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हिमालय में जहरीली हवा घोलने वाले कारणों पर जीबी पंत शोध संस्थान रिसर्च शुरू nainital news

ब्लैक कार्बन व अन्य जहरीली गैसों से महफूज माने जाने वाले हिमालयी राज्य की आबोहवा पर अब देश प्रदेश के वैज्ञानिकों की पैनी नजर रहेगी।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Fri, 15 Nov 2019 10:26 AM (IST)Updated: Fri, 15 Nov 2019 10:26 AM (IST)
हिमालय में जहरीली हवा घोलने वाले कारणों पर जीबी पंत शोध संस्थान रिसर्च शुरू nainital news
हिमालय में जहरीली हवा घोलने वाले कारणों पर जीबी पंत शोध संस्थान रिसर्च शुरू nainital news

अल्मोड़ा, जेएनएन : जहरीली गैसों से महफूज माने जाने वाले हिमालयी राज्य की आबोहवा पर अब देश प्रदेश के वैज्ञानिकों की पैनी नजर रहेगी। ताजा शोध में हिमाचली ग्लेशियरों में पीएम 0.5 माइक्रोन वाले 217 नैनोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर ब्लैक कार्बन पाया गया। इसे देखते हुए वैज्ञानिकों का कहना है कि जहरीली हवा से बेजार दिल्ली, एनसीआर, हरियाणा आदि से हवा का रुख अगर उत्तराखंड की ओर हुआ तो यहां की प्राणवायु भी दूषित हो सकती है। चिंता इसलिए भी कि रिसाइकिल का पुख्ता बंदोबस्त न होने से पर्वतीय जिलों में रोज कई टन प्लास्टिक युक्त कचरा खुले में जलाया जा रहा। जो हर लिहाज से घातक है।

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देश को सर्वाधिक पर्यावरणीय सेवा देने वाले उत्तराखंड की प्राणवायु सुरक्षित रहे, इसी मकसद से जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण शोध एवं सतत् विकास संस्थान कोसी कटारमल (अल्मोड़ा) के वैज्ञानिकों ने वनाग्नि आदि जनित पी-10 व पी-2.5 माइक्रोन से नीचे स्तर के खतरनाक कणों की मौजूदगी पर अध्ययन शुरू किया है। साथ ही भारतीय अंतरिक्ष संगठन (इसरो) के प्रोजेक्ट पर ब्लैक कार्बन की वास्तविक स्थिति पर भी अध्ययन किया जा रहा है। प्रदूषणमापी 'हाईस्प्लिट मॉडल' के जरिये जुटाए गए आंकड़ों पर सालाना शोध रिपोर्ट बनेगी, जिसे केंद्र सरकार को भेजेंगे ताकि भावी दीर्घकालीन विस्तृत योजना या नीति तैयार की जा सके।

इसलिए बढ़ी है चिंता

पर्वतीय क्षेत्रों में दिवाली के आसपास ब्लैक कार्बन अधिकतम 6130 व न्यूनतम 573 नेनोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर जा पहुंचा। जो घातक स्तर है। वहीं पर्टिकुलेट मैटर (पीएम) 10 माइक्रोन से नीचे स्तर के खतरनाक कण 94.32 तो पीएम 2.5 माइक्रोन से नीचे स्तर के कण 39.3 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पहुंच गए। इनका मानक 100 व 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। वैज्ञानिक आगाह करते हैं कि आतिशबाजी से इतर रोज खुले में टनों प्लास्टिक युक्त कचरा जलता रहा तो पीएम 2.5 माइक्रोन वाले घातक कणों के साथ ही सबसे खतरनाक डाईऑक्सिन हवा में जहर घोलेगी।

इसरो ने दिया है बड़ा जिम्मा

जीबी पंत राष्ट्रारीय हिमालयी पर्यावरण शोध एवं सतत विकास संस्थान कोसी कटारमल (अल्मोड़ा) स्थित सेंटर फॉर इन्वायरमेंटल एसेसमेंट एंड क्लाइमेट चेंज के प्रमुख वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जेसी कुनियाल छह माह पूर्व यहां स्थापित अत्याधुनिक एथैलोमीटर एइ-31 (ब्लैक कार्बन के लिए) तथा पर्टिकुलेट सैंपलर (पीएम 10 व 2.5 माइक्रोन) के जरिये हिमालयी आबोहवा पर नजर रखे हैं। ब्लैक कार्बन संबंधी अध्ययन इसरो के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र स्पेस फिजिक्स लेबोट्री तिरुवनंतपुरम की वित्त पोषित प्रोजेक्ट है। वर्ष 2007 में कुल्लू (हिमाचल) के बाद अब यह प्रोजेक्ट कोसी कटारमल अल्मोड़ा स्थित संस्थान से संचालित किया जा रहा। इसका लाभ हिमालयी राज्यों समेत पूरे देश को मिलेगा।

सालाना शोध रिपोर्ट केंद्र को भेजेंगे

डॉ. जेसी कुनियाल, मुख्य अन्वेषक व वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि इसरो व संस्थान के प्रोजेक्ट पर अध्ययन शुरू कर दिया है। प्रदूषण का आकलन हवा की दिशा पर निर्भर करेगा। प्रदूषित क्षेत्र की हवा का आकलन कर ही सालाना शोध रिपोर्ट बना केंद्र को भेजेंगे। खुले में कचरा जलाना बंद न किया तो उत्तराखंड की हवा को जहरीला होते देर न लगेगी। पीएम 2.5 माइक्रोन वाले घातक कणों से श्वास रोग व कैंसर तक हो सकता है। पहाड़ की हवा में मानक से 15-20 फीसद ज्यादा जहरीले कण मिल सकते हैं।

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