कर्मठता की देवी और ऐसी सादगी, पद्मश्री बसंती देवी को नहीं है पीएम के मन की बात की जानकारी
दैनिक जागरण टीम ने जब उनके घर पहुंचकर उन्हें यह जानकारी दी तो बसंती ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री को कभी देखा और ना ही उनसे कभी मिली हैं। यदि देश के प्रधानमंत्री उनके कार्याें की सराहना कर रहे हैं तो यह उनके लिए बहुत बड़े सम्मान की बात है।

जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़ : देवभूमि उत्तराखंड हर क्षेत्र की असाधारण प्रतिभा से भरा पड़ा है। सूती साड़ी और बेसिक सा मोबाइल लिए जीवन भर जल, जंगल और महिलाओं को समर्पित जीवन। ऐसा है कुछ बसंती देवी का जीवन, जिन्हें न पद्म पुररस्कारों की परवाह न पीएम ने मन की बात में सराहा का पता। उन्हें तो बस मतलब है पर्यावरण से लेकर लोगों की सेवा करने से।
सीमांत जनपद के डीडीहाट तहसील निवासी पर्यावरणविद पदमश्री पुरस्कार के लिए चयनित 64 वर्षीय बसंती देवी आधुनिकता की चकाचौंध भरी जिंदगी से दूर हैं। वह आज भी साधारण सा कीपैड वाला मोबाइल फोन चलाती हैं। उसे भी वह ठीक से इस्तेमाल करना नहीं जानती हैं। रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में जब बसंती देवी के कार्याें का जिक्र कर उनके संघर्षेों काे सराहा तो बसंती को इस बारे में भी कोई जानकारी नहीं थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में बसंती देवी के कार्याें की सराहना करते हुए लोगों से उनसे प्रेरणा लेने की अपील की। कहा कि बसंती देवी का पूरा जीवन संघर्षमय रहा है। कम उम्र में ही उनके पति का निधन हो गया और वह कौसानी लक्ष्मी आश्रम में रहने लगीं। आश्रम में रहकर ही उन्होंने नदी बचाने के लिए प्रयास किया और पर्यावरण संरक्षण के लिए असाधारण योगदान दिया। महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में भी उन्होंने काफी काम किया है, लेकिन बसंती देवी को पीएम द्वारा उनके कार्याें की सराहना करने की कोई जानकारी नहीं थी।
दैनिक जागरण टीम ने जब उनके घर पहुंचकर उन्हें यह जानकारी दी तो बसंती ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री को कभी देखा नहीं है और ना ही उनसे कभी मिली हैं। यदि देश के प्रधानमंत्री उनके कार्याें की सराहना कर रहे हैं तो यह उनके लिए बहुत बड़े सम्मान की बात है। इसके लिए वह पीएम को धन्यवाद कहना चाहती हैं। बसंती का कहना है कि वह साधा जीवन उच्च विचार के सिद्धांत पर चलती हैं। उत्कृष्ट कार्याें के लिए बसंती को वर्ष 2016 में नारी शक्ति पुरस्कार व वर्ष 2017 में फेमिना वूमन जूरी अवार्ड से सम्मानित मिल चुका है।
कोविड के चलते दो साल पहले लौटीं घर वापस
बसंती देवी डीडीहाट तहसील के दिगरा की रहने वाली हैं। उनका मायका ख्वांकोट है। 12 वर्ष की उम्र में उनका विवाह हो गया था। कुछ ही समय बाद वर्ष उनके पति की मृत्यु हो गई। छोटी सी उम्र की विधवा होने के बाद भी उन्होंने कभी हिम्म्त नहीं हारी और इसके बाद उन्होंने कौसानी स्थित लक्ष्मी आश्रम में अपने जीवन की नई पारी की शुरूआत की। आश्रम में उन्होंने 12वीं कक्षा तक शिक्षा ग्रहण की और अध्यापन का कार्य भी किया। साथ ही पर्यावरण संरक्षण और महिला सशक्तीकरण के लिए कार्य करने में जुट गईं। 42 वर्ष तक लक्ष्मी आश्रम में सेवा देने के बाद वह दो वर्ष पूर्व काेवेिड काल में अपने पिता के पिथौरागढ़ नगर स्थित भदेलबाड़ा वापस लौटीं। तब से वह यहां अकेली रह रही हैं। उनके छोटे भाई भूपेंद्र सिंह सामंत का परिवार वर्तमान में हल्द्वानी में रहता है।
आस-पड़ोस के लोगों को भी नहीं थी महान शख्सियत की जानकारी
बसंती देवी के बारे में भदेलबाड़ा क्षेत्र के लोगों को भी कोई जानकारी नहीं थी। वह अचानक पदमश्री सम्मान से सुर्खियों में आई हैं। उनके पड़ोसी गोकुल सिंह सौन ने बताया कि बसंती देवी दो वर्ष पूर्व ही अपने घर आई हैं। उनके बारे में स्थानीय लोगों को कम ही पता है। इतनी महान शख्सियत का पड़ोसी होना उनके लिए गौरव की बात है।
सहयोग मिला तो सीमांत में करेंगी कार्य
बसंती देवी ने बताया कि सीमांत जनपद पिथौरागढ़ की मूल निवासी होने के बावजूद उनका सारा जीवन कौसानी में ही व्यतीत हुुआ है। वह पिथौरागढ़ के लोगों को कम ही जानती हैं। उन्होंने कहा कि यदि यहां के लोग उनका सहयोग करेंगे तो वह सीमांत में भी पर्यावरण व महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में कार्य करने को तैयार हैं।
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