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    मकड़ी के ये फायदे आपको भी सोच में डाल देंगे... उत्‍तराखंड की प्रोफेसर ने किया शोध, मिला यंग साइंटिस्ट अवार्ड

    By kishore joshiEdited By: Nirmala Bohra
    Updated: Sun, 04 Dec 2022 03:39 PM (IST)

    Research on Spider कुमाऊं विवि की जंतु विज्ञान विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डा हिमांशु पांडे लोहनी के शोध में बताया गया है कि मकड़ी बायो कंट्रोल एजेंट है। लोहनी ने स्पाइडर पर आधारित अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। इस शोध के लिए उन्हें यंग साइंटिस्ट पुरस्कार प्रदान किया गया।

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    Research on Spider : असिस्टेंट प्रोफेसर डा हिमांशु पांडे लोहनी को यंग साइंटिस्ट पुरस्कार प्रदान किया गया।

    किशोर जोशी, नैनीताल : Research on Spider : उत्‍तराखंड के नैनीताल जिले में सेल्टी साइडी परिवार की मकड़ियों की प्रजाति बहुतायत में मिलती है जबकि थोमी साइडी परिवार की भी प्रजातियों की मौजूदगी है।

    कुमाऊं विवि की जंतु विज्ञान विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डा हिमांशु पांडे लोहनी के शोध में बताया गया है कि मकड़ी बायो कंट्रोल एजेंट है। यह एग्रो ईको सिस्टम के लिए बेहद लाभकारी है।

    सातवें इंटरनेशनल कांफ्रेंस इन हाइ्ब्रिड मोड आन ग्लोबल रिसर्च इनिशिएटिव फोर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर एंड एलाइइ साइंस पर झारखंड की राजधानी रांची में इंटरनेशनल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया।

    जहां डीएसबी परिसर जंतु विज्ञान विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डा हिमांशु पाण्डे लोहनी ने स्पाइडर पर आधारित अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। इस शोध के लिए उन्हें यंग साइंटिस्ट पुरस्कार प्रदान किया गया।

    जैव विविधता में बेहद अहम है मकड़ी

    डा लोहनी ने अपने शोध में बताया कि दुनियां में स्पाइडर की करीब पांच लाख प्रजातियां पाई जाती हैं। इसमें करीब 49 हजार प्रजातियां 2021 के कैटलॉग में शामिल हैं। भारत में सेल्टी साइडी परिवार की 192 प्रजातियां तथा थोमी साइडी परिवार की मकड़ी पाई जाती है।

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    एग्रो ईको सिस्टम के लिए लाभकारी है मकड़ी

    डा लोहनी ने टीम के साथ पहले चरण में नैनीताल के खुर्पाताल, मंगोली से कालाढूंगी की बेल्ट तक स्पाइडर पर शोध कार्य किया है जबकि दूसरे चरण में मुक्तेश्वर बेल्ट में शोध होना है। पहली बार मकड़ी पर जिले में कुमाऊं विवि की ओर से शोध किया जा रहा है। शोध के अनुसार मार्च से लेकर सितंबर-अक्टूबर तक मकड़ी की प्रजातियां मिलती रही हैं।

    मकड़ी के व्यवहारा का भी अध्ययन किया गया तो पता चला कि मकड़ी पेड़-पौधों व फसलों को नुकसान पहुंचाने वाली बटरफ्लाई व कीड़े मकोड़ों को आहार बनाती है। यह फसलों के लिए प्राकृतिक कीटनाशक का काम करती है। यह भी पाया गया कि बड़ी मकड़ी मच्छर को भी आहार बना लेती है। शोध के दौरान यह देखा गया।

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    मकड़ी से फलपट्टी को सीधा नुकसान तो नहीं होता है अलबत्ता यदि किन्हीं वजहों से मकड़ी ने लार्वा छोड़ दिया तो उससे नुकसान हो सकता है। कहा कि मकड़ी के जाल काटने या तोड़ने पर जहर छोड़ती है। यह व्यवहार उसका सामान्य है। मकड़ी अपने व्यवहार में परिवर्तन करती रहती है, लिहाजा इसका प्राकृतिक वास रहने दिया जाना चाहिए। मकड़ी के प्रजातियों के संरक्षण की भी जरूरत बताई गई है।

    डा लोहनी को मिली शाबासी

    रांची में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में शोध के लिए यंग साइंटिस्ट अवार्ड मिलने पर कुमाऊं विवि के प्राध्यापकों ने हर्ष जताया है। कांफ्रेंस में डा लोहनी को जंतु संरक्षण एवं सतत विकास पर कार्य करने पर सम्मानित किया गया।

    कुलपति प्रो एनके जोशी डीएसबी परिसर के निदेशक प्रो एलएम जोशी, जंतु विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो एसपीएस बिष्ट, पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो एचसीएस बिष्ट, डा दीपक कुमार, डा नेत्रपाल शर्मा, डा उजमा, दिव्य पांगती, प्रो एलएस लोधियाल, प्रो नीता बोरा शर्मा, शोध निदेशक प्रो ललित तिवारी ,डा आशीष तिवारी ,डा महेश आर्य , डा रितेश साह सहित अन्य ने बधाई दी है।