पांच हेक्टेयर से कम क्षेत्र को वनों की श्रेणी से बाहर रखने के सरकार के आदेश पर हाइकोर्ट की रोक
हाइकोर्ट ने पांच हेक्टेयर से कम क्षेत्र में फैले वनों को वनों की श्रेणी से बाहर रखने से संबंधित सरकार के 19 फरवरी के आदेश पर रोक लगा दी है।
नैनीताल, जेएनएन : हाइकोर्ट ने पांच हेक्टेयर से कम क्षेत्र में फैले वनों को वनों की श्रेणी से बाहर रखने से संबंधित सरकार के 19 फरवरी के आदेश पर रोक लगा दी है। सुनवाई वरिष्ठ न्यायमुर्ति सुधांशु धूलिया व न्यायमूर्ति एनएस धानिक की खंडपीठ में हुई। इस मामले काे लेकर जनहित याचिका लगाई है नैनीताल निवासी प्रो अजय रावत ने।
प्रो रावत ने पीआइएल में कही है ये बात
प्रो. रावत ने याचिका में कहा है कि सरकार ने 19 फरवरी 2020 को एक नया आदेश जारी कर पांच हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल वाले वनों को वनों की श्रेणी से बाहर रखा है। इससे पहले भी सरकार ने 10 हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल वाले वनों को वन नहीं माना था। जिस पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी परन्तु सरकार ने अपने आदेश में संशोधन कर 10 हैक्टेयर से पाचं हेक्टेयर कर दिया। याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि फारेस्ट कन्जर्वेशन एक्ट 1980 के अनुसार प्रदेश में 71 प्रतिशत वन क्षेत्र घोषित है, जिसमें वनों की श्रेणी को भी विभाजित किया हुआ है लेकिन इसके अलावा कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जिनको किसी भी श्रेणी में नहीं रखा गया । इन क्षेत्रों को भी वन क्षेत्र की श्रेणी शामिल किया जाए, जिससे इनके दोहन या कटान पर रोक लग सके।
सुप्रीम कोर्ट के फैसल का भी दिया गया है हवाला
सुप्रीम कोर्ट ने 1996 के अपने आदेश गोडा वर्मन बनाम केंद्र सरकार में कहा है कि कोई भी वन क्षेत्र चाहे उसका मालिक कोई भी हो उनको वनो की क्षेत्र के श्रेणी में रखा जाएगा और वनों का अर्थ क्षेत्रफल या घनत्व से नहीं है। विश्वभर में भी जहाँ 0.5 प्रतिशत क्षेत्र में पेड़ पौधे है या उनका घनत्व 10 प्रतिशत है तो उनको भी वनों की श्रेणी में रखा गया । सरकार के इस आदेश पर वन एवं पर्यारण भारत सरकार ने कहा है कि प्रदेश सरकार वनों की परिभाषा न बदलें। उत्तराखण्ड में 71 प्रतिशत वन होने कारण कई नदियों व सभ्यताओं के अस्तित्व बना हुआ है।
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