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    दावानल की घटनाओं से सूख रहे जलश्रोत, पानी वाष्प बनने के साथ ही बदल रही अपनी दिशा

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Mon, 03 Jun 2019 07:06 PM (IST)

    साल दर साल दावाग्नि की बढ़ती घटनाओं से जलस्रोत सूखते जा रहे हैं। आग लगने से जमीन का पानी वाष्प बनने के साथ ही अपनी दिशा बदल दे रहा है जिसका असर स्रोतों पर पड़ रहा है।

    दावानल की घटनाओं से सूख रहे जलश्रोत, पानी वाष्प बनने के साथ ही बदल रही अपनी दिशा

    संदीप मेवाड़ी, हल्द्वानी। तेजी से सूखते जलस्रोत, नौले व धारों के पीछे अहम कारण जंगलों में भड़क रही आग भी है। साल दर साल दावाग्नि की बढ़ती घटनाओं से जलस्रोत सूखते जा रहे हैं। आग लगने से जमीन का पानी वाष्प बनने के साथ ही अपनी दिशा बदल दे रहा है, जिसका असर स्रोतों पर पड़ रहा है। जलसंस्थान के अधिशासी अभियंता विशाल कुमार ने बताया कि अफसरों के मुताबिक, पहाड़ों में पानी जमीन से एक से दो मीटर नीचे से बहता हुआ एक स्थान पर पहुंचता है। यहां से स्रोत बनकर पानी बहता हुआ नौलों व धारों तक पहुंचता है और फिर गधेरों से होता हुआ नदियों तक पहुंचता है। आग लगने से जमीन के नीचे बहने वाला पानी वाष्प बनकर उड़ जाता है। इसके अलावा गर्मी से मिट्टी चटक कर कटती है, जिससे पानी अपना रास्ता बदल देता है और स्रोत के बजाय दूसरे स्थानों को चला जाता है।

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    अगर जंगलों में आग की घटनाएं इसी तेजी से बढ़ीं तो कुछ सालों बाद मिट्टी जमकर काफी सख्त हो जाएगी, जिससे बरसात में मिट्टी पानी नहीं सोख पाएगी और ये बहकर आगे चला जाएगा। बरसात में अचानक नदियों व नालों में बाढ़ आना भी जमीन की पानी शोषण क्षमता घटने का अहम कारण है। अगर जल्द जंगलों में आग की घटनाओं में रोकथाम के कड़े प्रयास नहीं किए गए तो पहाड़ों के जलस्रोतों, नौलों व धारों में आस्तित्व संकट में पड़ जाएगा।

    64 क्यूसेक पहुंचा गौला का जलस्तर

    हल्द्वानी : भीषण गर्मी व जंगलों में लग रही आग से हल्द्वानी की लाइफलाइन कही जाने वाली गौला नदी का जलस्तर भी तेजी से कम हो रहा है। शुक्रवार को नदी का जलस्तर घटकर 64 क्यूसेक रह गया। हर दिन दो से चार क्यूसेक तक की कमी नदी के पानी में आ रही है। इसमें से 30 क्यूसेक पानी जलसंस्थान को आपूर्ति के लिए दिया जाता है। ऐसे में मात्र 36 क्यूसेक पानी ही सिंचाई के लिए बच रहा है। इतने कम पानी से खेतों की सिंचाई होना असंभव होने लगा है। रोस्टर के हिसाब से नहरों में पानी चलाने के बावजूद नदी के समीप के हिस्सों की भूमि की सिंचाई हो पा रही है।

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