नगर निगम को लाखों की चपत लगाकर हाट बाजार संचालक खुद हो रहे मालामाल
जिस हाट बाजार से नगर निगम की माली हालत सुधरने की उम्मीद थी वहीं हाट बाजार निगम के लिए सिर दर्द बन गए हैं।
हल्द्वानी, जेएनएन : जिस हाट बाजार से नगर निगम की माली हालत सुधरने की उम्मीद थी, वहीं हाट बाजार निगम के लिए सिर दर्द बन गए हैं। निकाय क्षेत्र में आने वाले 80 फीसद से अधिक हाट बाजारों से निगम को एक पैसे की आमदनी नहीं हो रही है। हाट बाजार संचालकों को राजनीतिक शह प्राप्त होने से जहां निगम को हर माह लाखों की चपत लग रही है, वहीं ठेकेदारों की पौ बारह है। शुरुआत में नगर निगम के अधिकारियों ने मौका मुआयना कर कई हाट बाजारों का संचालन बंद कराया। पुलिस की मौजूदगी में गए अधिकारियों की ठेकेदारों से तीखी बहस तक हो गई। सूत्र बताते हैं कि अधिकांश हाट बाजारों का संचालन नेता व राजनीतिक दलों में पकड़ रखने वाले लोगों के करीबी कर रहे हैं। आए दिन बढ़ते दबाव के बाद निगम की टीम ने धीरे-धीरे हाट बाजारों की तरफ देखना कम कर दिया है। इससे अवैध हाट बाजार संचालकों के हौसले बढ़ गए हैं। निगम सूत्रों की मानें तो शहर में 12 से 15 हाट बाजार संचालित हो रहे हैं। जिला पंचायत की दरों के अनुसार ही देखा जाए तो हाट बाजार से निगम को सालाना 70 से 80 लाख की आय हो सकती है।
जिला पंचायत की होती थी 40 लाख आमदनी
परिसीमन से पहले जिला पंचायत क्षेत्र में आने वाले सात हाट बाजारों से जिला पंचायत की सालाना करीब 40 लाख रुपये की आय होती थी। निगम में आने के बाद दो हाट बाजार संचालकों ने निगम में शुल्क जमा कराया है।
यह भी है मनमानी की वजह
नगर निगम के पास हाट बाजार संचालन की अपनी कोई नीति नहीं है। निगम बोर्ड में नियमावली बनने तक जिला पंचायत की दरों में 20 फीसद अधिक शुल्क पर हाट बाजार देने पर सहमति बनी थी। कारोबारी बढ़ी दर देना तो दूर, पुराने रेट भी नहीं दे रहे हैं। आचार संहिता प्रभावी होने से हाट बाजार संचालन एक्ट नहीं बन पाया है। शनि बाजार लगाने वाले ठेकेदार से रंगदारी मांगने की शिकायत एक दिन पहले निगम अधिकारियों के पास पहुंची है। विजेंद्र चौहान, सहायक नगर आयुक्त ने बताया कि हाट बाजार संचालन एक्ट नहीं बन पाया है। इस वजह से प्रभावी रूप से काम नहीं हो पा रहा है। आचार संहिता हटने के बाद प्रभावी एक्ट लाया जाएगा। ठेकेदारों की मनमानी नहीं चलने दी जाएगी।
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