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हार्इकोर्ट का बड़ा आदेश, काजीरंगा की तर्ज पर कॉर्बेट में बनाया जाए बाघों का पुनर्वास केंद्र

हार्इकोर्ट ने काजीरंगा नेशनल पार्क की तर्ज पर कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों का पुनर्वास सेंटर स्थापित करने के निर्देश दिए हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Wed, 05 Sep 2018 09:08 PM (IST)Updated: Thu, 06 Sep 2018 09:31 AM (IST)
हार्इकोर्ट का बड़ा आदेश, काजीरंगा की तर्ज पर कॉर्बेट में बनाया जाए बाघों का पुनर्वास केंद्र
हार्इकोर्ट का बड़ा आदेश, काजीरंगा की तर्ज पर कॉर्बेट में बनाया जाए बाघों का पुनर्वास केंद्र

नैनीताल, [जेएनएन]: हाईकोर्ट ने कार्बेट नेशनल पार्क में घायल बाघों को राहत पहुंचाने व उनके पुनर्वास के लिए काजीरंगा नेशनल पार्क की तर्ज पर रेस्क्यू सेंटर स्थापित करने का आदेश दिए हैं। कोर्ट ने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व (सीटीआर) के क्षेत्रफल की सही जानकारी नहीं देने तथा पूर्व के आदेशों के अनुपालन में हीलाहवाली करने पर वन विभाग के अफसरों को फटकार भी लगाई है। मृत बाघों के बिसरा के संबंध में सही जानकारी न देने पर हाईकोर्ट ने अधिकारियों पर तल्ख टिप्पणी की। कहा कि, 'ये अफसर सरकार को डुबो देंगे, लानत है ऐसे अधिकारियों पर।' 

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बुधवार को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की खंडपीठ हिमालयन युवा ग्रामीण संस्थान की इस संबंध में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। मंगलवार को खंडपीठ ने बाघों की मौतों की बिसरा रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत करने के आदेश दिए थे। खंडपीठ के समक्ष मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक व निदेशक कॉर्बेट नेशनल पार्क ने बयान दिया गया था कि मृत बाघों की बिसरा रिपोर्ट उसी दिन जांच के लिए प्रयोगशाला भेज दी जाती है, मगर खंडपीठ ने जांच रिपोर्ट में पाया कि बिसरा रिपोर्ट उसी दिन नहीं भेजी गई थी। 

इस पर खंडपीठ ने कहा कि अधिकारी कोर्ट को गुमराह कर रहे हैं। गलती पकड़ में आने के बाद अधिकारियों ने इस मामले में कोर्ट के समक्ष खेद जताया। कोर्ट ने हैरानी जताई कि अफसरों को कॉर्बेट पार्क के क्षेत्रफल का तक ज्ञान नहीं है। सुनवाई के दौरान अपर मुख्य सचिव रणवीर सिंह के अलावा मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक, वन संरक्षक, डीएफओ रामनगर मौजूद थे। मामले की सुनवाई के लिए खंडपीठ ने अगली तिथि 13 सितंबर नियत की है।

कोर्ट की टिप्पणी 

'ये अफसर सरकार को डुबो देंगे। लानत है ऐसे अधिकारियों पर। जिन अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होने को कहा जाता है, उनके स्थान पर हर तारीख पर दूसरे अफसर पेश हो रहे हैं, जिनको कुछ पता ही नहीं रहता। बेजुबानों के हित में ये अफसर चुप्पी साधे हुए हैं।'

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