शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यटन पर भी सोचिए सरकार, बिना इनके कैसे बदलेगी कुमाऊं की तस्वीर
जुबानी जंग की राजनीति में जमीनी मुद्दे गायब हैं। राष्ट्र निर्माण के लिए सबसे बुनियादी समझी जाने वाली शिक्षा की बेहतरी का मुद्दा राजनीतिक दलों के एजेंडे में नहीं है।
शिक्षा : राजनीतिक इच्छाशक्ति से बदलेगी तस्वीर
नैनीताल, जेएनएन : जुबानी जंग की राजनीति में जमीनी मुद्दे गायब हैं। राष्ट्र निर्माण के लिए सबसे बुनियादी समझी जाने वाली शिक्षा की बेहतरी का मुद्दा राजनीतिक दलों के एजेंडे में नहीं है। आज के डिजिटल दौर में जब युवा वाट्सएप, फेसबुक पर मिलने वाले अपडेट को ज्ञान समझने लगे हैं, ऐसे में शिक्षा का मुद्दा और भी मौजू हो जाता है।
राजनीतिक पार्टियों के चुनावी विमर्श से शिक्षा का मुद्दा सिरे से गायब है। हर बार की तरह इस बार भी शिक्षा का मुद्दा हाशिये के मुद्दे के रूप में सीमित है। शिक्षा को घोषणापत्र में केवल उल्लेख के लायक मुद्दा बनाकर रख दिया गया है। देश के करीब 15 लाख बेसिक व माध्यमिक स्कूलों में 25 करोड़ विद्यार्थी पढ़ते हैं। वहीं, 45 हजार कॉलेजों में 3.5 करोड़ से अधिक छात्र-छात्राएं अध्ययनरत हैं। दोनों को मिला दिया जाए तो करीब 29 करोड़ बच्चे व युवा सीधे तौर से शिक्षा से जुड़े हैं। ये वे लोग हैं जो रोज कुछ उम्मीदों व सपनों के साथ स्कूल, कॉलेज व विश्वविद्यालय पहुंचते हैं।
शिक्षा हर परिवार को प्रभावित करती है। मध्यम आय वाले परिवार की दूसरे के घरों में चौका बर्तन करने वाली महिलाएं, रिक्शा चालक, खेतिहर मजदूर अपना पेट काटकर भी बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं। वे जानते हैं कि विपन्नता के अभिशाप से शिक्षा ही निजात दिला सकती है मगर दुर्भाग्य की बात है कि राजनीतिक दलों के लिए यह बात मुद्दा नहीं बन पाती। इसकी एक वजह यह भी है कि इसके लाभ तात्कालिक व भौतिक न होकर दूरगामी व अदृश्य होते हैं।
गरीब परिवारों के बच्चे आर्थिक अभाव, सूचनाओं की कमी व उचित मार्गदर्शन न मिल पाने के कारण 12वीं तक भी नहीं पढ़ पाते। बहुत कम गरीब बच्चे कॉलेज व विश्वविद्यालय तक पहुंचते हैं, क्योंकि गुणवततायुक्त उच्च शिक्षा महंगी होती जा रही है। ऐसे संस्थानों में दाखिला मिल पाना भी कठिन है।
समाधान के तरीके
समस्त विद्यालयों में पर्याप्त शिक्षकों की तैनाती की जाए
2. सभी विद्यालयों में विज्ञान वर्ग व प्रयोगशाला बनाए जाएं
3. मेडिकल कालेज, कृषि विद्यालय बढ़ाए जाएं
4. आइटीआइ, पालीटेक्निक कालेजों में ट्रेड बढ़ाते अनुदेशकों की तैनाती
स्वास्थ्य : अपने क्षेत्र में ही मिले इलाज की सुविधा
राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र में अक्सर स्वास्थ्य बड़ा मुद्दा होता है, लेकिन इसकी खुलकर चर्चा नहीं होती। चुनाव जीत जाने के बाद बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था को ठीक करने की कवायद होती है लेकिन इसके बावजूद बदहाली दूर होती नहीं दिख रही है। नैनीताल लोकसभा क्षेत्र के दो जिलों में एक मेडिकल कॉलेज है। इस कॉलेज के अधीन डॉ. सुशीला तिवारी राजकीय चिकित्सालय है, जहां पर छह जिलों के अलावा उत्तर प्रदेश से भी मरीज इलाज को पहुंचते हैं, लेकिन यहां पर भी जरूरत के अनुसार सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं। अस्पताल में सुपर स्पेशलिस्ट नहीं हैं। स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियों की जांच की सुविधा