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    दर्जनों आदमखोर बाघ व तेंदुओं का शिकार करने वाले महान लेखक जिम कॉर्बेट के बारे में जानिए

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Sun, 19 Apr 2020 08:34 AM (IST)

    महान शिकारी पर्यावरणविद फोटोग्राफर और लेखक जिम कार्बेट की जिंदगी जंगल के रहस्य और एक खूबसूरत इंसान का दस्तावेज है।

    दर्जनों आदमखोर बाघ व तेंदुओं का शिकार करने वाले महान लेखक जिम कॉर्बेट के बारे में जानिए

    हल्द्वानी, जेएनएन : महान शिकारी, पर्यावरणविद, फोटोग्राफर और लेखक जिम कार्बेट की जिंदगी जंगल के रहस्य और एक खूबसूरत इंसान का दस्तावेज है। आप उनके बारे में जितना जानेंगे जिज्ञासा उतनी ही बढ़ती जाएगी। दर्जनों खतरनाक बाघ और तेंदुओं से लोगों की जिंदगी बचाने वाले जिम ने कुछ वक्त के बाद शिकार करना छोड़ दिया और उनके संरक्षण के लिए प्रयास करने लगे। एक शिकार करने के बाद जिम को आभास हुआ कि दरअसल इंसानों की आबादी में जानवरों की दखल नहीं बल्कि जानवरों की बस्ती में इंसानों की दखल बढ़ने लगी है। ऐसे में उनेक संरक्षण पर ध्यान देना जरूरी हो गया है। ब्रिटिश आर्मी में कर्नल रहे जेम्स एडवर्ड कॉर्बेट उर्फ़ जिम कॉर्बेट 1907 से 1938 के बीच करीब 19 बाघों और 14 तेंदुओं का शिकार किया था। वे जानवरों और पक्षियों को आवाज़ से उन्हें पहचान लेते थे। आज जिम की डेथ एनवर्सरी है। इस मौके पर हम उनके जीवन से जुड़े अलग-अलग पहलुओं के बारे में जानेंगे।

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    16 भाई-बहनों में आठवें नंबर की संतान थे जिम

    तीन पीढ़ियों पहले जिम के पूर्वज आयरलैंड छोड़कर हिंदुस्तान बसे थेजिम काॅर्बेट 25 जुलाई, 1885 को क्रिस्टोफर कॉर्बेट के घर जन्मे 16 भाई-बहनों में आठवें नंबर की संतान थे। छह साल की उम्र में ही पिता की मौत हो जाने और आर्थिक संक्रट के कारण उन्होंने रेलवे में नौकरी शुरू कर दी। अपना घर उन्होंने नैनीताल जिलेे के कालाढूंगी में बनाया, जो अब एक संग्रहालय के रूप में संरक्षित है। तब संयुक्त उत्तर प्रदेश (अब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड) के लोग जानवरों खासकर बाघ और तेंदुओं से बहुत परेशान थे। उस वक़्त जिम कॉर्बेट की गिनती सबसे अच्छे शिकारियों में होती थी। ऐसे में कुमाऊं में जब भी किसी आदमखोर की दहशत होती थी तब जिम को बुलाया जाता था। उन्होंने कुमाऊं में कई आदमखोर बाघा और तेंदुओं को शिकार कियाकॉर्बेट बाघों और अन्य जानवरों के शरीर को अपने घर ले जाकर उसकी जांच-पड़ताल करते थे। उसके बाद उनके सिर और खालों को दीवारों पर सजा देते थे। ऐसी ही एक जांच के दौरान उन्हें एक बड़ी अजीब जानकारी हाथ लगी, जिसने उनकी सोच और आदत दोनों बदल दी।

    इस कारण से छोड़ दिया वन्यजीवों का शिकार करना

    एक बार जब जिम शिकार किए बाघों की जांच कर रहे थे तो उन्होंने देखा कि कई के शरीर में पहले से ही दो-तीन घाव मौजूद थे। जिम ने समझा कि इन्हीं घावों और जख्मों के चलते वन्यजीव आदमखोर बन जाते हैं। इसी कारण वो इंसानों पर हमला कर देते थे। ये सब देखकर जिम को एहसास हुआ कि सुरक्षा इंसानों को बाघों से नहीं, बल्कि बाघों को इंसानों से चाहिए। इसी कड़ी में उन्होंने यूनाइटेड प्रोविंस में अपनी पहचान और सिफारिश लगाकर एक ऐसे पार्क का बनवाया, जहां ये जीव सुरक्षित रह सकें। उसका नाम था हेली नेशनल पार्क। बाद में उस पार्क का नाम बदलकर जिम कॉर्बेट के ऊपर जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क कर दिया गया।

