लोगों को रोजगार भी मिल रहा है।
शिकायत के निशाने पर ट्रैगोपान
ट्रैगोपान देखन में बेहद खूबसूरत होता है, जबकि मादा पक्षी गहरे भूरे रंग की होती है। इस पक्षी के लिए खतरे बहुत ज्यादा हैं। शिकारियों के निशाने पर यह अक्सर आता रहता है। इनकी घटती संख्या के पीछे का मुख्य कारण भी यही है।
जानें ट्रैगोपान की खासियत
ट्रैगोपान भारत, नेपाल और भूटान के हिमालयी क्षेत्र में पाया जाता है। गर्मियों में 8000 से 14000 फुट तक यह नजर आता है, जबकि शीतकाल में यह नीचे उतर आता है। 70 सेंटीमीटर ऊंचाई वाला यह पक्षी ज्यादातर बुरांश के घने जंगलों में रहता है। बेहद शर्मीले स्वभाव का यह पक्षी ज्यादा लंबी उड़ान नहीं भरता।
शीतऋतु में होता है इन पक्षियों का दीदार
ट्रैगोपान: उच्च हिमालयी अति खूबसूरत यह पक्षी हिमालयन रेंज में अभी तक केवल इस क्षेत्र में ही नजर आया है। अमूमन 2900 से 34 सौ मीटर में रहने वाला ट्रैगोपान फीमेल को आकर्षित करने के लिए गले से नीला वेतल निकालता है। स्थानीय लोग लौंग नाम से भी इसे जानते हैं।
कोकलास फीजैंट: 2200 से 3000 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाने वाला कोकलास फीजैंट शरीर से तो बेहद खूबसूरत है लेकिन अपनी कर्कश आवाज के चलते बदनाम है।
रेड बुलफिंच: बुलफिंच नाम की यह चिडिय़ा पांच रंगों की एक छोटी सी पक्षी है। परागों का रस चूसने वाली यह चिडिय़ा बेहद आकर्षक होती है। यह पक्षी केवल 25 सौ मीटर की ऊंचाई तक ही अपना बसेरा बनाता है।
विंटर रेन: छोटी सी फुदकने वाली विंटर रेन एक डाली से दूसरी डाली पर उड़ती है तो इसके सुनहरे पंख इसकी तरफ ध्यान खींचते हैं।
गोल्डन बुश रोबिन: उच्च हिमालय की यह रंग बिरंगी छोटी सी चिडिय़ां बेहद आकर्षक होती है। इसको देखना भी शुभ माना जाता है।
मोनाल : इसे सुरखाब नाम से भी जाना जाता है। आपने एक कहावत भी सुनी होगी-लग रहा है सुरखाब के पर लगे हैं, इस मुहावरे से ही इस चिडि़या खासियत का अंदाजा लगाया जा सकता है। सुनहरे पंखों से लेकर खूबसूरत फर वाला मोनाल अपनी उपस्थिति से खलिया की शोभा बढ़ा देता है। साथ में सामान्य रंग वाली फीमेल मोनाल भी आसपास ही नजर आती है। मोनाल भी 22 मीटर तक ही अपना प्रवास करते हैं।खलिया में दुलर्भ पक्षियों का बसने लगा संसार
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