नहीं है। एमआरआइ, सीटी स्कैन आदि मशीनें पुरानी हो गई हैं तो अक्सर खराब हो जाती हैं। इसके चलते मरीज भटकते रहते हैं। कुमाऊं के सबसे बड़े संस्थान में भी 22 फीसद डॉक्टरों की कमी है। इसके अलावा दोनों जिलों के सरकारी अस्पतालों में 200 डॉक्टरों की कमी है। कोई भी सरकारी अस्पताल ऐसा नहीं है, जहां सभी डॉक्टर व सुविधाएं मौजूद हों। लंबे समय से लोगों की मांग है कि बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध हो सके। क्षेत्र के मरीजों को जांच के लिए कई बार दूसरे शहरों को जाना पड़ता है। कैंसर संबंधी कई जांचें, स्वाइन फ्लू समेत तमाम तरह की पैथोलॉजी व माइक्रोबॉयलॉजी जांचों की सुविधाएं यहीं पर उपलब्ध कराए जाने की मांग है।
समाधान के तरीके
1. बेस व जिला अस्पतालों में पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए
2. स्वीकृत पदों के आधार पर डॉक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ की नियुक्ति की जाए
3 - सीएचसी, पीएचसी में जांच की सुविधाएं उपलब्ध हो सके।
4 - सुपरस्पेशलिस्ट की नियुक्ति के लिए ठोस नीति बने
पर्यटन : पर्यटन को विकसित करने की जरूरत
नैनीताल लोकसभा क्षेत्र में पर्यटन सेक्टर रोजगार के साथ ही राजस्व अर्जित करने का मुख्य स्रोत है। दोनों जिलों में करीब सात लाख प्रत्यक्ष व परोक्ष रोजगार पर्यटन से सृजित है। प्रसिद्ध कैलास मानसरोवर यात्रा का अहम पड़ाव होने के साथ ही यहां नैना देवी बर्ड कंजरवेशन रिजर्व, नैनीताल समेत अन्य झील वाले पर्यटन स्थलों में पार्किंग, खराब सड़कों की वजह से पर्यटन रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है। नैनीताल जिले की झीलों के अलावा ऊधमसिंह नगर में नानक सागर में साहसिक पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। सरकार को पर्यटन को प्राथमिकता बनाना होगा। दोनों जिलों में चार हजार से अधिक होटल हैं। एक होटल में न्यूनतम 12 से 15 लोग काम करते हैं। होटल व्यवसायी व पर्यटन विशेषज्ञ प्रवीण शर्मा बताते हैं कि सड़क, पार्किंग, बिजली व पानी की समस्या का समाधान करने के साथ ही पर्यटन क्षेत्र सरकार का अनावश्यक दखल खत्म होना चाहिए। एक होटल संचालन के लिए 32 विभागों से क्लीयरेंस लेनी पड़ती है।
दूसरी ओर सरकार ने सिंगल विंडो सिस्टम तो बनाया है मगर एक्साइज समेत तमाम विभागों के कार्य इसमें शामिल नहीं हैं। 60 से 70 फीसद होटल अवैध चल रहे हैं। होटल संचालकों के बार लाइसेंस के प्रस्ताव सालों से लंबित पड़े हैं, उन पर निर्णय फटाफट होना चाहिए। बाजार दबाव के हिसाब से तय होता है, ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि महंगे टैरिफ की वजह से पर्यटन सिमट रहा है। ट्रेकिंग रूट्स की कमी नहीं है मगर इसे लेकर सरकार को संजीदा होना पड़ेगा। खासकर, काठगोदाम में रेल सेवाओं में बढ़ोतरी तो पंतनगर हवाई अड्डे से तमाम शहरों के लिए नियमित उड़ान होनी चाहिए। नैनीताल जिले में ईको टूरिज्म की भी संभावना अपार हैं, मगर सख्त वन कानूनों की वजह से पर्यटकों को जैव विविधता वाले क्षेत्रों में तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
समाधान के तरीके
1- पर्यटन के लिए नए क्षेत्र विकसित करने होंगे
2- राज्य में पर्यटन बढ़ाने के लिए विशेष नीति बनाई जाए
3 - स्थानीय लोगों को पर्यटन से जोडऩे की पहल हो
4 - धार्मिक, साहसिक खेलों के जरिये भी पर्यटन बढ़ाया जाए
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