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    Nainital में खतरे की आहट, टिफिनटॉप पर भूस्खलन के बाद नयना पीक के निचले इलाकों की आबादी दहशत में

    Updated: Sat, 10 Aug 2024 10:35 AM (IST)

    Tiffintop Landslide शहर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल टिफिनटॉप में भारी भूस्खलन के बाद अब शहर की सबसे ऊंची चोटी नयना पीक के निचले इलाकों की आबादी की चिंता बढ़ गई है। नयना पीक चोटी से हिमालय की बंदरपूंछ चौखंबा केदारनाथ नीलकंठ कामेट माणा हाथी पर्वत नंदा घुंघटी त्रिशुल नंदा देवी नंदाकोट व पंचाचूली आदि चोटियों का विहंगम नजारा दिखता है।

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    Tiffintop Landslide: नयना पीक पहाड़ी के ट्रीटमेंट को लेकर सिस्टम ने पीठ फेरी

    किशोर जोशी, नैनीताल। Tiffintop Landslide: शहर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल टिफिनटॉप में भारी भूस्खलन के बाद अब शहर की सबसे ऊंची चोटी नयना पीक के निचले इलाकों की आबादी की चिंता बढ़ गई है। वन विभाग की ओर से पिछले साल नयना पीक के निचले इलाकों में ब्रिटिशकालीन दीवारों की तर्ज पर करीब तीन स्तर पर ढाई सौ मीटर कैचपिट बनाने का करीब 52 लाख का प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया है।

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    टिफिनटॉप में भूस्खलन के बाद अब वन विभाग इस प्रस्ताव के तकनीकी परीक्षण की तैयारी में है।  नयना पीक चोटी से हिमालय की बंदरपूंछ, चौखंबा, केदारनाथ, नीलकंठ, कामेट, माणा, हाथी पर्वत, नंदा घुंघटी, त्रिशुल, नंदा देवी, नंदाकोट व पंचाचूली आदि चोटियों का विहंगम नजारा दिखता है।

    इसके अलावा नयना पीक चोटी से नैनीताल का शानदार नजारा कैमरे में कैद करना चोटी पर जाने वाले हर पर्यटक का ख्वाब होता है। इसको करीब से देखने के लिए वहां ट्रैकिंग कर पर्यटक पहुंचते हैं। हाल ही में वन विभाग ने यहां जाने वाले पर्यटकों पर भी शुल्क लगा दिया और चौकी स्थापित की।

    1988 में हुआ था भारी भूस्खलन

    28 अगस्त 1888 के साथ ही 1928 से 1936 तक समुद्र तल से 2612 या 8569 फिट ऊंची नयना पीक से चट्टानों के टूटने व बड़े बोल्डरों का अपर माल रोड तक आने का हवाला भी है। इन भूस्खलनों में कोई क्षति की सूचना नहीं है लेकिन दस सितंबर 1987 तथा 1988 में फिर इस क्षेत्र में भारी भूस्खलन हुआ। इसमें पहाड़ी पर 60 मीटर दरार आ गई और इसकी जद में आए मकानों को नुकसान हुआ।

    यह भी पढ़ें- Nainital आने वाले पर्यटक अब नहीं देख पाएंगे Tiffintop, भारी भूस्खलन से डोरथी सीट का अस्तित्व खत्म

    यहां तक कि मलबे की चपेट में आने से करीब सौ पेड़ धराशायी हो गए। 1988 में नयना पीक के भूस्खलन में 61 भवनों को नुकसान हुआ तो 470 परिवार प्रभावित हुए। नयना पीक चोटी की निचली आबादी के लोग लंबे समय से प्रशासन से पहाड़ी के ट्रीटमेंट की मांग करते रहे हैं, लेकिन अब तक पूरी तरह ट्रीटमेंट नहीं किया गया।

    लंबे समय से नयना पीक चोटी से छोटे-बड़े बोल्डर पंगोट-किलबरी रोड तक आ रहे हैं। रिेटेनिंग वाल लंबे समय से क्षतिग्रस्त हालत में है। किलबरी-पंगोट रोड से लगे हंस निवास, शहीद सैनिक स्कूल क्षेत्र, मेलरोज कम्पाउंड, शेरवानी, ओकपार्क , बलरामपुर हाउस क्षेत्र की बड़ी आबादी भावी खतरे को लेकर चिंता में है।

    ब्रिटिशकाल में बनी है सुरक्षा दीवार

    नयना पीक की पहाड़ी से गिरने वाले पत्थरों को देखते हुए ब्रिटिशकाल में कैचपिट आधारित सुरक्षा दीवार बनाई गई थी। पिछले साल नगरपालिका क्षेत्र के तत्कालीन वन क्षेत्राधिकारी नितिन पंत की ओर से तीन स्तर की कैचपिट पर आधारित करीब ढाई सौ मीटर दीवार निर्माण के लिए करीब 52 लाख का प्रस्ताव तैयार किया था, जो तकनीकी समिति के परीक्षण के स्तर पर ही है।

    इधर नयना पीक की पहाड़ी पर भूस्खलन के बाद आपदा प्रबंधन विभाग के विशेषज्ञों ने पहाड़ी का निरीक्षण किया था, लेकिन अब तक ना तो सिफारिशें ही सार्वजनिक हुई, ना ट्रीटमेंट के प्रयास। वन क्षेत्राधिकारी प्रमोद तिवारी के अनुसार प्रस्ताव के आधार पर बजट आवंटन के प्रयास किए जाएंगे।

    नैनीताल के नयना पीक की चोटी पर्यटकों के आकर्षण के साथ ही सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। पहाड़ी में पहले भी भूस्खलन हुआ है, प्रशासन व वन विभाग को पहाड़ी के ट्रीटमेंट के प्रति संजीदा होना चाहिए।-  प्रो. अजय रावत, पर्यावरणविद