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    देवभूमि में लड़का-लड़की की शिक्षा में भेदभाव, बेटियां सरकारी स्कूल में, बेटों के लिए कॉन्वेंट

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Tue, 12 Mar 2019 11:39 AM (IST)

    जेंडर आधारित भेदभाव मिटाने के तमाम कार्यक्रम चलाने के बाद भी लोगों की सोच में उम्मीद के अनुरूप बदलाव नहीं आ रहा। भेदभाव वाली सोच का असर छात्र-छात्राओं की शिक्षा पर भी दिख रहा है।

    देवभूमि में लड़का-लड़की की शिक्षा में भेदभाव, बेटियां सरकारी स्कूल में, बेटों के लिए कॉन्वेंट

    हल्द्वानी, गणेश पांडे : जेंडर आधारित भेदभाव मिटाने के तमाम कार्यक्रम चलाने के बाद भी लोगों की सोच में उम्मीद के अनुरूप बदलाव नहीं आ रहा। भेदभाव वाली सोच का असर छात्र-छात्राओं की शिक्षा पर भी दिखाई दे रहा है। देवभूमि के अभिभावक बेटियों को सरकारी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं, जबकि बेटों को महंगे कान्वेंट स्कूलों में भेज रहे हैं। हालांकि सकारात्मक पहलू ये भी है कि बेटियों की शिक्षा में लगातार इजाफा हो रहा है।
    केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) व उत्तराखंड बोर्ड की परीक्षा दे रहे स्टूडेंट्स की संख्या से इस तरह का अध्ययन सामने आया है। उच्च व उच्च मध्यम परिवारों में इस तरह का भेदभाव भले ही न दिखे, लेकिन मध्यम व निम्न मध्यम परिवार में भेदभाव साफ दिखाई देता है। उत्तराखंड में इस बार सीबीएसई की परीक्षा देने वाले छात्रों की संख्या छात्राओं के मुकाबले 4380 अधिक है। वहीं, उत्तराखंड बोर्ड में डेढ़ हजार से अधिक छात्राएं हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की परीक्षा दे रही हैं।

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    दोनों बोर्ड से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स

    बोर्ड              छात्र             छात्राएं
    उत्तराखंड     130480     132092
    सीबीएसई     82206       77826

    (नोट : 2019 में हाईस्कूल व इंटरमीडिएट परीक्षा देने वाले रेगुलर स्टूडेंट्स की संख्या पर आधारित)

    फिर भी रिजल्ट में बाजी मार जाती हैं बेटियां
    कान्वेंट स्कूलों में पढऩे वालों में बेटों की संख्या भले अधिक हो, लेकिन रिजल्ट आने पर बेटियां आगे होती हैं। सीबीएसई 2018 के इंटरमीडिएट परीक्षा में हरिद्वार की तनुजा कापड़ी ने उत्तराखंड टॉप करने के साथ ही देश में तीसरा स्थान प्राप्त किया था। वहीं, हाईस्कूल परीक्षा में रानीखेत की शाहिस्ता सदफ ने प्रदेश टॉप किया। इसी तरह की स्थिति पिछले वर्षों के रिजल्ट में रही।

    बेटियां पढ़ रही हैं, आगे और बदलाव आएगा : प्रो. बिष्ट
    कुमाऊं विश्वविद्यालय में कार्यरत समाजशास्त्री प्रो. बीएस बिष्ट कहते हैं कि भारतीय समाज सदियों से पितृसत्तात्मक रहा है। इस कारण कुछ लोगों में भेदभाव वाली सोच दिखती है। विभिन्न स्तरों से प्रयास हो रहे हैं, एक दिन लोगों की सोच बदलेगी। कुछ दशक पहले तक बेटियों को पढ़ाया नहीं जाता था, मगर आज बेटियां न केवल पढ़ रही हैं, बल्कि सभी क्षेत्रों में सफलता के आयाम भी छू रही हैं।

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