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    मुनस्यारी और गोपेश्वर में होगी कश्मीर के केसर की खेती, वन अनुसंधान केंद्र करेगा रिसर्च

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Fri, 11 Oct 2019 11:30 AM (IST)

    हिमालयी राज्यों में मिलने वाली प्रजातियों को उत्तराखंड में संरक्षित करने की दिशा में वन विभाग ने एक कदम और बढ़ाया है। ...और पढ़ें

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    मुनस्यारी और गोपेश्वर में होगी कश्मीर के केसर की खेती, वन अनुसंधान केंद्र करेगा रिसर्च

    हल्द्वानी, गोविंद बिष्‍ट : हिमालयी राज्यों में मिलने वाली प्रजातियों को उत्तराखंड में संरक्षित करने की दिशा में वन विभाग ने एक कदम और बढ़ाया है। चिनार व ट्यूलिप के बाद वन अनुसंधान केंद्र अब कश्मीर के केसर पर रिसर्च करेगा। इसके लिए कुमाऊं का मुनस्यारी व गढ़वाल का गोपेश्वर क्षेत्र चुना गया है। सीमांत से जुड़ी दोनों जगहों का वातावरण इस फूल के लिए मुफीद साबित हो सकता है। कश्मीरी केसर दुनिया भर में प्रसिद्ध है।

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    वन अनुसंधान केंद्र इस प्रयास में जुटा है कि देश के अलग-अलग हिमालयी राज्यों में पाई जाने वाली वनस्पतियों का प्रदेश में भी संरक्षण किया जाए। इस कड़ी में अब केसर पर फोकस किया जा रहा है। मुनस्यारी व गोपेश्वर समुद्र तल से 2500-3000 मीटर की ऊंचाई पर है। इससे पूर्व नैनीताल के सडिय़ाताल व रानीखेत में कश्मीरी चिनार संरक्षित हो चुका है, जबकि ट्यूलिप मुनस्यारी के अलावा हल्द्वानी में भी फूल दे चुका है। अब महकमे की रिसर्च विंग जल्द मुनस्यारी और गोपेश्वर में केसर का ट्रायल शुरू करने जा रही है। दोनों जगह पर लोकेशन भी चिह्नित हो चुकी है। केसर के महत्व का आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट पर भी इसकी काफी डिमांड है। वहीं संजीव चतुर्वेदी, वन संरक्षक (अनुसंधान) उत्तराखंड ने बताया कि केसर हिमालयी राज्य की प्रजाति है। इसलिए उत्तराखंड में इसके ट्रायल की तैयारी है। मुनस्यारी और गोपश्वर दो जगहों को चुना गया है।

    कश्मीर के साथ राजस्थान से भी संपर्क साधा

    वन अनुसंधान केंद्र ने केसर को लेकर कश्मीर के वन अधिकारियों से संपर्क साधकर इसके संरक्षण की पूरी जानकारी जुटा ली है। राजस्थान के भरतपुर में केसर के संरक्षण की जानकारी मिलने पर वहां भी पता कराया गया था। लेकिन अनुकूल वातावरण न मिलने से वहां केसर पनप नहीं सका।

    सीमांत के लोगों के लिए बनेगा आजीविका का साधन

    कुमाऊं का मुनस्यारी और गढ़वाल का गोपेश्वर दोनों बॉर्डर एरिया हैं। वन विभाग के केसर का सफल संरक्षण करने पर सीमांत के लोगों के लिए रोजगार का साधन भी पैदा होगा। सबसे महंगे फूलों में शुमार होने से कश्मीर में इसकी खेती होती है। प्रदेश में पर्यटन कारोबार बढ़ाने में भी केसर गार्डन अहम भूमिका निभा सकता है।

    खाने, दवा और पूजा में महत्व

    केसर में कई तरह के गुण होते हैं। आयुर्वेदिक व अन्य दवाइयों में इस्तेमाल होता है। इसे खाद्य पदार्थ में भी मिलाया जाता है। त्वचा में निखार लाने के लिए भी लोग इसका इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा पूजा में इस्तेमाल होने की वजह से केसर का धार्मिक महत्व भी है।

    कश्मीर की तरह आकर्षक होंगे पर्यटक

    गौरतलब है कि कश्मीर के मशहूर चिनार और ट्यूलिप का सफल प्रयोग उत्तराखंड में हो चुका है। फॉरेस्ट कंजरवेटर संजीव चतुर्वेदी ने आज तक से कहा कि पिछले साल ही मुन्‍स्‍यारी में ट्यूलिप के फूलों के पौधे लगाए गए थे जो सफलतापूर्वक उगे और मार्च में फूल तैयार हो गए। उसी तरह हल्द्वानी में चिनार के पौधे लगाए गए जिनके वृक्षारोपण के बाद प्रयोग सफल पाया गया। फॉरेस्ट विभाग प्रदेश के ज्यादातर इलाकों में कश्मीर की तरह ही चिनार के पेड़ लगाने की तैयारी कर रहा है जो कश्मीर में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं।