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    इंजीनियरिंग छोड़कर रॉक बैंड चलाने वाले सूरज कमा रहे लाखों, जानिए कैसे बनाई अपनी पहचान

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Sat, 20 Apr 2019 10:54 AM (IST)

    पिथौरागढ़ के बोरागांव निवासी सूरज वर्मा ने संगीत के जुनून के चलते सात साल पहले इंजीनियरिंग में चयन होने के बावजूद पढ़ाई छोड़ दी।

    इंजीनियरिंग छोड़कर रॉक बैंड चलाने वाले सूरज कमा रहे लाखों, जानिए कैसे बनाई अपनी पहचान

    हल्द्वानी, गणेश पांडे : पिथौरागढ़ के बोरागांव निवासी सूरज वर्मा ने संगीत के जुनून के चलते सात साल पहले इंजीनियरिंग में चयन होने के बावजूद पढ़ाई छोड़ दी। मुंबई जाकर एक साल तक संगीत की तालीम ली और अपना रॉक बैंड शुरू किया। देशभर में लाइव शो करने वाले सूरज आज एक प्रोग्राम के लिए एक से डेढ़ लाख रुपये चार्ज लेते हैं। हुनर व शौक को जुनून तक ले जाने वाले सूरज युवाओं के लिए मिसाल बन रहे हैं। इंडो फ्यूजन यू-ट्यूब चैनल पर प्रसारित सूरज के पहले ऑफिशियल वीडियो गीत को 18 दिन में 17 लाख से अधिक व्यूअर मिल चुके हैं। सूरज के पिता त्रिलोक वर्मा डिफेंस में कार्यरत हैं, जबकि मां कमला देवी गृहिणी हैं। वर्तमान में परिवार हल्द्वानी में रहता है। 

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    इस तरह शुरू हुआ संगीत का सफर 
    26 वर्षीय सूरज ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई अल्मोड़ा बीरशिबा स्कूल से की। वह स्कूल टाइम से ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते थे। 2012 में इंडियन आइडिल के टॉप 30 तक भी पहुंचे। संगीत का शौक था, इसलिए एआईईईई क्वालीफाई करने के बावजूद मुंबई चले गए और अभिजीत घोषाल व उस्ताद उस्मान खां से संगीत की तालीम ली। 2013 में इंडो फ्यूजन नाम से रॉक बैंड शुरू किया। 

    पहले शो के मिले थे पांच हजार रुपये
    सूरज गीत लिखते हैं, संगीत तैयार करते हैं और उसे गाते भी खुद ही हैं। उनके भाई संजय वर्मा ड्रमर की भूमिका में रहते हैं। सूरज बताते हैं कि पहले शो के पांच हजार रुपये मिले थे और अब तक देशभर में 600 से अधिक शो कर चुके हैं। दो बार दुबई में कार्यक्रम कर चुके हैं। वर्तमान में एक शो के एक से डेढ़ लाख रुपये लेते हैं। सूरज का कहना है कि जिस व्यक्ति में धैर्य व कड़ी मेहनत करने का जज्बा है, वह एक दिन अवश्य कामयाब होता है।

    45 हजार रुपये वेतन की नौकरी छोड़ी 
    इंटरमीडिएट करने के बाद 2012 में सूरज ने क्लब महिंद्रा में आठ माह तक मैनेजर की नौकरी भी की थी। सूरज ने बताया कि उन्हें 45 हजार रुपये मासिक वेतन मिलता था। बाद में नौकरी छोड़ मुंबई चले गए। काम जमने के बाद दूरस्थ शिक्षा से स्नातक किया।

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