देश-विदेश जाने का मौका छोड़कर एसटीएच में 24 साल से प्रैक्टिस कर रहे हैं डॉ: जोशी
वर्तमान में पैसा व पद के पीछे भागने की प्रतिस्पर्धा है। ऐसे में डॉ. सुशीला तिवारी राजकीय चिकित्सालय (एसटीएच) में कार्यरत डॉ. अरुण कुमार जोशी समाज के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
हल्द्वानी, जेएनएन : वर्तमान में पैसा व पद के पीछे भागने की प्रतिस्पर्धा है। ऐसे में डॉ. सुशीला तिवारी राजकीय चिकित्सालय (एसटीएच) में कार्यरत डॉ. अरुण कुमार जोशी समाज के लिए प्रेरणास्रोत हैं। अपनी जड़ों से गहराई से जुड़े डॉ. जोशी के पास देश के नामी अस्पतालों से लेकर विदेश जाने का मौका था, लेकिन उन्होंने इस सबको ठुकरा दिया और दिल्ली से हल्द्वानी लौट आए। पिछले 24 साल से एसटीएच में मानवसेवा के लिए वह पूरी तरह समर्पित हैं।
अल्मोड़ा निवासी डॉ. जोशी की प्रारंभिक पढ़ाई नैनीताल सेंट जोजफ कॉलेज में हुई। मेरठ मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस व एमडी की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली राम मनोहर लोहिया अस्पताल ज्वाइन कर लिया। वहां पर पांच वर्ष की सेवा देने के बाद डॉ. जोशी हल्द्वानी आ गए। तब डॉ. सुशीला तिवारी अस्पताल खुल ही रहा था। उन्होंने इस अस्पताल मेंं नौ जुलाई, 1994 को मेडिसिन विभाग में कंसलटेंट कोडियोलॉजी के तौर पर ज्वाइन कर लिया। 26 दिसंबर, 1995 से ओपीडी शुरू हो गई थी। तब से आज 24 वर्ष बीत गए हैं, लेकिन नींव की पत्थर की तरह डॉ. जोशी मानवसेवा के लिए आज भी पूरी तरह समर्पित हैं। इस बीच एसटीएच में कई उतार-चढ़ाव आए। इसके बावजूद डॉ. जोशी कभी डिगे नहीं। यहां तक कि उन्होंने कभी निजी प्रैक्टिस करने के बारे में सोचा तक नहीं।
समय से पहले आते हैं और देर तक देखते हैं मरीज
एसटीएच में आजकल सुबह नौ बजे से तीन बजे तक ओपीडी का समय है, लेकिन डॉ. जोशी लगभग आठ बजे तक अस्पताल पहुंच जाते हैं। वार्डों में मरीजों को देखने के बाद चार से पांच बजे तक उनकी ओपीडी में भीड़ लगी रहती है। प्रतिदिन 120 से 150 मरीजों को देखने के बाद ही घर जाते हैं। यही नहीं, वह नियमित वार्डों का निरीक्षण करते हैं। गंभीर मरीजों को देखने के लिए रात में भी तत्पर रहते हैं।
मरीज देखना एमएस से बड़ी जिम्मेदारी
एसटीएच में चार बार चिकित्सा अधीक्षक की जिम्मेदारी संभाल चुके डॉ. जोशी एक बार फिर चिकित्सा अधीक्षक पद पर कार्यरत हैं। इसके बावजूद उनकी प्राथमिकता मरीजों की सेवा है। वह प्रतिदिन मरीज देखने के बाद ही प्रशासनिक कार्य करते हैं।
इस काम से मिलती है संतुष्टि
निजी प्रैक्टिस न करने के सवाल के जवाब में डॉ. जोशी कहते हैं, यह सवाल असहज कर देता है। कुछ रुककर बताते हैं, मैंने सरकारी नौकरी इसलिए चुनी कि गरीब मरीजों की सेवा कर सकूं। मुझे अस्पताल में ही मरीजों को देखने में संतुष्टि मिलती है। पढ़ाई के समय से ही लगता था कि मैं अपने क्षेत्र में काम करूं। अपने लोगों की सेवा कर सकूं। अपनी संस्कृति व प्रकृति से मुझे बेहद लगाव है। यही वजह है कि मैं यहां पर सेवा कर रहा हूं।
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