सात समंदर पार की नौकरी छोड़कर हिमांशु ने जैविक खेती में बनाया कॅरियर nainital news
राज्य सरकार भले ही रिवर्स पलायन का राग अलाप रही हो मगर तमाम उत्साही युवा बिना सरकारी प्रोत्साहन के ही देश ही नहीं विदेशों में भी अपने उत्पाद भेजकर लोगों के आइकन बन गए हैं।
नैनीताल, किशोर जोशी : राज्य सरकार भले ही रिवर्स पलायन का राग अलाप रही हो, मगर तमाम उत्साही युवा बिना सरकारी प्रोत्साहन के ही देश ही नहीं, विदेशों में भी अपने उत्पाद भेजकर लोगों के 'आइकन' बन गए हैं। वह मेहनत के बलबूते कॅरियर बनाने के साथ ही माटी का मोह त्यागकर देश के तमाम शहरों में पलायन कर चुके युवाओं को 'बंद यो घरबार, तू ऐ जा हो पहाड़' का संदेश दे रहे हैं। ऐसे ही युवाओं में शामिल हैं मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के खेरदा व हल्द्वानी निवासी हिमांशु जोशी।
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान मुक्तेश्वर में वैज्ञानिक डॉ. आरसी जोशी के बेटे हिमांशु जोशी नौकरी के सिलसिले में 2002 में विदेश चले गए थे। 14 साल तक वह दुबई, मस्कट में टेलीकॉम कंपनी के प्रोजेक्ट डिपार्टमेंट में आइटी के हेड पद पर कार्यरत रहे। दिसंबर 2015 में पिता की तबियत खराब हुई तो फरवरी 2016 में घर आ गए और कोटाबाग के पतलिया के कूशा नबाड़ में अपनी 14 बीघा जमीन पर जैविक खेती शुरू कर दी। संकल्प लिया कि वह रासायनिक खाद मुक्त खेती करेंगे। इसके बाद खुद ही 'दशरथ मांझी' बनकर बंजर भूमि को आबाद करना आरंभ किया। तीन साल पहले हिमांशु ने अमरूद 650 पौधों के अलावा आम, लीची, कटहल, बेर, अंजीर, लीची, चीकू आदि के पेड़ लगाए। इसके अलावा मल्टीपल फॉर्मोकल्चर के तहत अरहर, गहत, चना, उड़द, भट आदि दलहनी फसलों के साथ टमाटर, हल्दी, अदरक की खेती भी आरंभ की। हिमांशु ने फार्म का नाम जंगल के समीप होने की वजह से 'फॉरेस्ट साइड फार्म' रखा है। अब हिमांशु पूरी तरह जैविक रूप से उगाई गई फल, सब्जियों व दालों को देश के तमाम शहरों के साथ ही कुरियर से विदेश भी भेज रहे हैं।
पॉली क्रॉपिंग मॉडल ने आसान की राह
पहाड़ों पर खेती आसान नहीं होती, मगर हिमांशु ने इस धारणा को बदल दिया। वह बताते हैं कि पॉली क्रॉपिंग मॉडल की मदद से उनकी राह आसान हो गई। इस बारे में वह बताते हैं कि जब एक स्थान पर किसान एक ही फसल उगाता है तो उसे मोनो क्रॉपिंग मॉडल कहते हैं, जबकि पॉली क्रॉपिंग में विभिन्न प्रकार की खेती एक साथ की जाती है। हॉर्टिकल्चर के साथ ही मसाले, हल्दी, गहत, उड़द, अरहर, अमरूद आदि एक साथ उगाए जाते हैं। इस मॉडल में किसान को एक से नुकसान हुआ तो दूसरे से फायदा हो जाता है। अमेरिका, कोरिया में ऐसी खेती काफी प्रचलित है। इंटरनेट से उन्होंने इसका अध्ययन किया और खेती की शुरू की।
एक माह में डालते हैं दस लीटर गौमूत्र
हिमांशु बताते हैं कि फार्म में की जा रही खेती की मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए 15 दिन से एक माह के भीतर दस लीटर गौमूत्र का छिड़काव करते हैं। इसे उनके पड़ोसी मुहैया कराते हैं। हिमांशु ने बताया कि उद्यान विभाग के अधिकारी जरूर फार्म देखने आए, मगर अब तक उन्हें किसी तरह की सरकारी प्रोत्साहन नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि सरकार को यदि रिवर्स पलायन को बढ़ावा देना है तो स्वरोजगार के इच्छुक युवाओं को मदद देनी चाहिए। बताया कि इस काम के लिए शुरुआत में उनके परिवार के लोग भी अनिच्छुक थे, मगर अब वे भी काम में हाथ बंटा रहे हैं।
यह भी पढ़ें : युवाओं ने पहाड़ के उत्पादों को बनाया ब्रांड, मल्टीनेशनल कंपनियों की तरह बढ़ा रहे कारोबार
यह भी पढ़ें : नैनीताल चिडिय़ाघर में ठंड की वजह से बदला मैन्यू, वन्यजीवों को मिलेगा ये डाइट