नार्थ ईस्ट की तरह निखरेगा उत्तराखंड का रिंगाल क्राफ्ट, जीआइ टैग मिलने से बढ़ेेगी पहचान
नार्थ ईस्ट के सात राज्यों में रिंगाल से बनी वस्तुओं की न केवल भारत बल्कि दुनिया भर में पहचान है। पिथौरागढ़ के तल्ला जौहार जिला मुख्यालय के नजदीकी बांस लछैर और भाटीगांव में रिंगाल से कृषि कार्य में उपयोग होने वाले सूप्पे डोके टोकरियां मोस्टे आदि बनाए जाते हैं।

संवाद सहयोगी, पिथौरागढ़ : उत्तराखंड के सीमांत जिले पिथौरागढ़ के रिंगाल उद्योग को जीआइ टैग (भौगोलिक संकेत) पहचान मिल गई है। सदियों से छुटपुट स्तर पर हो रहे इस उद्योग को पहचान मिल जाने से अब नार्थ ईस्ट के रिंगाल क्राफ्ट को उत्तराखंड से चुनौती मिलेगी।
नार्थ ईस्ट के सात राज्यों में रिंगाल से बनी वस्तुओं की न केवल भारत बल्कि दुनिया भर में पहचान है। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के तल्ला जौहार, जिला मुख्यालय के नजदीकी बांस, लछैर और भाटीगांव में रिंगाल से कृषि कार्य में उपयोग होने वाले सूप्पे, डोके, टोकरियां, मोस्टे आदि बनाए जाते हैं। यूं तो जिले के तमाम गांवों में रिंगाल का थोड़ा बहुत काम होता है, लेकिन तल्ला जौहार के नाचनी और होकरा की विशेष पहचान है। यहां सदियों से लोग रिंगाल से बनी वस्तुएं तैयार करते हैं। जिले में होने वाले तमाम मेलों में रिंगाल से बनी वस्तुएं बेचने के लिए लाई जाती हैं।
रिंगाल एक लचीली लकड़ी है, जो जंगलों में ही होती है। व्यावसायिक रू प से इसकी खेती नहीं होती है। बेहद पतली इस लकड़ी को मोड़कर किसी भी आकार मेें ढाला जा सकता है। रिंगाल से डोके, मोस्टे, सूप्पे, टोकरियां आदि बनाने का यह ज्ञान परंपरागत है। लोग अपने पूर्वजों से ही इस कला को सीखकर आगे की पीढिय़ों को हस्तांतरित करते हैं। कृषि कार्य में भी प्लास्टिक से बनी वस्तुओं के छा जाने से हाल के वर्षों में रिंगाल उद्योग को नुकसान हुआ है।
जीआई टैग मिल जाने के बाद अब इस कारोबार के फिर से गति पकडऩे की उम्मीद है। रिंगाल से कृषि उपयोग की वस्तुएं बनाने वाले दीवान राम, भूप राम बताते हैं कि रिंगाल उद्योग को अब नए सिरे से खड़ा किए जाने की जरू रत है। उद्योग विभाग नई पीढ़ी को आधुनिक तकनीक से दैनिक उपयोग की चीजें बनाने का प्रशिक्षण दे तो युवा पीढ़ी इस और आकर्षित होगी और आने वाले दिनों में राज्य में यह रोजगार का एक बड़ा माध्यम बन सकता है।
कृषि पशुपालन के साथ चल रहा है रिंगाल उद्योग
जिले में वर्तमान में करीब पांच दर्जन परिवार ऐसे हैं जो पूरी तरह रिंगाल उद्यम से जुड़े हैं। अधिकांश परिवार खेती, पशुपालन के साथ बचे हुए समय में रिंगाल से कृषि उपयोगी वस्तुएं तैयार करते हैं। वर्षों से रिंगाल उद्यम से जुड़े भूप राम का कहना है कि वन अधिनियम के चलते अब जंगलों से रिंगाल निकालना मुश्किल हो गया है। वन पंचायतों में रिंगाल कम है। कड़ी मेहनत के बाद भी बाजार में पूरा दाम नहीं मिल पाता है। सरकार को लोगों को रिंगाल आसानी से उपलब्ध कराने की व्यवस्था बनानी होगी।
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