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    पंतनगर-काठगोदाम तक बनने वाले हाईवे की जद में आने वाले पेड़ों को किया जाएगा ट्रांसप्‍लांट

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Mon, 04 Mar 2019 10:50 AM (IST)

    पंतनगर से काठगोदाम तक बन रहे नेशनल हाईवे की जद में आने वाले 188 पेड़ों को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने अभयदान दिया है।

    पंतनगर-काठगोदाम तक बनने वाले हाईवे की जद में आने वाले पेड़ों को किया जाएगा ट्रांसप्‍लांट

    हल्द्वानी, जेएनएन : पंतनगर से काठगोदाम तक बन रहे नेशनल हाईवे की जद में आने वाले 188 पेड़ों को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 'अभयदान' दिया है। वन विभाग के नोडल अधिकारी ने साफ कहा कि बार-बार पेड़ काटने की अनुमति नहीं दी जाएगी। लिहाजा सड़क किनारे हरियाली देने वाले इन पेड़ों को ट्रांसप्लांट करना होगा। वन विभाग और हाईवे बनाने वाली कंपनी मिलकर अब इन पेड़ों को गौलापार स्थित चिडिय़ाघर व जंगल में ट्रांसप्लांट करेंगे।

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    केंद्र सरकार ने रामपुर से काठगोदाम तक नेशनल हाईवे-87 (अब 109) को फोरलेन बनाने के लिए जुलाई 2012 में गजट नोटिफिकेशन जारी किया था। बड़ी तेजी से इस पर काम भी चल रहा है। पूर्व में हल्द्वानी वन प्रभाग के हिस्से में आ रहे करीब 150 पेड़ों को काटा गया था। जिसके ऐवज में दूसरी जगह पौधरोपण किया गया। वहीं, हाल में इसी डिवीजन की छकाता रेंज (गौलापार के आसपास) में 188 पेड़ सड़क चौड़ीकरण की जद में आने की वजह से कंपनी ने इनके कटान की अनुमति मांगी। क्षतिपूर्ति के तौर पर रकम भी जमा कर दी, लेकिन केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय व फोरेस्ट नोडल ऑफिसर ने इस पर आपत्ति जता दी। दरअसल, बार-बार एक ही उद्देश्य से पेड़ कटान की अनुमति देने पर केंद्र ने साफ मना कर दिया। वन विभाग के मुताबिक अब इन पेड़ों को ट्रांसप्लांट करने को कहा गया है। ताकि सड़क भी चौड़ी हो जाए और पर्यावरण संरक्षण भी हो सके। संभावना है कि जगह के हिसाब से इन्हें जू व जंगलों में दोबारा लगाया जाएगा।

    सितारगंज में 1052 पेड़ प्रत्यारोपित हुए थे

    कुमाऊं में बड़े पैमाने पर पेड़ ट्रांसप्लांट का काम सितारगंज सिडकुल के विस्तार के दौरान हुआ था। तब करीब 1052 पेड़ों को प्रत्यारोपित कर दूसरी जगह शिफ्ट किया गया। दिल्ली की एक बड़ी कंपनी ने इस काम को किया था। गौलापार में बन रहे ट्रंचिंग ग्राउंड को लेकर भी यहीं योजना है।

    ऐसे होता है ट्रांसप्लांट

    ट्रांसप्लांट में पेड़ की जड़ खोदी जाती है। पहले एक तरफ की व बाद में दूसरी तरफ की जड़ को अलग किया जाता है। जड़ों में केमिकल लगाकर तीसरे माह में दूसरी जगह प्रत्यारोपण किया जाता है। लंबाई व उम्र के हिसाब से गहरा गड्ढा खोदा जाता है। इस तकनीक का सबसे अधिक इस्तेमाल साउथ इंडिया में हुआ है।

    वन विभाग चेक करेगा कंपनी का रिकॉर्ड

    ट्रांसप्लांट का काम एनएच निर्माण करने वाली कंपनी को करवाना है। इसके लिए बकायदा टेंडर करवाए जाएंगे। वन विभाग की इस काम पर पूरी नजर रहेगी। कंपनी द्वारा पूर्व में किए गए ट्रांसप्लांट के काम का रिकॉर्ड चेक करने के बाद वन विभाग फाइनल अनुमति देगा।

    इसलिए लिए किया जा रहा है ट्रांसप्‍लांट

    नित्यानंद पांडे, डीएफओ हल्द्वानी वन प्रभाग  ने बताया कि एक काम के लिए बार-बार कटान की अनुमति मिलनी मुश्किल होती है। लिहाजा इन पेड़ों को ट्रांसप्लांट करवाया जाएगा। दूसरी जगह शिफ्ट होने से पेड़ों की उम्र भी बचेगी।

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