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    25 साल बाद भी रामपुर तिराहा कांड के दोषियों पर नहीं कसा कानूनी शिकंजा, नैनीताल HC में चार अगस्त को होगी अंतिम सुनवाई

    Updated: Mon, 21 Jul 2025 06:30 PM (IST)

    राज्य आंदोलन के दौरान रामपुर तिराहा कांड के दोषियों को 25 साल बाद भी न्याय नहीं मिला है। सीबीआई कोर्ट से मुजफ्फरनगर स्थानांतरित किए गए मामलों में सुनवाई नहीं हो पाई है। अब नैनीताल हाई कोर्ट 4 अगस्त को अंतिम सुनवाई करेगा। इस घटना में कई आंदोलनकारियों की जान गई और महिलाओं के साथ दुष्कर्म हुआ था।

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    25 साल बाद भी रामपुर तिराहा कांड के दोषियों पर नहीं कसा कानूनी शिकंजा (सांकेतिक तस्वीर)। जागरण

    किशोर जोशी, नैनीताल। राज्य आंदोलन के दौरान देश के सबसे जघन्य कांडों में शामिल रामपुर तिराहा कांड में पांच आंदोलनकारियों की मौत, सात महिला आंदोलनकारियों के साथ दुष्कर्म तथा 17 महिला आंदोलनकारियों के साथ अत्याचार के मामले में राज्य बनने के बाद 25 साल बाद भी न्याय का इंतजार है।

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    इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर देहरादून सीबीआइ कोर्ट ने मुजफ्फरनगर के तत्कालीन जिलाधिकारी अनंत कुमार सिंह सहित सात अन्य के मामलों को मुजफ्फरनगर की कोर्ट स्थानांतरित कर दिया।

    तब से इन मामलों में आज तक सुनवाई नहीं हो सकी। इस मामले में राज्य आंदोलनकारी सुप्रीम कोर्ट तक गए, वहां से मामला नैनीताल हाई कोर्ट भेज दिया। अब इस मामले में नैनीताल हाई कोर्ट चार अगस्त को फाइनल सुनवाई करेगा।

    अलग राज्य आंदोलन के दौरान दो अक्टूबर 1994 को दिल्ली जा रहे राज्य आंदोलनकारियों को उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सरकार के निर्देश पर मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर रोक दिया गया। इस दौरान आंदोलनकारियों पर पुलिस टूट पड़ी।

    महिला आंदोलनकारियों के साथ दुष्कर्म व अत्याचार किए गए। जिसमें सात आंदोलनकारियों की पुलिसिया जुल्म में मौत हो गई। इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्देश पर इस मामले की सीबीआइ जांच के आदेश हुए थे।

    मुजफ्फरनगर के तत्कालीन डीएम ने 2003 में नैनीताल हाई कोर्ट में याचिका दायर की तो कोर्ट ने राज्यपाल से मुकदमे की अनुमति नहीं मिलने के आधार पर उन्हें राहत दे दी।

    दरअसल, नौ फरवरी 1996 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राज्य आंदोलन के दौरान पहली सितंबर को खटीमा में सात आंदोलनकारियों की मौत, रामपुर तिराहा में पांच आंदोलनकारियों की मौत, सात दुराचार के केस तथा 17 महिला आंदोलनकारियों के साथ अत्याचार के मामलों की सीबीआइ जांच के आदेश दिए थे।

    इलाहाबाद कोर्ट के आदेश पर केंद्रीय जांच ब्यूरो ने सात केस मुजफ्फरनगर व पांच केस देहरादून सीबीआइ कोर्ट में दाखिल किए। सीबीआइ कोर्ट ने चार्जशीट का संज्ञान धारा-302, 324, 326 आइपीसी के तहत संज्ञान में लिया। तब से हत्या के आरोपितों के मामले लंबित हैं।

    रामपुर तिराहा कांड मामले में सात अभियुक्त थे, जिसमें एक आरोपित मुजफ्फरनगर के तत्कालीन सीओ का गनर सुभाष गिरी था। जिसकी ट्रेन में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई।

    इस मामले में सुभाष वादा माफ गवाह था लेकिन फाइनल रिपोर्ट लगा दी गई। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पांच मार्च 2005 को सीबीआइ देहरादून की कोर्ट ने अनंत कुमार सिंह केस के साथ ही सात अन्य केस मुजफ्फरनगर कोर्ट को ट्रांसफर कर दिए।

    तब से इस मामले में सुनवाई आज तक नहीं हुई। राज्य आंदोलनकारी समन्वय समिति के अधिवक्ता रमन शाह के अनुसार पूर्व सीएम एनडी तिवारी के कार्यकाल में 2004 में कार्यालय आदेश जारी कर चिह्नित राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी सेवाओं में दस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिया गया।

    इस मामले में हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेती जनहित याचिका पर सुनवाई की। दो जजों के अलग-अलग मत होने के कारण केस तीसरे जज को रेफर किया गया। तीसरे न्यायाधीश ने राज्य आंदोलनकारियों के विरुद्ध मत दिया।

    आंदोलनकारियों के तीसरे जज के निर्णय को भी याचिका दायर कर चुनौती दी। जब आंदोलनकारी केस हार गए तो उन्होंने विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। यह मामला वहां विचाराधीन है।

    उधर, 2024 में राज्य सरकार की ओर से राज्य आंदोलनकारियों को दस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने का अधिनियम बना दिया तो इसको भी चुनौती दी गई तो अधिवक्ता रमन शाह ने हस्तक्षेप याचिका दायर की।

    हाई कोर्ट ने निर्णय दिया कि सुप्रीम कोर्ट में केस निस्तारण होने तक केस को नहीं सुन सकते। शाह का कहना है कि सरकार ने आंदोलनकारियों को क्षैतिज आरक्षण दे दिया, अब सरकार को चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट में आदेश मोडिफाइ करने के लिए प्रार्थना पत्र दाखिल करे।

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