कुमाऊं की हॉट सीट हल्द्वानी में कांग्रेस, रुद्रपुर-काशीपुर में अपनों से जूझी भाजपा
नगर निकाय चुनाव की महीने भर से चल रही सियासी जंग में मतदाताओं ने रविवार को अपना फैसला सुना दिया। मतदाताओं की पसंद का परिणाम मंगलवार को आएगा।
अनुज सक्सेना, हल्द्वानी : नगर निकाय चुनाव की महीने भर से चल रही सियासी जंग में मतदाताओं ने रविवार को अपना फैसला सुना दिया। मतदाताओं की पसंद का परिणाम मंगलवार को आएगा। फिर भी यह मतदान पर्व भाजपा-कांग्रेस में चल रही अंदरूनी जंग की आशंका पर अपनी मुहर जरूर लगा गया जो अभी तक सिर्फ चर्चा में थी। हल्द्वानी सीट पर कांग्रेस तो रुद्रपुर और काशीपुर नगर निगम सीट पर भाजपा प्रतिद्वंद्वियों के साथ ही अपनों से जूझती साफ दिखी। पार्टी एकजुटता के साथ जीत के दावे करते नहीं थकने वाली इन दोनों बड़ी पार्टियों की असल तस्वीर देख अब तो राजनीतिक पंडितों का अनुमान भी लडख़ड़ा गया है। जीत के गुणा-गणित के सवाल अब इनका जवाब भी एक ही है...'कुछ कहा नहीं जा सकता, मुकाबला कड़ा है।'
कुमाऊं के प्रवेश द्वार हल्द्वानी का जानिए सियासी गणित
कुमाऊं की राजनीतिक राजधानी कही जाने वाली हल्द्वानी सीट प्रदेश में सर्वाधिक चर्चा में है, नजरें भी सभी की इसलिए टिकी हैं क्योंकि नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश की कद्दावर नेता डॉ.इंदिरा हृदयेश के बेटे सुमित हृदयेश कांग्र्रेस प्रत्याशी हैं। उनके मुकाबले भाजपा ने पूर्व मेयर डॉ.जोगेंद्र सिंह रौतेला को उतारा है। संगठनात्मक ढांचे के लिहाज से समीक्षा करें तो कांग्र्रेस में बड़े नेताओं के नाम पर अलग-अलग धड़े हैं। यह बात अलग है कि अनुशासन के चाबुक से बचने के लिए चेहरा दिखाने की होड़ तो पूरे चुनाव प्रचार में सभी ने दिखाई, मगर कांग्र्रेसी मतदाताओं को बूथ तक पहुंचाने की कसरत में उन लोगों के कदम ठिठकते साफ दिखे, जिनकी पहचान इंदिरा कांग्र्रेस से अलग मानी जाती है। यह तो रही पहले नुकसान की आशंका, दूसरा नुकसान कांग्र्रेस के वर्चस्व वाले माने जाने वाले क्षेत्र राजपुरा, हीरानगर, लाइन नंबर एक से 18 तक, दमुवाढूंगा, हिमालया फार्म और मुखानी में तमाम ऐसे मतदाताओंं का सूची से नाम गायब होना माना जा रहा है जिन्हें कांग्र्रेस से जोड़कर देखा जा रहा है। एक तो वोट गायब और तीसरा सपा प्रत्याशी का प्रचार में दमखम से बने रहना भी टेंशन से कम नहीं देखा जा रहा है। अब रही बात भाजपा की तो अंतर्विरोध यहां भी कम नहीं दिखा। लेकिन अनुशासन की तलवार से बचने को उन लोगों के गले में भी कमल के फूल की पïिट्टकाएं हर वक्त दिखीं जो न चाहते हुए भी दिखावा भरपूर कर रहे थे। मजबूत पक्ष यह जरूर रहा कि पार्टी ने वार्ड वार प्रत्याशी लड़ाने का फैसला लिया, इससे भाजपा के मेयर प्रत्याशी को दोहरा लाभ मिलता दिखा। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने आकर भाजपाई प्रचार को कुछ बल दिया, तो कांग्र्रेस के सुमित के लिए नेता प्रतिपक्ष डॉ.इंदिरा हृदयेश ही स्टार प्रचारक रहीं और उन्होंने हल्द्वानी नहीं छोड़ी।
उद्योगनगरी रुद्रपुर का कुछ ऐसा रहा सियासी गणित
कुमाऊं की उद्योगनगरी रुद्रपुर में भी भाजपा-कांग्र्रेस अपनों के अंदरूनी संघर्ष से अछूती नहीं रहीं। यहां भाजपा की स्थिति कांग्र्रेस से बहुत ज्यादा विकराल नजर आई। पहले टिकट वितरण के समय ही पूर्व मेयर का रूठ जाना और बयानबाजी कर नुकसान पहुंचाना रहा, वहीं नजूल से उजडऩे के डर और पिछले दिनों अतिक्रमण हटाओ अभियान में तोड़ी गई दुकानों से उपजे व्यापारियों के गुस्से का असर मतदान में साफ बयां हो रहा था। अंतर्विरोध के फैक्टर में प्रत्याशी चयन को लेकर ही पार्टी के दो दिग्गजों के एकमत न होने की चर्चा बाजार में ज्यादातर जुबां पर दिख रही थी। निर्दलीय लड़े एक पर्वतीय वोटरों से ताल्लुक रखने वाले प्रत्याशी से भाजपा को उम्मीद थी कि वह कांग्र्रेस को ज्यादा डैमेज करेंगे, लेकिन वह भाजपा को भी बराबर से नुकसान पहुंचाते दिख रहे थे। भाजपा को चिंता देने का काम उन ग्र्रामीण क्षेत्रों ने भी किया, जिन्हें नगर निगम का हिस्सा इसलिए बनाया गया था कि वह भाजपा को मजबूती देंगे मगर इन ग्र्रामीण क्षेत्रों में सुस्त मतदान की चाल देख भाजपा बेहाल होती दिखी। इधर, भाजपा को परेशान करने वाले फैक्टरों को भुना कांग्र्रेस मतदाताओं का ध्यान अपनी ओर खींचने में काफी हद कामयाब होती दिखी। चर्चा में सियासी स्टंट तो यहां तक दिखी कि मुस्लिम वोट वहीं जाएगा जो भाजपा को हरा रहा होगा, इसको सही मान भी लिया जाए तो फिर कांग्र्रेस का हाथ, यहां सबके साथ नजर आ रहा था।
सवा लाख की मतदाता वाले काशीपुर में सीधा मुकाबला
करीब सवा लाख मतदाताओं वाली इस सीट पर सीधा मुकाबला कांग्र्रेस-भाजपा के बीच ही देखने को मिला। लेकिन यह दल खुद में भी किस तरह जूझ रहे थे, यह तस्वीर भी साफ दिखाई दे रही थी। सीट को आसान मानकर चल रही भाजपा के लिए मतदान बाद की समीक्षा ने चिंतन में डाल दिया है। अब सारा दारोमदार मुस्लिम वोटों पर है, अगर कांग्र्रेस उनको अपने पक्ष में करने में काफी हद तक कामयाब रही तब शायद समीकरण बदल सकेगा।
यह भी पढ़ें : अल्पसंख्यकों की 'बड़ी' भागीदारी किस पर पड़ेगी भारी, ग्रामीण क्षेत्रों में कम वोटिंग