44 साल में 42 गुना बढ़ा जमरानी बांध का बजट
975 में जमरानी बांध परियोजना पर सैद्धांतिक सहमति बनने के बाद निर्माण के लिए डीपीआर को केंद्रीय जल आयोग की स्वीकृति मिलने में 44 साल का लंबा समय लग गया।
संदीप मेवाड़ी, हल्द्वानी। 1975 में जमरानी बांध परियोजना पर सैद्धांतिक सहमति बनने के बाद निर्माण के लिए डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) को केंद्रीय जल आयोग (डीडब्लूसी) की स्वीकृति मिलने में 44 साल का लंबा समय लग गया। इस दौरान परियोजना की लागत भी 61.25 करोड़ रुपये से 44 गुना से अधिक बढ़कर 2584 करोड़ रुपये पहुंच गई है। पांच दशक पहले ही गौला में बांध बनाने की जरूरत महसूस होने लगी थी। वर्ष 1975 में जमरानी बांध परियोजना के लिए केंद्र सरकार के सैद्धांतिक सहमति देने के बाद गौला बैराज व नहरों का निर्माण शुरू हुआ। इंजीनियरों से लेकर कर्मचारियों के रहने तक के लिए जमरानी कॉलोनी भी बसा दी गई। उस समय इसमें 25.24 करोड़ रुपये खर्च किए गए। वर्ष 1989 में 144.84 करोड़ की डीपीआर बनाकर केंद्र सरकार को भेजी गई। इसी बीच बांध परियोजना की स्वीकृति में वन एवं पर्यावरण की कई आपत्तियां लगती रहीं। वर्ष 2015 में परियोजना की लागत 2350 करोड़ रुपये पहुंच गई थी। जो धीरे-धीरे और बढ़ती चली गई और 2850 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। वर्ष 2018 में केंद्रीय जल आयोग ने डीपीआर संशोधन के लिए फिर लौटा दी। इसके बाद 2573 करोड़ रुपये की डपीआर बनाकर भेजी गई। एक माह से केंद्रीय जल आयोग के साथ ही उत्तराखंड के सिंचाई विभाग के अफसर डीपीआर में संसोधन करने में जुटे थे। आखिरकार सोमवार को केंद्रीय जल आयोग की तकनीकी सलाहाकार समिति ने 2584 करोड़ रुपये की डीपीआर को मंजूरी देकर फाइल वित्त मंत्रालय को भेज दी।
जमरानी बांध से होने वाले फायदे
- 624.48 हेक्टेयर भूमि पर बनेगा बांध
- बांध में 10 किलोमीटर झील का निर्माण
- बांध की चौड़ाई - 1 किमी
- 4.5 स्क्वायर किमी होगा जमरानी बांध का डूब क्षेत्र
- 130.6 मीटर होगी बांध की ऊंचाई
- 43 फीसदी सिंचाई के लिए पानी उत्तराखंड को मिलेगा
- 57 फीसदी पानी यूपी को सिंचाई के लिए मिलेगा
-208.60 मिलियन क्यूबिक मीटर जल संग्रहण की क्षमता
- छह गांव प्रभावित, 120 परिवारों का होगा विस्थापन
- बांध से मिलने वाला पेयजल - 117 एमएलडी
- बांध क्षेत्र से बिजली उत्पादन लक्ष्य - 14 मेगावाट
- बांध के जलाशय से सिंचित होने वाली भूमि - 57065 हेक्टेयर
(मत्स्य पालन, नौकायन, पर्यटन गतिविधियों का विस्तार भी शामिल)
बांध बनने से विस्थापित होने वाले गांव
गांव विस्थापित होने वाले परिवार
तिलवाड़ी 33
मुरकुदिया 56
गंदराद 8
पनियाबोर 8
उदवा 8
पस्तोला 16
बांध निर्माण से खनन पर मंडराएगा संकट : जमरानी बांध बनने से जहां भाबर की बहुप्रतीक्षित पेयजल व सिंचाई समस्या का स्थायी समाधान होगा, वहीं खनन पर इसका काफी बुरा असर पड़ेगा। बांध निर्माण से खनन बंद होने की संभावना भी जताई जा रही है। गौला से हर साल 54.25 लाख घन मीटर खनन होता है। खनन के कारोबार से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से एक लाख लोगों का रोजगार जुड़ा है। वहीं, हल्द्वानी समेत बरेली आदि शहरों के अलावा कुमाऊं भर के लिए भी यहीं से उपखनिज ढुलान किया जाता है। हर साल पांच करोड़ रुपये से अधिक राजस्व सरकार को मिलता है। जमरानी बांध निर्माण से सरकार को खनन से मिलने वाले राजस्व के साथ ही लोगों के रोजगार का संकट भी पैदा हो जाएगा।
44 साल में बदले 20 से अधिक मुख्य अभियंता : जमरानी बांध परियोजना के तहत 44 वर्षों के दौरान 20 से अधिक मुख्य अभियंताओं के साथ ही सैकड़ों जेई, एसई व कर्मचारियों के तबादले हुए या वह सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
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