    जिम की किताबें, उनके जीवन का दस्तावेज

    जिम शब्दों के भी जादूगर थे। उन्होंने अपनी जिंदगी के अनुभवों को कई किताबों में साझा किया है। उनकी मुख्य किताबें हैं ‘मैन-ईटर्स ऑफ़ कुमाऊं’, ‘माय इंडिया’, ‘जंगल लोर’, ‘जिम कॉर्बेट्स इंडिया’ और ‘माय कुमाऊं’ हैं उनकी किताब ‘जंगल लोर’ को ऑटोबायोग्रफी माना जाता है। वो बच्चों के लिए भी एक तरह की क्लासेज चलाते थे जहां उन्हें अपनी नेचुरल हेरिटेज को बचाने और उसके संरक्षण की बातें सिखाते थे। जिम कॉर्बेट अपनी बहन मैगी कॉर्बेट के साथ गर्नी हाउस में रहते थे। जिसे उन्होंने 1947 में केन्या जाते वक्त कलावती वर्मा को बेच दिया था, जिसे बाद में कॉर्बेट म्यूजियम के रूप में स्थापित कर दिया गया है।

    जिम का ट्री हाउस देखने आई थीं महारानी एलिज़ाबेथ

    भारत की आज़ादी के पहले जिम अपनी बहन मैगी के साथ नैनीताल के ‘गर्नी हाउस’ में रहते थे। भारत की आज़ादी के बाद 1947 में जिम केन्या शिफ्ट हो गए। वो वहां पेड़ों पर झोपड़ी बनाकर रहते थे। उनके ट्री हाउस में एक बार ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ भी घूमने आई थीं। ये बात है साल 1952 की, जिस साल किंग जॉर्ज छह की मौत हुई थी। हालांकि यहां भी उन्होंने अपना लेखन जारी रखा था। उनके योगदान के लिए उन्हें 1928 में ‘कैसर-ए-हिंद’ मेडल से सम्मानित किया गया। उनके जीवन पर ढेरों फ़िल्में बनीं।उनके पीछे उनकी किताबें, उनकी यादें, उनकी बंदूक, उनका ट्री हाउस, उनके नाम पर बना टाइगर रिज़र्व रह गया। आखिरी और छठी किताब 19 अप्रैल 1955 को केन्या की नएरी नदी के पास बने सेंट पीटर चर्च में लॉर्ड बेडेन-पॉवेल की कब्र के पास उन्हें सुपुर्द-ए-ख़ाक किया गया।

    कारपेट साहिब को नहीं भूला कभी अपना देश

    मार्टिन बूथ ने उनकी आत्मकथा ‘कारपेट साहिब: लाइफ आॅफ जिम कॉर्बेट’ में लिखा कि जिम केन्या जाकर भी ‘अपना देश’ नहीं भुला सके। दरअसल उनके नौकर राम सिंह व अन्य ग्रामीण जिम को कारपेट साहिब कहकर बुलाते थे। जिम ने नैनीताल बैंक में अपना खाता बंद किया। आखिरी वक्त में केन्या जाते समय वह बैंक को लिख कर दे गए कि उनके नौकर राम सिंह को उस खाते से हर महीने 10 रुपये दे दिए जाएं। जिम के अपनी आख़िरी सांस लेने तक राम सिंह को यह इमदाद मिलती रही। गढ़वाल के राम सिंह ने उनकी ज़िंदगी भर सेवा की थी। कालाढूंगी का एक प्लाट भी उन्होंने उसके नाम कर दिया जिसे जिम के जाने के बाद राम सिंह ने बेच दिया और गढ़वाल के अपने गांव वापस लौट गया। बंबई से केन्या के लिए एसएस आर्नोडा के जहाज़ में अपना सफ़र शुरू करने से पहले जिम जब अपने घर से निकलने लगे तो बाहर खड़े ग्रामीणों ने नम आंखों से अपने कार्पेट साहब को विदाई दी। वहीं लखनऊ के रेलवे स्टेशन तक साथ छोड़ने गए राम सिंह को उन्होंने ट्रेन चलने के पहले गले लगा लिया। ‘राम सिंह फफक कर रो पड़ा’।

    दुनिया की सबसे खतरनाक बाघिन का कार्बेट ने किया था शिकार

    भारत के इतिहास में सबसे बदनाम आदमखोर चंपावत की बाघिन रही है, जिसने कोई एक दो या दस बीस नहीं बल्कि 436 लोगों को मौत के घाट उतारा। पहले इस बाघिन ने नेपाल में लोगों को अपना शिकार बनाया। उसके बाद इसे भारत की ओर खदेड़ दिया गया भारत में उत्तराखंड के चंवापत जिले में इस बाघिन ने आतंक मचाया। बाघिन का खौफ इतना था कि रात अंधेरे में नहीं बल्कि दिन दहाड़े लोगों का शिकार किया। इसे 1907 में विश्‍व विख्यात शिकारी और बाद में सरंक्षक बने जिम कार्बेट ने इस बाघिन का शिकार किया था।

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