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भारत-नेपाल सीमा पर लगने वाले ऐतिहासिक जौलजीबी मेले की रौनक बढ़ी, जाने इसके बारे में सबकुछ

भारत-नेपाल सीमा पर नदी के संगम स्थल पर 14 नवंबर से शुरू हुआ जौलजीबी मेला अब पूरे शबाब पर है। जानिए इसके बारे में सबकुछ ।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 18 Nov 2019 07:05 PM (IST)Updated: Tue, 19 Nov 2019 10:52 AM (IST)
भारत-नेपाल सीमा पर लगने वाले ऐतिहासिक जौलजीबी मेले की रौनक बढ़ी, जाने इसके बारे में सबकुछ
भारत-नेपाल सीमा पर लगने वाले ऐतिहासिक जौलजीबी मेले की रौनक बढ़ी, जाने इसके बारे में सबकुछ

लजीबी/धारचूला, जेएनएन : भारत-नेपाल सीमा पर नदी के संगम स्थल पर 14 नवंबर से शुरू हुआ जौलजीबी मेला अब पूरे शबाब पर है। लेकिन इस बार भारतीय क्षेत्र के जौलजीबी मेेले में वो रौनक नहीं है जो नेपाल के जौलजीबी मेले में है। पहली बार नेपाल में मेले को सरकारी संरक्षण मिला है। सुविधाओं को भी बढ़ाया गया है। मेला स्थल तक सड़क का निर्माण होने के कारण इस वर्ष नेपाल के व्‍यापारी और खरीदार आसानी से मेला स्‍थल तक पहुंच जा रहे हैं। ऐसे में उनकी भारत पर निर्भरता कम हुई है। जिसका असर अब भारतीय मेले पर पड़ रहा है।

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नेपाल ने इस बार मेले का भव्‍य उद्घाटन किया

जौलजीबी मेले का सरकारी उद्घाटन बाल दिवस के दिन हो गया था। दो वर्ष पूर्व तक जौलजीबी मेले का एक ही उद्घाटन होता था जो भारत में होता था। उद्घाटन अवसर पर नेपाल के प्रशासनिक अधिकारी और जनप्रतिनिधि मौजूद रहते थे। बीते वर्ष से नेपाल में भी मेले के उद्घाटन की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। बीते वर्ष नेपाल का उद्घाटन सामान्य था परंतु इस वर्ष नेपाल में मेले का उद्घाटन भव्य तरीके से हुआ। भारत की तर्ज पर ही यहां पर भी सरकार के स्तर से उद्घाटन हुआ है। इस मौके पर रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।

रंगारंग कार्यक्रमों की धूम

जौलजीबी मेले में दोनों देशों में बने सांस्कृतिक मंच में नेपाल के सांस्कृतिक मंच का जलबा बना है। जहां पर सुबह से ही रंगारंग कार्यक्रमों की धूम मची है। भारतीय मेलार्थी भी नेपाल पहुंच रहे हैं। वही भारत के सांस्कृतिक मंच पर शाम से देर रात तक रंगारंग कार्यक्रमों की धूम रहती है। दोनों देशों में स्थानीय उत्पाद सहित चीन व्यापार से आयातित  सामान आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

नेपाल में धूम-धड़ाका, भारत में नजर आ रही है पुलिस

इस वर्ष संक्रांति से मेले का आकर्षण नेपाल हो चुका है। पहली बार नेपाल में मेले का भव्य आयोजन किया जा रहा है। काली नदी किनारे भारत से अधिक आकर्षक मेला क्षेत्र बना हुआ है। स्थानीय नेपाल के विधायक ने हुमली-जुमली के घोड़ों के व्यापार स्थल के विस्तार के लिए तीस लाख रुपए दिए हैं। क्षेत्र का विकास कर दिया गया है। घोड़ों के बाजार तक सड़क बन चुकी है। नेपाल के जौलजीबी में इस वर्ष पहली बार सड़क पहुंची है। नेपाल से भारी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं ।

तिब्बती सामान की मेले में लगी है डेढ़ सौ से अधिक दुकानें

जौलजीबी मेले में भारत क्षेत्र में भारत चीन व्यापार से आयातित सामान की डेढ़ सौ से अधिक दुकानें लगी हैं। नेपाल में भी तिब्बती सामान की काफी अधिक संख्या में दुकान लग चुकी हैं।

