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बड़े काम का है ये काला गेहूं, पैदावार अच्‍छी होने के साथ कैंसर और हार्ट अटैक से भी बचाएगा

अव वो दिन दूर नहीं जब सोने जैसा दिखने बाला गेंहू काले रंग में खेतों में लहलहाता दिखाई दे। सात बरसों के रिसर्च के बाद गेहूं की इस नई किस्म को पंजाब के नाबी ने विकसित किया है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 26 Apr 2020 09:24 AM (IST)Updated: Sun, 26 Apr 2020 09:41 PM (IST)
बड़े काम का है ये काला गेहूं, पैदावार अच्‍छी होने के साथ कैंसर और हार्ट अटैक से भी बचाएगा
बड़े काम का है ये काला गेहूं, पैदावार अच्‍छी होने के साथ कैंसर और हार्ट अटैक से भी बचाएगा

बाजपुर, जेएनएन : अव वो दिन दूर नहीं जब सोने जैसा दिखने बाला गेंहू काले रंग में खेतों में लहलहाता दिखाई दे। सात बरसों के रिसर्च के बाद गेहूं की इस नई किस्म को पंजाब के मोहाली स्थित नेशनल एग्रीफूड बायोटेक्नॉलजी इंस्टीट्यूट (नाबी) ने विकसित किया है। नाबी के पास इसका पेटेंट भी है। इस गेहूं की खास बात यह है कि इसका रंग काला है। इसके बारे में दावा किया जा रहा है कि इस गेहूं में कैंसर, डायबिटीज, तनाव, दिल की बीमारी और मोटापे जैसी बीमारियों से लडऩे की क्षमता है। बाजपुर के प्रगतिशील किसान संजय चौधरी ने उत्तराखंड में इस का पहला ट्रायल किया है जो सफल रहा हैै। अव यह काम अनेक और किसान करने जा रहे हैं । अभी तक पंजाव मध्य प्रदेश, हिमाचल, हरियाणा में इसकी विजाई का ट्रायल हुआ है ।

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कृषि में नए-नए प्रयोग करने में तराई पूरे भारत में जाना जाता है। उत्तराखंड के ऊधमसिंहनगर जिले के दोराहा बाजपुर के पास स्थित ग्राम शिकारपुर में सजंय चौधरी का अपना फार्म हाउस है। उन्होंने बतौर ट्रायल एक बीघा काला गेहू बोया था जिसमें उनकी उपज पांच क्विंटल 20 किलो आई है। इन अनुपात में प्रति एकड़ यह तीस क्विंटल से अधिक होगी जबकि साधारण गेंहू 20 से 22 क्विंटल ही निकल पाती है। ऐसे में जहां पैदावार अधिक है वहीं इसकी कीमत भी लगभग दोगुनी है। ऐसे में किसान की आमदनी दो गुनी करने के लिए यह बेहतर प्रयास है।

उन्होंने बताया कि शुरू में इसकी बालियां भी आम गेहूं जैसी हरी होती हैं, पकने पर दानों का रंग काला हो जाता है। उनकी जानकारी के अनुसार एक टीवी चैनल के जरिए उनको इसकी जानकारी मिली थी जिसमें नाबी की साइंटिस्ट और काले गेहूं की प्रोजेक्ट हेड डॉ. मोनिका गर्ग ने बताया था कि नाबी ने काले के अलावा नीले और जामुनी रंग के गेहूं की किस्म भी विकसित की है। शोध में पाया गया है कि इस गेंहू के तमाम चिकित्सकीय गुण भी है ।

काले रंग की वजह एंथोसाएनिन

संजय चौधरी ने बताया कि उन्होंने जो जानकारी एकत्र की है उसके अनुसार फलों, सब्जियों और अनाजों के रंग उनमें मौजूद प्लांट पिगमेंट या रजक कणों की मात्रा पर निर्भर होते हैं। काले गेहूं में एंथोसाएनिन नाम के पिगमेंट होते हैं। एंथोसाएनिन की अधिकता से फलों, सब्जियों, अनाजों का रंग नीला, बैगनी या काला हो जाता है। एंथोसाएनिन नेचुरल एंटीऑक्सीडेंट भी है। इसी वजह से यह सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है। आम गेहूं में एंथोसाएनिन महज पांच पीपीएम होता है, लेकिन काले गेहूं में यह 100 से 140 पीपीएम के आसपास होता है। एंथोसाएनिन के अलावा काले गेहूं में ङ्क्षजक और आयरन की मात्रा में भी अंतर होता है। काले गेहूं में आम गेहूं की तुलना में 60 फीसदी आयरन अधिक है। हालांकि, प्रोटीन, स्टार्च और दूसरे पोषक तत्व समान मात्रा में होते हैं।

काला चावल भी होता है

गेहूं ही नहीं काला चावल भी होता है। इंडोनेशियन ब्लैक राइस और थाई जैसमिन ब्लैक राइस इसकी दो जानीमानी वैरायटी हैं। म्यामांर और मणिपुर के बॉर्डर पर भी ब्लैक राइस या काला चावल उगाया जाता है। इसका नाम है चाक-हाओ। इसमें भी एंथोसाएनिन की मात्रा ज्यादा होती है।


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