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नैनीताल में शत्रु संपत्ति मेट्रोपोल होटल में लगी भीषण आग, लपटें देख दहशत में लोग

नैनीताल में मल्‍लीताल शत्रु संपत्ति मेट्रोपोल होटल में सोमवार देर शाम भीषण आग लग गई। आग इतनी विकराल थी कि उसकी लपटें तल्लीताल से तक दिखाई दे रही थीं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 04 Mar 2019 08:12 PM (IST)Updated: Mon, 04 Mar 2019 08:12 PM (IST)
नैनीताल में शत्रु संपत्ति मेट्रोपोल होटल में लगी भीषण आग, लपटें देख दहशत में लोग
नैनीताल में शत्रु संपत्ति मेट्रोपोल होटल में लगी भीषण आग, लपटें देख दहशत में लोग

नैनीताल, जेएनएन। नैनीताल में मल्‍लीताल शत्रु संपत्ति मेट्रोपोल होटल में सोमवार देर शाम भीषण आग लग गई। आग इतनी विकराल थी कि उसकी लपटें तल्लीताल से तक दिखाई दे रही थीं। शाम को करीब सात बजे मेट्रोपोल होटल परिसर के भवन में अचानक आग की लपटें उठने लगीं। देखते ही देखते आग ने दोमंजिला भवन को चपेट में ले लिया। सूचना पर दमकल वाहनों ने आग बुझाना शुरू किया। इस दौरान आसपास के लोगों समेत व्यापारियों ने आग बुझाने में सहयोग किया। फिलहाल आग पर काबू पाने के प्रयास किये जा रहे हैं। जिलाधिकारी विनोद कुमार सुमन ने एडीएम हरबीर सिंह को भेजा है।

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अपने दौर का सबसे बड़ा होटल था मेट्रोपोल
नगर के अपने दौर के सबसे बड़े 41 कमरे के मेट्रोपोल होटल का निर्माण मि रेंडल नाम के अंग्रेज ने किया था। बाद में यह राजा महमूदाबाद की संपत्ति हो गई। देश की आजादी के बाद यह संपत्ति राजा के इकलौते चश्मो-चिराग राजा अमीर मोहम्मद खान के हिस्से आयी, लेकिन इस पर अनेक लोगों का कब्जा रहा। इनमें से एक प्रमुख श्री लूथरा 1995 तक इसे होटल के रूप में चलाते रहे। वर्ष 2005 में न्यायिक प्रक्रिया के बाद इसे प्रशासन द्वारा शत्रु संपत्ति घोषित कर तथा कब्जे छुड़वाकर राजा के हवाले कर दिया गया, लेकिन बाद में दो अगस्त 2010 को न्यायालय के आदेशों पर इसे वापस जिला प्रशासन ने बतौर कस्टोडियन कब्जे में ले लिया था।

पहले भी यहां लग चुकी है भीषण आग
अरबों रुपये की प्रशासन के कब्जे वाली शत्रु संपत्ति मेट्रोपोल होटल में गत 26 नवम्बर 2013 की रात्रि भीषण अग्निकांड हो गया था, जिसमें होटल के बॉइलर रूम व बैडमिंटन कोर्ट तथा 14 कमरों वाला हिस्सा कमोबेश खाक हो गया था। तब भी होटल में कोई सुरक्षा प्रबंध नहीं थे और इसके बाद भी प्रशासन ने इसकी सुरक्षा के कोई प्रबंध नहीं किये हैं। गौरतलब है कि इस संपत्ति के मैदान को प्रशासन ग्रीष्मकाल में पार्किग के रूप में प्रयोग करता है, जिससे लाखों रुपये की आय भी प्राप्त होती है। राजा महमूदाबाद के प्रतिनिधि अब्दुल सत्तार ने बताया कि पूर्व में प्रशासन की ओर से यहां पुलिस कर्मी गार्ड के रूप में तैनात रहता था, लेकिन पिछले विस चुनाव के दौरान फोर्स की कमी होने पर गार्ड हटा तो उसके बाद तैनात ही नहीं किया गया।

जानें किसे कहते हैं शत्रु संपत्ति
1947 में देश के बंटवारे, 1962 में चीन, 1965 और 1971 पाकिस्तान के खिलाफ हुई जंगों के दौरान या उसके बाद भारत छोड़कर पाकिस्तान या चीन चले गए नागरिकों को भारत सरकार शत्रु मानती है और उनकी संपत्तियों काे शत्रु संपत्ति पाकिस्तान, चीन के अलावा दूसरे देशों की नागरिकता ले चुके लोगों और कंपनियों की संपत्ति भी शत्रु संपत्ति में शामिल है। ऐसी संपत्तियों की देखरेख के लिए सरकार एक कस्टोडियन की नियुक्ति करती है। भारत सरकार ने 1968 में शत्रु संपत्ति अधिनियम लागू किया था, जिसके तहत शत्रु संपत्ति को कस्टोडियन में रखने की सुविधा प्रदान की गई। केंद्र सरकार ने इसके लिए कस्टोडियन ऑफ एनिमी प्रॉपर्टी विभाग का गठन किया है, जिसे शत्रु संपत्तियों को अधिग्रहित करने का अधिकार है।

शत्रु संपत्ति संशोधन कानून 2017

  • संसद ने 2017 में शत्रु संपत्ति कानून संशोधन विधेयक को मंजूरी दी, जिसमें युद्धों के बाद पाकिस्तान और चीन पलायन कर गए लोगों द्वारा छोड़ी गई संपत्ति पर उत्तराधिकार के दावों को रोकने के प्रावधान किए गए हैं।
  • विधेयक के मुताबिक अब किसी भी शत्रु संपत्ति के मामले में केंद्र सरकार या कस्टोडियन द्वारा की गई किसी कार्रवाई के संबंध में किसी वाद या कार्यवाही पर विचार नहीं किया जाएगा।
  • शत्रु संपत्ति के मालिक का कोई उत्तराधिकारी भी यदि भारत लौटता है तो उसका इस संपत्ति पर कोई दावा नहीं होगा। एक बार कस्टोडियन के अधिकार में जाने के बाद शत्रु संपत्ति पर उत्तराधिकारी का कोई अधिकार नहीं होगा।
  • शत्रु के वारिस के भारतीय होने या शत्रु अपनी नागरिकता बदलकर किसी और देश का नागरिक बन जाए, ऐसी स्थितियों भी शत्रु संपत्ति कस्टोडियन के पास ही रहेगी।
  • नए कानून के मुताबिक, शत्रु संपत्ति अब उस हालात में संपत्ति के मालिक को वापस दी जाएगी, जबकि वो सरकार के पास आवेदन भेजेगा और संपत्ति शत्रु संपत्ति नहीं पाई जाएगी।
  • नए कानून के मुताबिक, कस्टोडियन को शत्रु संपत्ति को बेचने का अधिकार भी होगा, जबकि पिछले कानून के मुताबिक, अगर संपत्ति के संरक्षण या रखरखाव के लिए जरूरी हो तभी संपत्ति को बेचा जा सकता था।
  • पिछले कानून के मुताबिक, शत्रु संपत्ति से होने वाली आय का इस्तेमाल शत्रु के वारिस, अगर वो भारत के नागरिक हों तो कर सकते थे. जबकि नए कानून में ये प्रावधान खत्म कर दिया गया है।

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