इन्होंने खेती को रोजगार का जरिया बनाकर बदली तकदीर, सेलरी से बेहतर कमाई nainital news
अब खेती करना केवल फसल उगाकर परिवार पालने तक ही सीमित नहीं रह गया है लोग इसे रोजगार का मुख्य साधन बनाकर खेती से मुंह मोड़ चुके लोगों के लिए नजीर भी बन रहे हैं।
हल्द्वानी, शहबाज अहमद : अब खेती करना केवल फसल उगाकर परिवार पालने तक ही सीमित नहीं रह गया है, लोग इसे रोजगार का मुख्य साधन बनाकर खेती से मुंह मोड़ चुके लोगों के लिए नजीर भी बन रहे हैं। परंपरागत फसलों के अलावा कॉमर्शियल खेती की ओर इनका रुझान अधिक है और यह फायदे का सौदा भी बन रहा है। इनमें नौकरी पेशा, युवा से लेकर बुजुर्ग भी शामिल हैं। उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद कोई फूलों की खेती से वातावरण को सुगंधित कर रहा है, तो कोई फल व नए फसलों कर उत्पादन कर अन्य किसानों को भी जागरूक कर रहा है। कुमाऊं में भी ऐसे कई होनहार हैं, जो अपने कार्यक्षेत्र में सफलता हासिल करने के साथ ही खेती में भी नाम कमा रहे हैं।
पिता से लीज पर जमीन मांगकर शुरू की थी खेती
33 एकड़ में फूलों की बागबानी कर रहे रुद्रपुर के किशन ठकुराल ने बताया कि पंतनगर विवि से उच्च शिक्षा लेने के बाद दिल्ली में डेयरी विभाग में नौकरी का ऑफर आया था, जिसकी ट्रेनिंग के लिए पांच साल के बांड पर विदेश जाने का भी अवसर मिला। लेकिन ठकुराल ने लाखों के पैकेज की यह नौकरी छोड़कर फूलों की खेती करने का निर्णय लिया। उनके पिता इसके खिलाफ थे, मगर उन्होंने अपने पिता को मनाकर उनसे लीज पर आधा एकड़ जमीन लेकर फूलों का उत्पादन शुरू किया। अब वह 33 एकड़ जमीन को विभिन्न प्रजातियों के फूलों से महका रहे हैं। थाईलैंड की वॉटर लिली की नई किस्म भी वह अपनी नर्सरी में तैयार कर रहे हैं।
टीचर की नौकरी से सेवानिवृत्त मोहनी ताई बनीं नजीर
बागेश्वर की मोहनी ताई किसी परिचय की मोहताज नहीं है। उत्कृष्ट शिक्षण के लिए 1994-95 में राज्यपाल दक्षता पुरस्कार से सम्मानित मोहिनी ताई सेवानिवृत्ति के बाद उम्दा काश्तकारी के लिए भी 2015 व 16 में सम्मानित हो चुकी हैं। 66 वर्ष की उम्र में भी खेती-बाड़ी करने का उत्साह उनके अंदर बरकरार है। उन्होंने करीब 50 नाली भूमि पर संतरा, माल्टा, गहत, अदरक, गडेरी, राजमा, नींबू, मटर, धनिया आदि की खेती की है। इससे सालभर में करीब तीन लाख रुपये तक की वह आमदनी करती हैं। उन्हें मधुमक्खी पालन के लिए भी सम्मानित किया जा चुका है।
शिक्षक की प्रेरणा से मिली राह
देहरादून से उच्च शिक्षा प्राप्त कर हल्द्वानी की दीपिका बिष्ट ने खेती को ही रोजगार का साधन बना लिया है। उनका कहना है कि प्रतिस्पर्धा के इस दौर में हर कोई नौकरी के पीछे भाग रहा है और देश में बेरोजगारी का संकट बढ़ता जा रहा है। ऐसे में देहरादून से बायोटेक करने के बाद नौकरी न करके मशरूम की खेती करने की ठानी। इसकी प्रेरणा डिपार्टमेंट के एचओडी प्रो. कार्तिक उनियाल से मिली। पिछले साल ही मशरूम का उत्पादन शुरू किया था, जिसमें सफलता मिली और अब लोगों की प्रशंसा के साथ ही डिमांड भी बहुत मिल रही है। दीपिका कहती हैं कि आगे भी इसे जारी रखूंगी। इसमें उनकी दोस्त श्वेता भी योगदान दे रही हैं।
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