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पति के गुजरने के बाद किरन ने खेती कर बदली अपनी किस्‍मत

गौलापार चोरगलिया के लाखनमंडी निवासी किरन की यह कहानी पहली नजर में किसी आम महिला जैसी ही लगती है, लेकिन जब वो उन परिस्थितियों के बारे में बताती हैं तब संघर्षों का पता चलता है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 23 Oct 2018 11:59 AM (IST)Updated: Tue, 23 Oct 2018 09:22 PM (IST)
पति के गुजरने के बाद किरन ने खेती कर बदली अपनी किस्‍मत
पति के गुजरने के बाद किरन ने खेती कर बदली अपनी किस्‍मत

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : मैं आपको सच बताऊं, मैं दिल्ली में पली-बढ़ी। शादी से पहले मैंने किताब में केवल क से किसान पढ़ा था। इससे ज्यादा खेती के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानती थी। अचानक सबकुछ बदल गया। परिस्थितियां कुछ इस तरह बदलीं कि पति की विरासत और बच्चों की परवरिश के लिए फावड़ा उठाना पड़ा। इसके अलावा और कोई जरिया नहीं था। छोटे बच्चों को घर में अकेला छोड़कर सर्द मौसम में रात को खेतों में पानी लगाना बेहद कठिन काम था। कभी-कभी जंगली जानवरों की आवाजें डराती थीं, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। पांच एकड़ खेती की कमान अकेले संभाली। जरूरत पड़ी तो ट्रैक्टर चलाना भी सीखा। आज बच्चे बढ़े हो गए हैं और खेती से होने वाली कमाई से वे कॉलेज में पढ़ रहे हैं, फिर भी मैंने खेती करना नहीं छोड़ा।

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गौलापार चोरगलिया के लाखनमंडी गांव की रहने वाली किरन बेलवाल की यह कहानी पहली नजर में किसी आम महिला जैसी ही लगती है, लेकिन जब किरन अपनी उन परिस्थितियों के बारे में बताती हैं, जब आराम को छोड़कर उन्हें ज्यादा मेहनत वाले खेती के काम को अपनाना पड़ा तो उसे सुनकर हर कोई भावुक हो जाता है। 2003 में किरन के पति अजय बेलवाल का निधन हुआ। इसके बाद जैसे किरन की दुनिया ही बदल गई। दो छोटे-छोटे बच्चे थे, रोजगार का कोई जरिया नहीं था।

दिल्‍ली लाैटने की बजाए पति की विरासत चुनी

किरन चाहती तो वापस दिल्ली जैसे किसी महानगर में नौकरी कर सकती थी, लेकिन पति की विरासत खेती को संभालने के लिए शहरी आराम छोड़कर उन्होंने गांव में ही रहना पसंद किया। वह भी ऐसे हालात में जब उन्हें खेती-किसानी का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं था। फिर भी वह खुद फावड़ा लेकर खेतों में उतरीं और सुबह से शाम तक का वक्त खेतों में बिताया। छोटे बच्चों के साथ घर की देखभाल की जिम्मेदारी भी सिर पर थी। एक तरफ खेत में खड़ी फसल की चिंता तो दूसरी और बच्चों के भविष्य की। खेतों में की गई दिन-रात की मेहनत के बलबूते आर्थिक रूप से मजबूती मिली और बच्चों की स्कूली शिक्षा भी पूरी हुई।

खुद चलाती हैं ट्रैक्टर

खेतों में ट्रैक्टर चलाने का काम ज्यादातर पुरुष ही करते हैं, लेकिन अपने गांव में किरन बेलवाल ने पुरुषों के वर्चस्व वाले इस काम में भी अपने आपको साबित किया। खेतों की जुताई करने के लिए वह स्वयं ही ट्रैक्टर चलाती हैं। उपज को बाजार तक पहुंचाना और मोल-भाव करना भी किरन को बखूबी आता है।

मेहनत का फल जरूर मिलता है

ऐसा कोई काम नहीं हैं, जिसमें बिना मेहनत के ही सफलता मिल जाए। मेहनत में विश्वास करने वाली किरन का मानना है कि खेती के काम में बहुत मेहनत लगती है, लेकिन खेत में लहलहाती फसल को देखकर ऐसा लगता है जैसे हमें हमारी मेहनत का फल मिल गया। कभी-कभार ऐसा भी लगता है कि मेहनत बेकार चली जाएगी, जबकि आज अपने खेतों और कॉलेज जाते बच्चों को देखती हूं तो यकीन हो जाता है कि मेहनत का फल देर से ही सही मिलता जरूर है।

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