'अपनी संपत्ति की सुरक्षा करना हर नागरिक का है अधिकार', आखिर उत्तराखंड हाई कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?
Nainital High Court नैनीताल उच्च न्यायालय ने भूमि विवाद मामले में एक आईपीएस अधिकारी कमांडेंट 40वीं बटालियन पीएसी हरिद्वार पर सख्त टिप्पणी की। अदालत ने निजी व्यक्ति के हक में आए सिविल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा जिसमें उसे अपनी संपत्ति की चारदीवारी करने की अनुमति दी गई थी। न्यायालय ने कहा कि संपत्ति की सुरक्षा करना हर व्यक्ति का अधिकार है जिसे नकारा नहीं जा सकता।

जागरण संवाददाता, नैनीताल। Nainital High Court : हाई कोर्ट ने भूमि विवाद से जुड़े एक सिविल मामले में एक आईपीएस अधिकारी, कमांडेंट 40वीं बटालियन पीएसी, हरिद्वार पर कड़ी टिप्पणी करते हुए एक निजी व्यक्ति के विरुद्ध दीवानी मामले में दायर अपील को खारिज कर दिया।
न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि अपीलकर्ता न केवल सरकारी अधिकारी है, बल्कि भारतीय पुलिस सेवा का एक उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारी भी है, इसलिए अपने अधिकार क्षेत्र में प्रत्येक नागरिक के अधिकारों की रक्षा करना न केवल नैतिक बल्कि उसका कानूनी कर्तव्य भी है।
साथ ही यह भी कहा कि अपनी संपत्ति की चारदीवारी बनाकर उसकी सुरक्षा करना हर व्यक्ति का अधिकार है, जिसे नकारा नहीं जा सकता और न ही इसमें कटौती की जा सकती है।
ये है मामला
दरअसल हरिद्वार में बीएचईएल की ओर से 1961 में अधिग्रहण किया गया भूमि के एक टुकड़े से संंबंधित विवाद है, यह भूमि पीएसी बटालियन से सटी है। इस भूमि को बाद में सिंचाई विभाग को हस्तांतरित कर दिया गया, विभाग ने इसे निजी व्यक्ति को बेच दिया।
मामला सिविल कोर्ट में पहुंचा तो 2020 में निजी व्यक्ति के पक्ष में निर्णय आया, जिसमें उसे अपनी संपत्ति के चारों ओर चारदीवारी बनाने की अनुमति दी गई, बाद में उस निर्णय को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा की एकलपीठ ने नौ अप्रैल को पारित निर्णय में सिविल कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखते हुए कहा कि अपनी संपत्ति की चारदीवारी बनाकर उसकी सुरक्षा करना हर व्यक्ति का अधिकार है, जिसे नकारा नहीं जा सकता और न ही इसमें कटौती की जा सकती है।
यूपी सरकार ने किया था अधिग्रहण
यूपी सरकार ने 1961 में बीएचईएल के लिए जमीन अधिग्रहित की थी, जिसे बाद में सिंचाई विभाग को हस्तांतरित कर दिया गया था, संबंधित संपत्ति को 1986 में अधिशासी अभियंता टिहरी परियोजना को हस्तांतरित कर दिया गया था। अधिशासी अभियंता ने फरवरी 2013 में इस जमीन के दो भूखंड निजी व्यक्तियों रिंकू दास और काम दास को सौंप दिए।
इसके बाद नवंबर और दिसंबर 2013 में पंजीकृत बिक्री अभिलेखों के जरिए सीता राम और विजय पाल ने रिंकू दास और काम दास से संपत्तियां खरीद लीं। सीता राम ने सिविल कोर्ट में अपनी अपील में कहा था कि प्रतिवादी (पीएसी कमांडेंट) का संबंधित संपत्ति पर कोई हित, ग्रहणाधिकार या अधिकार नहीं है, लेकिन इसके बाद उसने बिना किसी आधार के उसके कब्जे और स्वामित्व में जबरदस्ती हस्तक्षेप करने की धमकी दी।
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