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    पाताल भुवनेश्वर गुफा में रखीं 12वीं शताब्दी की दुर्लभ मूर्तियों की सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं

    By Jagran NewsEdited By: Skand Shukla
    Updated: Fri, 28 Oct 2022 02:08 PM (IST)

    Patal Bhubaneshwar cave उत्तराखंड की विश्व प्रसिद्ध पाताल भुवनेश्वर गुफा में रखी गई 35 दुर्लभ मूर्तियों की सुरक्षा के लिए कोई ठोस प्रबंध अब तक नहीं हुआ है। मंदिर परिसर के म्यूजियम और एक कक्ष में रखी गई इन मूर्तियों की सुरक्षा का जिम्मा मंदिर कमेटी उठा रही है।

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    विश्व प्रसिद्ध पाताल भुवनेश्वर गुफा में पुरातत्व विभाग ने नहीं की सुरक्षा कर्मी की तैनाती

    पिथौरागढ़, जागरण संवाददाता : Patal Bhubaneshwar cave : उत्तराखंड की विश्व प्रसिद्ध पाताल भुवनेश्वर गुफा में रखी गई 35 दुर्लभ मूर्तियों की सुरक्षा के लिए कोई ठोस प्रबंध अब तक नहीं हुआ है। मंदिर परिसर के म्यूजियम और एक कक्ष में रखी गई इन मूर्तियों की सुरक्षा का जिम्मा मंदिर कमेटी उठा रही है।

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    कमेटी कई बार राज्य पुरातत्व विभाग से गूुहार लगा चुकी है, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई पहल नहीं हुई है। पाताल भुवनेश्वर गुफा का इतिहास महाभारत काल से जोड़ा जाता है। माना जाता है कि वनवास काल में पांडवों ने इसी गुफा में अपना ठिकाना बनाया था।

    12 वीं शताब्दी में यहां जागेश्वर शैली में मंदिर का निर्माण कराया गया। इस दौरान अनूठी शिल्प कला की कई मूर्तियां तैयार हुई। 35 बेशकीमती इन मूर्तियों को मंदिर क्षेत्र में बनाए गए एक म्यूजियम और एक कक्ष में रखा गया है।

    मूर्तियों की देखेरख का जिम्मा राज्य पुरातत्व विभाग का है, लेकिन विभाग ने आज तक यहां कर्मचारी तैनात नहीं किया गया है। कभी कभार पुरातत्व विभाग के अधिकारी मंदिर का चक्कर लगा लेते हैं।

    मंदिर कमेटी लंबे समय से मंदिरों की सुरक्षा के लिए उचित प्रबंध किए जाने की मांग कर रही है। कमेटी का कहना है कि विभाग स्थायी कर्मचारी तैनात नहीं कर सकता है तो गांव के ही किसी व्यक्ति को सुरक्षा का दायित्व सौंपा जाए, लेकिन विभाग की ओर से अब तक इस दिशा में कोई पहल नहीं हुई है।

    मंदिर परिसर में 35 दुर्लभ मूर्तियां

    नीलम भंडारी, अध्यक्ष पाताल भुवनेश्वर मंदिर कमेटी ने बताया कि मंदिर परिसर में 35 दुर्लभ मूर्तियां रखी गई हैं। लगभग 800 वर्ष पुरानी इन मूर्तियों का ऐतिहासिक महत्व है। बावजूद इनकी सुरक्षा के लिए ठोस पहल नहीं की जा रही है। इस संबंध में कई बार राज्य पुरातत्व विभाग से मांग की जा चुकी है।

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