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    तिरस्कार को मदास श्रीनिवास ने बनाया हथियार, मजबूत इरादों से हासिल किया अर्जुन अवार्ड

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Sat, 16 Mar 2019 10:11 AM (IST)

    मदास ने दिव्यांगता से मिली उपेक्षा को सकारात्मक भाव से लेते हुए खेल में सर्वोच्च स्थान हासिल करने का सपना देखा। मेहनत के दम पर उन्होंने जो सोचा था वह पाया भी।

    तिरस्कार को मदास श्रीनिवास ने बनाया हथियार, मजबूत इरादों से हासिल किया अर्जुन अवार्ड

    रुद्रपुर, बृजेश पांडेय : बचपन में मिले तिरस्कार से निराश न होकर उसे ही हथियार बना लिया जीवन में आगे बढऩे का। दिव्यांगता से मिली उपेक्षा को सकारात्मक भाव से लेते हुए खेल में सर्वोच्च स्थान हासिल करने का सपना देखा और उसके लिए जी जान लगा दिया। मेहनत के दम पर उन्होंने जो सोचा था वह पाया भी। विभिन्न राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग किया, विजेता बने बाद में राष्ट्रपति से अर्जुन अवार्ड से सम्मानित हुए।

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    यहां हम बात कर रहे हैं तेलंगाना के अर्जुन अवार्डी मदास की। इनके संघर्षमय सफर को जिसने भी सुना उसने सराहा और आगे बढऩे की प्रेरणा ली। इन्होंने अपनी जीवटता से न सिर्फ अपना स्वर्णिम कॅरियर बनाया बल्कि अपने तीन बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाकर उन्हें स्वावलंबी भी बनाया। रुद्रपुर स्पोटर्स स्टेडियम में अंतरराष्ट्रीय पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी भी पहुंचे हैं। तेलंगाना के एक छोटे से गांव के रहने वाले मदास श्रीनिवास राव अपने गांव के लिए छोटा शब्द प्रयोग करना पसंद नहीं करते। बचपन से ही दोनों पैर से दिव्यांग होने का अहसास सिर्फ एक बार हुआ। कक्षा सातवीं में खेल को लेकर बहुत उत्साहित थे। स्कूल में होने वाली बैडमिंटन प्रतियोगिता में खेलना चाहा तो खिलाडिय़ों ने उनका तिरस्कार किया। इसके बाद उन्होंने इस खेल जगत में नाम कमाने की ठान ली। नौवीं तक पढ़ाई के बाद खुद से अभ्यास करने के बाद उन्हें स्कूल के साथ ही अन्य प्रतियोगिताओं में खेलने का मौका मिलने लगा। अब तक अपने करियर में 100 से भी अधिक राष्ट्रीय तथा 20 से अधिक अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुके हैं। कई गोल्ड मेडल प्राप्त हासिल कर चुके हैं। वर्ष 2003 में एपीजे अब्दुल कलाम ने अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया।

    बच्चों को पढ़ाने के लिए मेडल तक बेचना पड़ा

    मदास ने बताया कि आर्थिक तंगी के दौरान उनके दो बेटे और एक बेटी को पढ़ाने के लिए उन्होंने अपना मेडल व शील्ड बेचकर उनकी फीस भरी।

    तीनों बच्चों को बनाया इंजीनियर

    गरीबी के बाद भी अपने दो बेटे रोहित और रोहन तथा एक बेटी प्रीती को पढ़ाकर काबिल बनाया। इंजीनियङ्क्षरग की पढ़ाई करके वर्तमान में तीनों हैदराबाद में कार्यरत हैं।

    सरकार से हैं खफा

    मदास ने कहा कि सरकार की ओर से आजतक कोई मदद नहीं मिली है। न तो उनके बुरे दिनों में और न ही अब। कहा कि दिव्यांगों को मदद की जरूरत है, जिससे वह सही मुकाम पा सकें।

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