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    हाई कोर्ट ने 70 साल के बुजुर्ग के भरण‑पोषण दावे की पुनः जांच का दिया आदेश

    Updated: Wed, 19 Nov 2025 11:05 AM (IST)

    नैनीताल हाई कोर्ट ने 70 वर्षीय व्यक्ति के भरण-पोषण के दावे पर पारिवारिक न्यायालय को दोबारा विचार करने का आदेश दिया। अदालत ने पाया कि निचली अदालत ने पहचान और वैवाहिक स्थिति जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं की पर्याप्त जांच नहीं की थी। महिला ने खुद को बुजुर्ग की दूसरी पत्नी बताया है, जबकि बुजुर्ग ने उसे पूर्व नौकरानी बताया। उच्च न्यायालय ने सभी तथ्यों पर विचार कर नए सिरे से निर्णय लेने को कहा है।

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    विधि संवाददाता, नैनीताल हाई कोर्ट ने नैनीताल पारिवारिक न्यायालय को एक 70 वर्षीय व्यक्ति के भरण-पोषण के दावे पर निर्णय लेने का निर्देश दिया है। निचली न्यायालय ने उसे अपनी दूसरी पत्नी का भरण-पोषण करने का आदेश दिया था। पीठ ने पाया कि पहचान, वैवाहिक स्थिति और दावे की प्रामाणिकता से संबंधित तथ्यात्मक पहलुओं की आवश्यक स्तर तक जांच नहीं की गई थी।

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    न्यायाधीश न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की एकलपीठ के समक्ष व्यक्ति ने बताया कि उसकी केवल एक पत्नी थी, जिसका 2010 में निधन हो गया था जबकि भरणपोषण की दूसरी दावेदार ने उनके घर में नौकरानी के रूप में काम किया था, इसके अलावा कुछ नहीं।

    उसने दलील दी कि अदालत के समक्ष उपस्थित महिला कमला देवी थी, जो पेंशन लाभ प्राप्त करने के लिए उसकी पत्नी होने का झूठा दावा कर रही थी। दावेदार ने अपना नाम धनुली देवी पत्नी खड़क सिंह बताया। जब उससे उसकी वैवाहिक स्थिति के बारे में पूछा गया, तो उसने बताया कि खड़क सिंह की दो पत्नियां थीं, जिनमें से एक की बहुत पहले मृत्यु हो गई थी, वह दूसरी पत्नी थी। उन्होंने आगे बताया कि विवाहेतर संबंधों से दो बच्चे, एक बेटी और एक बेटा, पैदा हुए और अब दोनों विवाहित हैं।

    उन्होंने आगे बताया कि सिंह ने उनकी बेटी की शादी में कन्यादान की पारंपरिक रस्म निभाई थी। पहली पत्नी की मृत्यु की विशिष्ट तिथियों या अपनी शादी की तिथि के बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने कहा कि वह अनपढ़ हैं और उन्हें सही तिथि याद नहीं हैं। उन्होंने अनुरोध किया कि उन्हें अंतरिम भरण-पोषण दिया जाए और ज़ोर देकर कहा कि वह इससे आधिक कुछ नहीं चाहतीं।

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    सिंह ने न्यायालय को बताया कि उनकी पत्नी का निधन वर्ष 2010 में हो गया था और इसके समर्थन में उन्होंने पहले ही मृत्यु प्रमाण पत्र दाखिल कर दिया है। उन्होंने कहा कि अदालत के समक्ष पेश की गई महिला केवल उनकी पूर्व नौकरानी थी और उसका उनसे कोई वैवाहिक संबंध नहीं था। उच्च न्यायालय ने यह भी ध्यान में रखा कि रिकॉर्ड में रखे गए आधार कार्ड में उनका नाम धनुली देवी लिखा है, जबकि पति का नाम खड़क सिंह है।

    न्यायालय ने कहा, पहचान, वैवाहिक स्थिति और दावे की प्रामाणिकता से संबंधित तथ्यात्मक पहलुओं की विद्वान पारिवारिक न्यायालय द्वारा अपेक्षित स्तर की जांच नहीं की गई है। इन मुद्दों का निर्धारण केवल मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्यों के मूल्यांकन के बाद ही किया जा सकता है, जो कि निचले न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में है। एकलपीठ ने मामले को पारिवारिक न्यायालय के समक्ष नए सिरे से विचार के लिए वापस भेज दिया।