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ट्रैकिंग और पर्यटन के लिए हिमालय खुला, लेकिन कोरोना के कारण पसरा है सन्नाटा

तीन जून से उच्च हिमालय आधिकारिक रूप से खुल चुका है। छह महीने बाद खुले उच्च हिमालय में जून से होने वाली पर्यटकों व स्थानीय लोगों की चहल-पहल कोरोना वायरस की भेंट चढ़ चुकी है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Wed, 03 Jun 2020 08:08 PM (IST)Updated: Thu, 04 Jun 2020 01:20 PM (IST)
ट्रैकिंग और पर्यटन के लिए हिमालय खुला, लेकिन कोरोना के कारण पसरा है सन्नाटा
ट्रैकिंग और पर्यटन के लिए हिमालय खुला, लेकिन कोरोना के कारण पसरा है सन्नाटा

धारचूला-पि‍थौरागढ, तेज सिंह गुंज्याल : तीन जून से उच्च हिमालय आधिकारिक रूप से खुल चुका है। छह महीने बाद खुले उच्च हिमालय में जून से होने वाली पर्यटकों व स्थानीय लोगों की चहल-पहल कोरोना वायरस की भेंट चढ़ चुकी है। केएमवीएन के यात्रा पड़ाव सुनसान हैं तो ट्रैकिंग रास्‍तों को ट्रेकरों का इंतजार है। उच्च हिमालय में होमस्टे भी पर्यटकों के नहीं पहुंचने से बंद हैं। भारत चीन व्यापार के लिए भारतीय व्यापारियों के गुंजी में अपने गोदामों में सामान पहुंचाने की जद्दोजहद भी नहीं है।

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सीमा तक सड़क बनने के बाद भी सन्नाटा

यह वर्ष उच्च हिमालय में सहज प्रवेश के लिए अनुकूल बना। चीन सीमा तक सड़क तैयार है, लेकि‍न पहली बार कैलास मानसरोवर यात्रा और भारत-चीन व्यापार नहीं हाे सकेगा। बीते वर्षों तक जून से प्रारंभ होने वाली कैलास मानसरोवर यात्रा के लिए केएमवीएन के कर्मी बूंदी से लेकर नाबीढांग तक तैनात हो जाते थे और पड़ावों को तैयार किया जाता था। यात्रा को लेकर अधिकारी, कर्मचारियों की आवाजाही रहती थी। आदि कैलास यात्रा के लिए कुटी, ज्यौलिंकोंग में तैयारी जोर शोर से चलती थी।

जून के शुरुआत से पहुंचने लगते थे ट्रैकर

जून से ही प्रारंभ होने वाले भारत चीन व्यापार के व्यापारी धारचूला से अपना सामान उच्च हिमालय में स्थित भारतीय मंडी गुंजी में सामान पहुंचाना प्रारंभ करते थे। नजंग से लेकर गुंजी तक के मार्ग में घोड़े , खच्चरों से लेकर व्यापारियों व उनके सहायकों की आवाजाही रहती थी। उच्च हिमालय के खुलते ही ऊं पर्वत, आदि कैलास तक ट्रैकिंग करने वाले ट्रैकर्स पहुंचने लगते थे। छह माह की बर्फ पिघलने के बाद आकर्षित कर रहे ऊं पर्वत, आदि कैलास से लेकर अन्य स्थलों को अब पर्यटकों का इंतजार है।

केवल ग्रामीण पहुंच हैं गांवों तक

उच्च हिमालय में केवल गांव गुलजार हुए हैं। माइग्रेशन करने वाले अधिकांश ग्रामीण अपने गांवों में पहुंच कर खेतीबाड़ी कर रहे हैं। अन्य गतिविधियां नहीं होने से चहल पहल नहीं है। गब्र्यांग गांव निवासी कृष्णा गब्र्याल, पूर्व चेयरमैन अशोक नबियाल, बूंदी गांव निवासी महेंद्र बुदियाल, नाबी गांव निवासी भीम राज नबियाल, गुंजी गांव निवासी हरीश गुंज्याल का कहना है कि कोरोना संक्रमण के चलते इस समय पर्यटकों का पहुंचना संभव नहीं है। जिसके चलते जून माह से गुलजार रहने वाले उच्च हिमालय में इस बार सुनसानी है।

उच्च हिमालय में पर्यटन पूरी तरह ठप

प्रबंधक केएमवीएन पिथौरागढ़ दिनेश गुरुरानी ने बताया कि कोरोना के चलते ग्रीष्मकाल में उच्च हिमालय में पर्यटन की सारी गतिविधियां ठप हैं। कैलास यात्रा, आदि कैलास यात्रा सहित ट्रेकिंग तक नहीं होने से निगम को भारी नुकसान हुआ है। इस सीजन में धारचूला पर्यटक आवास गृह भरा रहता था। देश के विभिन्न राज्यों से ट्रैकर्स और पर्यटक पहुंचते थे। जिससे निगम सहित स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता था। इस वर्ष सभी बंद है।

यहां ट्रैक के लिए आते हैं पर्यटक

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की तीन हिमालयी घाटियों में अभी तक रालम, मिलम और दारमा घाटी के ट्रैकिंग रू ट पर ही ट्रैकर आते रहे हैं। ये तीनों क्षेत्र अलग-अलग घाटियों में हैं। वहीं पर्यटन को आगे बढ़ाने के लिए कार्य कर रही संस्था कॉसमास एक नया ट्रैक रूट खोजा है। जो दारमा घाटी के अंतर्गत सीपू पास से खुलता है। इस रूट से धारचूला तहसील की व्यास घाटी से दारमा और मुनस्यारी की तहसील की जौहार घाटी आपस में जुड़ती है। सीपू पास से रालम, टोला गांव होते हुए मिलम तक पहुंचा जा सकता है। इस दौरान पंचाचूली के साथ ही रालम और मिलम ग्लेशियरों को भी पर्यटक टच करेंगे। यह पहला ट्रैकिंग रू ट होगा जो 4800 मीटर से 5400 मीटर तक की ऊंचाई पर फैला हुआ है। यह रू ट 120 किमी. लंबा होगा। उच्च हिमालय में इस तरह का ट्रैकिंग रू ट अभी तक सिर्फ लद्दाख में है जहां दुनिया भर का पर्यटक ट्रैकिंग के लिए पहुंचता है। बागेश्‍वर जिले से पिंडारी, कफनी और सुंदरढूंगा में भी पर्यटक ट्रैकिंग के लिए जाते हैं।

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