Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Bandi Chhor Divas : सिख समुदाय बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है दीपावली, मुगलों से जुड़ा है इतिहास

    By jeevan sainiEdited By: Skand Shukla
    Updated: Mon, 24 Oct 2022 01:37 PM (IST)

    Bandi Chhor Divas सिख धर्म में दीपावली के दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार सिखों के तीन त्योहारों में से एक है जिनमें पहला माघी दूसरा बैसाखी और तीसरा बंदी छोड़ दिवस।

    Hero Image
    Bandi Chhod Divas : हिंदू और सिख भाईचारे के लोगों का संयुक्त पर्व है दीपावली

    जागरण संवाददाता, बाजपुर : Bandi Chhor Divas : दीपावली हिंदू और सिख समुदाय के भाईचारे का संयुक्त पर्व है। नवरात्रों से शुरू होने वाली पूजा से धार्मिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं और दीपावली तक ये सभी कार्य अपना अलग-अलग धार्मिक महत्व रखते हैं। सिख धर्म में दीपावली (Diwali 2022) के दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार सिखों के तीन त्योहारों में से एक है, जिनमें पहला माघी, दूसरा बैसाखी और तीसरा बंदी छोड़ दिवस।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    तीन बिंदुओं में जानिए बंदी छोड़ दिवस का इतिहास

    1. जानकारों के मुताबिक, मुगलों ने जब मध्य प्रदेश के ग्वालियर के किले को अपने कब्जे में लिया तो इसे जेल में तबदील कर दिया। इस किले में मुगल सल्तनत के लिए खतरा माने जाने वाले लोगों को कैद करके रखा जाता था। बादशाह जहांगीर ने यहां 52 राजाओं के साथ 6वें सिख गुरु हरगोबिंद साहिब को कैद रखा था। जानकार बताते हैं कि जहांगीर को सपने में एक रूहानी हुक्म के कारण गुरु हरगोबिंद साहिब को रिहा करने पर मजबूर होना पड़ा था।
    2. जब मुगल बादशाह को जब अपनी गलती का अहसास हुआ, तो उन्होंने हरगोबिंद साहिब से लौटने का आग्रह किया। इसके बाद गुरु साहिब ने कहा कि वह अकेले नहीं जाएंगे। उन्होंने कैदी राजाओं को भी मुक्त कराने की बात कही। गुरु साहिब के लिए 52 कली का चोला (वस्त्र) सिलवाया गया। 52 राजा जिसकी एक-एक कली पकड़कर किले से बाहर आ गए। इस तरह उन्हें कैद से मुक्ति मिल सकी थी।
    3. दिवाली वाले दिन सिखों के छठवें गुरु, गुरु हरगोबिंद साहिब का अमृतसर आगमन हुआ था। गुरु साहिब ग्वालियर के किले से 52 राजाओं को जहांगीर की कैद से मुक्त कराकर अकाल तख्त साहिब पहुंचे थे। उस वक्त आतिशबाजी के आलावा युद्ध कौशल दिखाया गया था। पूरे अमृतसर शहर को दीयों की रोशनी से सजाया गया था। इस दिन को ‘दाता बंदी छोड़ दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। यानी बंधनों को मुक्त कराने वाले दाता का खास दिन।

    होता है समागमों का आयोजन

    इस दिन सिख संगत और सिख संगठनों द्वारा खासतौर पर धार्मिक समागमों का आयोजन किया जाता है। समागम में कीर्तन और कथा करवाए जाते हैं। इस दिन को ऐतिहासिक महत्व से अवगत कराया जाता है, लेकिन इन समागमों को करने का तब ही महत्व है जब सभी लोग गुरुजी द्वारा दिखाए गए सच के रास्ते पर चलें।

    इस दिन होती है आतिशबाजी, जलाए जाते हैं दीप

    इस दिन बड़े स्तर पर आतिशबाजी होती है और साथ ही गुरुद्वारों में दीप जलाए जाते हैं। श्री मुक्तसर साहिब के श्री दरबार साहिब, गुरुद्वारा तरनतारन साहिब, गुरुद्वारा श्री तंबू साहिब, गुरुद्वारा टिब्बी साहिब और गुरुद्वारा शहीद साहिब में खासतौर पर दीप जलाए जाते हैं। वहीं बंदी दिवस के मौके पर श्रद्धालु गुरुद्वारे में नतमस्तक होने के लिए पहुंचते हैं।

    20वीं सदी में दिया गया बंदी छोड़ दिवस का नाम

    बंदी छोड़ दिवस सिख त्योहार है, जोकि दीपावली के दिन पड़ता है। दीपावली त्याेहार सिख समुदाय द्वारा ऐतिहासिक रूप से मनाया जाता है। गुरु अमर दास जी ने इसे सिख उत्सव माना है। 20वीं सदी से सिख धार्मिक नेताओं द्वारा दीपावली को बंदी छोड़ दिवस कहा जाने लगा।

    शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा इसे मान लिया गया। इस नाम का सम्बद्ध गुरु हरगोविंद साहिब जी की रिहाई से है जिन्हें जहांगीर द्वारा स्वतंत्र किया गया था। बंदी छोड़ दिवस को दीपावली के समान ही मनाया जाता है जिसमें घरों और गुरुद्वारा साहिबों को रोशन किया जाता है। उपहार देना और परिवार के साथ समय बिताना होता है।