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यहां के घरों की दीवारें बोलती हैं, जानिए ऐसी क्या है खासियत

विश्व प्रसिद्ध पिंडारी ग्लेशियर के ट्रैकिंग रूट के किनारे स्थित खाती गांव के घरों की दीवारें इन दिनों खिल उठी हैं। घरों की दीवारें यहां के कल्चर और ग्रामीण जनजीवन का दर्शन करा रही हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 23 Oct 2018 07:32 PM (IST)Updated: Wed, 24 Oct 2018 10:16 AM (IST)
यहां के घरों की दीवारें बोलती हैं, जानिए ऐसी क्या है खासियत
यहां के घरों की दीवारें बोलती हैं, जानिए ऐसी क्या है खासियत

गणेश पांडे (जेएनएन) : पहाड़ के गांव दिन ब दिन खाली हो रहे हैं। प्राकृति विपदा के साथ सुविधाओं का अभाव और सरकारों की उपेक्षा ने लोगों को पलायन करने के लिए विवश कर दिया है। इस गंभीर समस्‍या की ओर खूबसूरत रंगों के सहारे लोगों का ध्‍यान खींचने की कोशिश हो रही है। चलिए अापको इस बारे में विस्‍तार से बताते हैं। विश्व प्रसिद्ध पिंडारी ग्लेशियर के ट्रैकिंग रूट के किनारे स्थित खाती गांव के घरों की दीवारें इन दिनों खिल उठी हैं। घरों की दीवारें यहां के कल्चर और ग्रामीण जनजीवन का दर्शन करा रही हैं। यह सब प्रयास इसलिए हुआ है ताकि देश-दुनिया का ध्यान इस तरफ आकर्षित हो। हंस फाउंडेशन और प्रोजेक्ट फ्यूल के तहत देश-दुनिया से पहुंचे 40 पेंटर एक माह के दौरान गांव के 70 घरों की दीवारों पर विभिन्न आकृतियां उकेर चुके हैं। पेंटिंग के माध्यम से पर्वतीय महिलाओं के संघर्ष, ग्रामीण उत्सव, शादी-विवाह, ऐपण कला आदि को दर्शाया गया है।

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ये है पेंटिंग का मकसद

हंस फाउंडेशन से जुड़े आईवीडीपी के प्रोग्राम मैनेजर दिनेश मेनारिया बताते हैं कि बागेश्वर जिला मुख्यालय से 75 किमी दूरी पर स्थित पिंडर घाटी के 11 गांव सड़क, बिजली, पानी जैसे जरूरी सुविधाओं से वंचित हैं। कई गांवों में संचार सुविधा भी नहीं है। खाती जिले का अंतिम गांव है। एकीकृत ग्राम विकास परियोजना (आईवीडीपी) के तहत हंस फाउंडेशन ने खाती, वाछम, सोराग, वडियाकोट, चिलपाड़ा, कुलाड़ी, वोराचक जारकोट, कालौ गांवों को तीन साल के लिए गोद लिया है। इन गांवों में 950 परिवार रहते हैं। सोशल मीडिया समेत अन्य माध्यमों के जरिए यहां के गांव देश-दुनिया के सामने आ सकें, इसलिए पेंटिंग का आइडिया आया। ग्रामीण मानते हैं इससे सरकार व जनप्रतिनिधि का ध्यान बुनियादी सुविधाएं की तरफ जाएगा।

प्रोजेक्ट फ्यूल टीम की मेहनत

26 वर्षीय दीपक रमोला के निर्देशन और हेड आर्टिस्ट पूर्णिमा सुकुमार के नेतृत्व में 40 आर्टिस्ट की टीम ने 70 घरों पर पेंटिंग की। दीपक ने पिछले साल जून में टिहरी जिले के सौड गांव में पलायन के कारण खाली हो गए 50 से अधिक घरों पर पेंटिंग की। इसके पीछे लोगों को अपनी जड़ों की तरफ लौटाने का प्रयास था। सोशल मीडिया समेत दूसरे मंच पर इस प्रयास को काफी सराहना मिली।

कौन हैं दीपक रमोला

देहरादून के रहने वाले दीपक मुंबई विवि से मास मीडिया स्टडीज में गोल्ड मेडलिस्ट होने के साथ लेखक, अभिनेता, गीतकार हैं। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, कैसर थिएटर प्रोडक्श और नो लाइसेंस के साथ काम करने के बाद दीपक ने थियेटर में अनुभव हासिल किया। अभिनेता के रूप में दीपक ने राजश्री प्रोडक्शन के 'आइ लाइ लाइफ' में काम किया है। सलमान खान के साथ 'बॉडीगार्ड' और धारावाहिक 'ससुराल सिमर का' में भी काम किया है। हिंदी फिल्म 'मांझी द माउंटेन मैन' और 'बजीर' के लिए गीत लिखे हैं।

हर पाठ पढ़ा देता है जिंदगी का सबक

दीपक  कहते हैं मेरी मां पुष्पा रमोला केवल पांचवीं तक पढ़ी थीं, लेकिन उनके पास ज्ञान का अथाह भंडार था। जब मैंने इस बारे में मां से पूछा तो उन्होंने कहा कि जिंदगी का सबक दुनिया का हर पाठ पढ़ा देता है। तभी से उनके दिमाग में आम लोगों के ज्ञान को सीखने, बचाने और उसे बांटने की प्रवृति पैदा हुई। इसी के तहत 2009 में 'प्रोजेक्ट फ्यूलÓ की शुरुआत की।

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