बुरांश और बांज की प्रजातियां बढ़ाने की कवायद शुरू, अरुणाचल प्रदेश बनेगा मददगार
वन अनुसंधान केंद्र उत्तराखंड में बुरांश व बांज की प्रजातियों की संख्या बढ़ाने पर फोकस कर रहा है। इसमें अरुणाचल प्रदेश की मदद ली जाएगी।
गोविंद बिष्ट, हल्द्वानी। वन अनुसंधान केंद्र उत्तराखंड में बुरांश व बांज की प्रजातियों की संख्या बढ़ाने पर फोकस कर रहा है। इसमें अरुणाचल प्रदेश की मदद ली जाएगी, क्योंकि वहां इसकी दोगुनी प्रजातियां पाई जाती हैं। उत्तराखंड का राज्य वृक्ष होने की वजह से बुरांश का एक अलग महत्व है। वन विभाग के मुताबिक, प्रदेश में बुरांश की छह व बांज की पांच प्रजातियां मिलती हैं, जबकि उत्तर-पूर्वी राज्य अरुणाचल में बुरांश की 16 व बांज की 12 प्रजाति अस्तित्व में है। अब वन अनुसंधान केंद्र इस कोशिश में जुटा है कि प्रदेश में नहीं मिलने वाली प्रजातियों का भी यहां संरक्षण किया जाए। इसके लिए अरुणाचल में टीम भेजकर पौध लाने की तैयारी की जा रही है, ताकि रिसर्च शुरू किया जा सके। वन अनुसंधान केंद्र का प्रयास सफल रहा तो प्रदेश में राज्य वृक्ष की प्रजातियों की संख्या बढ़ जाएगी।
चीड़ के बाद बांज व बुरांश का जंगल
उत्तराखंड में बुरांश का जंगल 1800-2400 मीटर की ऊंचाई पर मिलता है। संख्या के आधार पर पहले चीड़ का जंगल आता है। उसके बाद बांज व बुरांश के पेड़ मिलते हैं। बांज व बुरांश एक साथ भी होते हैं। क्योंकि बांज के पेड़ आसपास पानी की कमी नहीं होने देते।
नमी की वजह से अरुणाचल में ज्यादा प्रजातियां
वन विभाग के मुताबिक, उत्तर-पूर्वी राज्य अरुणाचल में उत्तराखंड की अपेक्षा बारिश ज्यादा होने से वहां नमी अधिक रहती है। ऐसा वातावरण बुरांश की प्रजातियों के संरक्षण के लिए अनुकूल माना जाता है।
बुरांश का महत्व
बुरांश औषधिय गुणों से भरपूर माना जाता है। इसके जूस की काफी डिमांड है। हीमोग्लोबीन बढ़ाने, भूख बढ़ाने व आयरन की कमी दूर करने में भी इसे कारगर माना जाता है।
बांज का महत्व
जल संरक्षण के लिए बांज बेहद जरूरी है। इसके पेड़ों में झूलाघास पनपती है। इसके अलावा बांज के जंगलों में मोनाल व हिरण का आशियाना भी ज्यादा होता है। चारे के तौर पर इसकी पत्तियां इस्तेमाल होती हैं। वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि अरुणाचल में बांज व बुरांश की ज्यादा प्रजातियां मिलती हैं। प्रयास रहेगा कि पौध मंगाकर रिसर्च किया जाए, ताकि प्रदेश में प्रजातियों की संख्या बढ़ सके।
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