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    टाइमपास के ये एप बच्‍चों के लिए हैं खतरनाक, अश्‍लीलता व साइबर बुलिंग काे दे रहे बढ़ावा

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Mon, 25 Feb 2019 08:28 PM (IST)

    बिगो लाइव टिक टॉक लाइवली हेलो क्वाइ और लाइवमी जैसे एप इन दिनों टाइमपास का सबसे बड़ा जरिया बने हुए हैं। आजकल यूथ इन एप पर सबसे अधिक टाइम स्‍पेंट कर रहे हैं।

    टाइमपास के ये एप बच्‍चों के लिए हैं खतरनाक, अश्‍लीलता व साइबर बुलिंग काे दे रहे बढ़ावा

    हल्‍द्वानी, जेएनएन : बिगो लाइव, टिक टॉक, लाइवली, हेलो, क्वाइ और लाइवमी जैसे एप इन दिनों टाइमपास का सबसे बड़ा जरिया बने हुए हैं। आजकल यूथ इन एप पर सबसे अधिक टाइम स्‍पेंट कर रहे हैं। यहां लाइव चैटिंग से लेकर छोट-छोटे वीडियो अपलोड करने समेत तमाम ऐसे विकल्‍प होते हैं जिनसे एक्‍सपोजर मिल सके। यहां अपलोड होने वाले वीडियोज विवर्स को लगातार इंगेज रखते हैं। लेकिन इन पर कोई सेंसर या बैरियर न होने के कारण ऐसे भी वीडियो अपलोड हो रहे हैं, जिनसे अश्‍लीलता और साइबर बुलिंग को बढ़ावा मिल रहा है। लाइव चैटिंग भी तमाम तरह की विकृतियों को जन्‍म दे रही है।  

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    बांग्‍लादेश ने लगा दिया है प्रतिबंध
    एक सर्वे के मुताबिक 13 से 17 साल उम्र के 17 फीसदी बच्चों तक किसी न किसी माध्यम से पॉर्नोग्राफिक कंटेंट आता है। वहीं अमेरिका की एक संस्था के मुताबिक लाइव स्ट्रीमिंग एप्स पर कम उम्र के बच्चों के यौन उत्पीड़न का खतरा है। इन्हीं खतरों को देखते हुए बांग्लादेश बिगो लाइव और टिक-टॉक जैसे वीडियो एप्स बैन कर दिए हैं। भारत में भी  तमिलनाडु के मंत्री मणिकानंद ने भी टिक टॉक पर बैन की मांग की है।

    बच्‍चों को इन एप से सर्वाधिक खतरा
    ऐसे एप बच्चों के लिए बहुत असुरक्षित हैं। इन पर कोई इन्क्रिप्शन नहीं है। यानी इनपर कमेंट्स करने वालों या वीडियो डालने वालों की पहचान करना मुश्किल हो सकता है। चूंकि यूजर की आइडेंटिटी सामने नहीं आती है, इसलिए कई यूजर्स यहां अश्लीलता फैलाने और आपत्तिजनक कमेंट्स करने में हिचकते नहीं।

    क्‍या है गूगल की गाइडलाइन
    गूगल की गाइडलाइन के अनुसार 13 साल के कम उम्र के बच्चे इस तरह की एप्स इस्तेमाल नहीं कर सकते। साथ ही केवल 17 वर्ष या उससे ज्यादा उम्र वाले ही इसे डाउनलोड कर सकते हैं। लेकिन बड़ी संख्या में बच्चे भी इन एप्स के यूजर हैं।

    गाली गलौज भी होते हैं शेयर
    लाइव वीडियो एप्स और वीडियो शेयरिंग एप्स पर अश्लीलता तो है ही, कई बच्चे इन पर बुलिइंग (गाली-गलौज या अश्लील टिप्पणियां) का शिकार भी होते रहते हैं। हिचक या डर के कारण वे अपने मां-बाप को बुलिइंग या पॉर्नोग्राफिक कंटेंट मिलने या देखने के बारे में नहीं बताते हैं और उन्हें तनाव बना रहता है।

    कंपनियों का दावा आपत्तिजन कंटेंट पर होती है नजर
    ज्यादातर लाइव स्ट्रीमिंग वीडियो एप्स का उद्देश्य अपने हुनर को दिखाना या सोशल नेटवर्किंग की तरह लोगों से जुड़ना है। लेकिन बिगो लाइव और टिक टॉक जैसी एप्स पर अश्लीलकंटेंट के मामले सामने आते रहते हैं। हालांकि इन एप्स से जुड़ी कंपनियां दावा करती हैं कि वे आपत्तिजनक कंटेंट पर लगातर नजर बनाए रखती हैं और ऐसा कंटेंट अपलोड करने वालों को एप से हटाया भी जाता है। टिक टॉक बनाने वाली चाइनीज कंपनी बाइटडांस ने हाल ही में ऑनलाइन सेफ्टी के लिए साइबर पीस फाउंडेशन भी शुरू किया है।

    पैरेंट्स बच्‍चों पर रखें नजर
    इस तरह की एप्स को लेकर कोई खास रेगुलेशन नहीं है। शिकायत करने पर भी पुलिस आमतौर पर इंवेस्टिगेशन पूरा नहीं कर पाती, क्योंकि कई बार सर्विस प्रोवाइडर जानकारी देने से इंकार कर देते हैं। बच्चों के मामले में जरूरी है कि माता-पिता ही उनके साथ दोस्ताना संबंध बनाएं और बुलिइंग और अश्लीलता से उन्हें बचाएं।

    लगातार बढ़ रही है यूजर्स की संख्‍या
    देश में भी वीडियो शेयरिंग और लाइव स्ट्रीमिंग एप के यूजर्स की संख्या और कारोबार लगातार बढ़ रहा है। उदाहरण के लिए टिक टॉक के पांच करोड़ से भी ज्यादा यूजर्स हैं। इसमें लगभग 40 फीसदी यूजर्स भारत से ही हैं। इसमें 27 फीसदी यूजर्स 2017 से 2018 के बीच जुड़े हैं। वहीं सिंगापुर की कंपनी बिगो ने भी आने वाले तीन वर्षों में भारत में करीब 720 करोड़ रुपए निवेश करने की घोषणा की है। यह कंपनी बिगो लाइव और लाइक एप्स की मालिक है जो वीडियो शेयरिंग और लाइव स्ट्रीमिंग एप्स हैं। बिगो लाइव की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दिसंबर 2017 में डाउनलोड के मामले में यह सिर्फ यू-ट्यूब से पीछे थी।

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