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कृषि विवि के कुलपति ने दिया बेतुका सुझाव, बोले-खेती से पलायन कर रहे किसानों को करें दंडित

जीबी पंत विवि के कुलपति डाॅ. तेजप्रताप ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में खेती से पलायन करने वाले किसानों को दंडित किए जाने के प्रावधान से ही पलायन की समस्या से निजात मिल सकती है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 28 Apr 2019 09:43 AM (IST)Updated: Sun, 28 Apr 2019 09:43 AM (IST)
कृषि विवि के कुलपति ने दिया बेतुका सुझाव, बोले-खेती से पलायन कर रहे किसानों को करें दंडित
कृषि विवि के कुलपति ने दिया बेतुका सुझाव, बोले-खेती से पलायन कर रहे किसानों को करें दंडित

पंतनगर, जेएनएन : जीबी पंत कृषि विवि के कुलपति डाॅ. तेजप्रताप ने किसानों को लेकर बेतुका बयान दिया है। उन्‍होंने कहा है कि पर्वतीय क्षेत्रों में खेती से पलायन करने वाले किसानों को दंडित किए जाने के प्रावधान से ही पलायन की समस्या से निजात मिल सकती है। प्रावधान इसलिए जरूरी है, क्योंकि खेती यूं ही छोड़ देने से खेत बंजर हो रहे हैं। हालांकि इसके साथ उन्‍होंने ने बात को भी जोड़ा है कि पर्वतीय क्षेत्र में छोटी जोत, वन्य जीवों से फसल की बर्बादी, सिंचाई के साधनों का अभाव तथा आय का अन्य कोई साधन न होने के चलते पलायन को मजबूर हो रहे, ऐसे में किसानों की आय पांच गुना करनी बेहद जरूरी है। 

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80 हजार से एक लाख होनी चाहिए किसानों की आय
शनिवार को पत्रकारों के साथ बातचीत में डॉ. तेजप्रताप ने कहा कि एक पर्वतीय किसान परिवार के जीवनयापन के लिए विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में 80 हजार से सवा लाख रुपये सालाना आय होनी चाहिए। जबकि वर्तमान में एक किसान परिवार की आय 30 हजार रुपये बमुश्किल हो पाती है। दोगुनी आय होने से भी पर्वतीय किसानों का भला नहीं होने वाला है। सामान्य जीवनयापन के लिए कम से कम पांच गुना आय होनी जरूरी है। पहाड़ से पलायन तब तक नहीं रुकेगा, जब तक कृषि भूमि को लावारिस छोड़ कर जाने वालों पर दंड का प्रावधान लागू नहीं होगा।

सरकार की उदासीनता से विवि की शाख प्रभावित 
कुलपति ने कहा कि पंतनगर कृषि विवि राष्ट्रीय स्तर का शिक्षण एवं शोध संस्थान है, जो प्रदेश सरकार की उदासीनता से अपनी पहचान खोता जा रहा है। इसी के चलते कम भूमि व संसाधनों के बावजूद निजी कृषि संस्थान पंत विवि से काफी आगे निकल गए हैं। विवि के उन्नयन के लिए एक ब्लू प्रिंट तैयार किया गया है। इसके तहत 100 युवा वैज्ञानिकों की टीम तैयार की गई है, जिनके माध्यम से नए विजन के साथ परंपरागत कार्य प्रणाली से हटकर शिक्षा एवं शोध के कार्यक्रम चलाए जाएंगे। डॉ. प्रताप ने कहा कि जैविक खेती के संबंध में कम उत्पादन एवं मंहगे उत्पाद होने का भ्रम फैला है, जोकि निराधार है। 

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