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    चिंता का विषय : सीमांत में बढ़ा गुलदार और भालूओं का मानव से संघर्ष

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Mon, 09 Sep 2019 09:33 PM (IST)

    पर्वतीय क्षेत्रों में वन्य जीवों और मानवों के बीच संघर्ष की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। भालू और गुलदार की आबादी तक हो रही दस्तक अब खौफ का पर्याय बनने लगी है।

    चिंता का विषय : सीमांत में बढ़ा गुलदार और भालूओं का मानव से संघर्ष

    पिथौरागढ़, जेएनएन : पर्वतीय क्षेत्रों में वन्य जीवों और मानवों के बीच संघर्ष की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। भालू और गुलदार की आबादी तक हो रही दस्तक अब खौफ का पर्याय बनने लगी है। साल भर में ये दोनों जीव आबादी क्षेत्रों में 15 से अधिक लोगों पर हमला कर चुके हैं। हालांकि आधा दर्जन से अधिक गुलदारों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी है। गुलदार और भालू जैसे खतरनाक जानवर मानव बस्तियों की और बढ़ रहे हैं। अभी तक पालतू और आवारा जानवरों को निशान बनाने वाले ये वन्यजीव अब मानवों पर हमलावर हो रहे हैं। पिछले एक वर्ष के दौरान डेढ़ दर्जन से अधिक लोग गुलदार और भालुओं के हमले में घायल हो चुके हैं। जानवर महिलाओं और बच्चों को अधिक निशाना बना रहे हैं। हमलों में मानव मारे जा रहे हैं तो जंगली जानवर भी शिकार बन रहे हैं। पिछले आठ माह में सीमांत जिले के अलग-अलग क्षेत्रों में आठ गुलदार मृत पाए गए, हालांकि भालुओं के मृत पाए जाने का कोई मामला सामने नहीं आया है।

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    मानव और वन्य जंतुओं के बीच बढ़ रहे संघर्ष को लेकर वन विभाग के अपने तर्क हैं। वन विभाग इसके लिए मानवों को ही जिम्मेदार मानता है। वन क्षेत्राधिकारी दिनेश जोशी का कहना है कि नगरों से लगे जंगलों में लोग बड़ी संख्या में पिकनिक मनाने के लिए पहुंच रहे हैं। इस दौरान मटन और चिकन के बचे हुए अवशेष जंगलों में छोड़ दे रहे हैं। इससे गुलदार मानव बस्तियों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। हाल के वर्षो में मवेशियों का उपयोग हो जाने के बाद उन्हें छोड़ देने का चलन भी बढ़ा है। जो नगरों और आस-पास के जंगलों में घूमते रहते हैं। इससे भी गुलदार नगरों के नजदीक आ रहे हैं। उनका कहना है गांव खाली हो रहे हैं और खेत खलिहानों में भी जंगल विकसित हो रहे हैं जिससे जंगलों का दायरा बढ़ रहा है और जंगली जानवर गांवों तक पहुंच रहे हैं।

    बहरहाल पहाड़ में बढ़ रही इस समस्या की जड़ तक पहुंचने के लिए अभी तक कोई ठोस अध्ययन नहीं हुआ है। विनय भार्गव, प्रभागीय वनाधिकारी, पिथौरागढ़ का कहना है कि नगरों के आस-पास तक पहुंचने वाले गुलदारों में अधिकांश मादा या फिर छोटी उम्र के गुलदार होते हैं। मादा गुलदार गर्भावस्था के दौरान जंगल में शिकार के लिए लंबी दूरी तय नहीं कर पाती है, आसान शिकार की तलाश में ये नगरों तक पहुंच जाती हैं। कम उम्र के गुलदारों के लिए भी जंगल में शिकार करना कठिन होता है, वे शिकार के पीछे ज्यादा दौड़ नहीं पाते हैं।

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