तिब्बती सामान की हो रही मांग

मेले में तिब्बत से आयातित चरु  कंबल, साबरी जूते, जैकेट, पैजामा, ट्रैक सूट, शर्ट, मफलर, चौरगाय की पूंछ, छिरबी और दूध से बनी टाफियों की मांग सबसे अधिक है। छिरबी तिब्बत में याक के दूध से बना होता है, जो बेहद पौष्टिक माना जाता है। छोटे-छोटे चौकोर आकार में बनी छिरबी को सुपारी की तरह चबाया जाता है। वहीं तिब्बत चीन निर्मित दूध से बनी टॉफियां सबसे अधिक बिक रही हैं। 135 रु पए का एक पैकेट बिकता है।

काले भट्ट से लेकर काला राजमा बिकने पहुंचा

स्थानीय उत्पादों में अब पूर्व की भांति काफी कमी आ चुकी है। सीमित मात्रा में काले भट्ट, पहाड़ी उड़द, काला और रंग विरंगा राजमा, जम्बू, गंधारयण, सूखी मूली सहित अन्य सामान पहुंचा है। जो काफी सीमित मात्रा में है। सबसे विशिष्ट माना जाने वाला काला राजमा तीन सौ रु पए किलो बिक रहा है।

स्थानीय ऊनी वस्त्रों की भी रहती है मांग

अतीत में जौलजीबी मेले में स्थानीय बुनकरों द्वारा निर्मित ऊनी उत्पाद भी मेले में पहुंचा है। जिसमें दन, चुटका, पंखी और पस्मीना, छोटे ऊनी आसन, सोफासेट के ऊनी कवर सहित अन्य सामान है। अलबत्त्ता तिब्बत से आयातित चुरु  कंबल के चलते इनकी मांग कम है। मेले में लकड़ी के बर्तन पहुंचे हैं। प्रतिवर्ष मेले में आने वाले मैदान से हलवाई भी पहुंचे हैं। मुरादाबाद से बर्तन, काशीपुल, रामपुर और बरेली से गद्दे, रजाई के व्यापारी भी पहुंचे हैं ।

जौलजीबी मेले का इतिहास

बींसवी सदी के शुरुआत में अस्कोट के पाल राजा गजेंद्र बहादुर पाल ने 1914 में जौलजीबी मेला प्रारंभ किया था। तब यह क्षेत्र अति दुर्गम था। यहां से सामान खरीदने के लिए लोगों को पैदल अल्मोड़ा या टनकपुर जाना पड़ता था। स्थानीय जनता को मेले में एक साथ साल भर के लिए जरूरत का सामान मिले इसके लिए गजेंद्र पाल ने तल्ला-मल्ला अस्कोट के केंद्र बिंदु जौलजीबी में मेला आयोजित करने का निर्णय लिया। इसके लिए आगरा, मथुरा, बरेली, दिल्ली, रामपुर मुरादाबाद, मेरठ, काशीपुर, रामनगर , अल्मोड़ा, हल्द्वानी और टनकपुर के व्यापारियों को आमंत्रित किया। मित्र राष्ट्र नेपाल और पड़ोसी देश तिब्बत के व्यापारियों को बुलाया गया। नेपाल, तिब्बत से भी व्यापारियों और मेलार्थियों के पहुंचने से मेला अंतर्राष्ट्रीय स्तर का हो गया और उत्त्तर भारत के प्रमुख मेले में शामिल हो गया। मेला एक माह तक लगता था। वर्ष 1962 के भारत चीन युद्ध के बाद तिब्बत की सहभागिता समाप्त हो गई। तीस साल बाद भारत-चीन व्यापार प्रारंभ होने से अब भारतीय व्यापारी तिब्बती सामान की दुकान लगाते हैं। बीते दो वर्ष से नेपाल में भी मेले का उद्घाटन अलग होने लगा है। भारत में बाल दिवस पर तो नेपाल में मार्गशीर्ष संक्रांति पर मेले का उद्घाटन होने लगा है।

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