स्वामी विवेकानंद ने देवभूमि की पांच यात्राएं की, जानिए उन यात्राओं की खास बातें
देश में हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन स्वामी जी के कटे हुए बालों को भी प्रेरणास्रोत मानते थे। कनाडा में भारत के उच्चायुक्त पद से 1992 में सेवानि ...और पढ़ें
हल्द्वानी, जागरण संवाददाता : स्वामी विवेकानंद का उत्तराखंड की धरती से खास लगाव था। हिमालय की गोद में बसेदेवभूमि की खूबियां ही कुछ ऐसी हैं जहां महान विभूतियों ने तपस्या की और आत्मज्ञान हासिल किया। दुनिया के लिए प्रेरणास्रोत महान संत स्वामी विवेकानंद अपने जीवन के अंतिम समय उत्तराखंड के लोहाघाट स्थित अद्वैत आश्रम में बिताना चाहते थे। देवभूमि में पांच बार आध्यात्मिक यात्रा कर चुके युगपुरुष की उत्तराखंड से कई स्मृतियां जुड़ी हैं। चलिए जानते हैं उनकी पांचों यात्राओं के बारे में।
पहली यात्रा
वर्ष 1888 में नरेंद्र के रूप में हिमालयी क्षेत्र की पहली यात्रा शिष्य शरदचंद गुप्त (बाद में सदानंद) के साथ की थी। गुप्त हाथरस (उप्र) में स्टेशन मास्टर थे। ऋषिकेश में कुछ समय रहने के बाद वापस लौट गए थे।
दूसरी यात्रा
स्वामी विवेकानंद ने दूसरी यात्रा जुलाई, 1890 में की थी। तब वह अयोध्या से पैदल नैनीताल पहुंचे थे। प्रसान्न भट्टाचार्य के आवास पर छह दिन रुकने के बाद अल्मोड़ा से कर्णप्रयाग, श्रीनगर, टिहरी, देहरादून व ऋषिकेष पहुंचे। इस दौरान तप, ध्यान व साधना की। अल्मोड़ा के काकड़ीघाट में पीपल वृक्ष के नीचे उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हुआ था। कसार देवी गुफा में कई दिनों तक ध्यान किया और उत्तिष्ठ भारत की प्रेरणा प्राप्त हुई।
तीसरी यात्रा
स्वामीजी ने उत्तराखंड में तीसरी यात्रा शिकागो से लौटने के बाद 1897 में की। अल्मोड़ा पहुंचने पर लोधिया से खचांजी मोहल्ले तक पुष्प वर्षा की गई थी। वहां लाला बद्रीलाल साह के वह अतिथि रहे। देवलधार एस्टेट में उन्होंने गुफा में ध्यान लगाया था।
चौथी यात्रा
हिमालय की चौथी यात्रा मई-जून 1898 में की थी। इस बीच अत्यधिक श्रम के चलते उनका स्वास्थ्य खराब रहा। इस यात्रा के दौरान उन्होंने अल्मोड़ा के थॉमसन हाउस से प्रबुद्ध भारत पत्रिका का फिर से प्रकाशन आरंभ किया। 222 साल पुराने देवदार के वृक्ष के नीचे भगिनी को दीक्षा दी। इस यात्रा में उन्होंने रैमजे इंटर कॉलेज में पहली बार हिंदी में भाषण दिया था। उनके इस भाषण से लोग काफी प्रभावित हुए थे।
पांचवीं यात्रा
उत्तराखंड में उनकी अंतिम यात्रा वर्ष 1901 में मायावती के अद्वैत आश्रम में हुई थी। डॉ. लखेड़ा बताते हैं कि आश्रम को बनाने वाले कैप्टन सेवियर की मृत्यु पर 170 किलोमीटर की दुर्गम यात्रा कर वह तीन जनवरी, 1901 को अद्वैत आश्रम लोहाघाट पहुंचे और 18 जनवरी, 1901 तक रहे। इस दौरान उन्होंने तप किया था। जैविक खेती की बात की, आज भी आश्रम में जैविक खेती हो रही है।

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