चुनावी चौपाल : बग्घा चौवन के चार हजार मतदाताओं की सिर्फ एक मांग राजस्व गांव
पाकड़ के पेड़ की छांव तले सजी दैनिक जागरण की चौपाल में यह खटीमा के बग्घा चौवन गांव का दर्द है। यह गांव सांसद भगत सिंह कोश्यारी ने गोद लिया है।
ऊधमसिंह नगर, जेएनएन : बड़ी तकलीफ होती है, जब कहा जाता है कि आपको यहां से खदेड़ा जाएगा। खदेड़ दीजिए, मगर यह भी तो बताइए कि जिस गांव के चार हजार मतदाताओं को अपना नेता व सरकार चुनने का अधिकार है। क्या उन्हें अपनी देश की माटी में रहने का कोई अधिकार नहीं? एक आजादी 1947 में मिली थी। एक आजादी और चाहिए हमारे बग्घा चौवन को। यह समृद्ध गांव है। सांसद आदर्श गांव है और इसी गांव ने देश को फौजी दिए हैं। रही बात इलेक्शन की, यह तो लोकतंत्र का उत्सव है। हर पांच साल में नंबर आता है नई सरकार बनाने का। हम अब तक जाने कितनी सरकारें बना चुके, लेकिन गांव के हर दिल की पीड़ा एक है, हर माथे पर लिखा मुद्दा एक है। इसे राजस्व गांव घोषित कर दिया जाए। वन भूमि के जंजाल से हमें मुक्त किया जाए। जब सांसद आदर्श गांव बन सकता है तो राजस्व गांव क्यों नहीं?
पाकड़ के पेड़ की छांव तले सजी दैनिक जागरण की चौपाल में यह खटीमा के बग्घा चौवन गांव का दर्द है। यह गांव सांसद भगत सिंह कोश्यारी ने गोद लिया है। बुधवार का दिन है। घड़ी दोपहर के एक बजा रही है और तापमान करीब 34 डिग्री पर पहुंचा है। उमस से कपड़े बदन पर चिपक रहे हैं तो पाकड़ की छाया नाउम्मीदी की धूप से बचाकर चेहरों को फिर उम्मीद से भर रही है। चुनाव 11 तारीख को हैं। उस दिन वोट देने जाना है, अपनी पसंद का नेता चुनना है, यही लोग जानते हैं। सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर सिर्फ गांव की बुजुर्गीयत का सरोकार है। वो बुजुर्ग जो जवानी में फौज की वर्दी पहनकर सीमा के प्रहरी हुआ करते थे। सांसद आदर्श गांव घोषित होने के बाद कुछ परिवर्तन आया है, यह सच कहने से भी लोगों को कोई गुरेज नहीं, मगर असल मुद्दा यानी राजस्व गांव घोषित करने में कोई रुचि नहीं ली गई, इस बात से नाराजगी भी है। इस बार नए चेहरे सांसद का चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा-कांग्रेस में ही मुख्य लड़ाई है, यहां के वोटर्स को यह मालूम है। चौपाल में सवाल उठता है कि किसे चुनना चाहिए? चेहरे को, पार्टी को या फिर जो विजन रखता हो उसे? जवाब आता है, पार्टियों से कोई लेना-देना नहीं। चेहरों को देखकर वोट नहीं दिया जाता। चेहरे पर लिखे विजन को देखकर मतदान करना है।
चौपाल के ठीक बगल वाले एक पेड़ की शाखा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर वाला मुखौटा टंगा है। बाकी दूर-दूर तक न कोई झंडा-बैनर नजर आता है और न कोई चुनावी नारे। जागो मतदाता जागो के चेतना जगाते गीत भी नहीं सुनाई देते। खटीमा से करीब 24 किलोमीटर की जंगल यात्रा के बाद इस सांसद आदर्श गांव को देखकर सहसा यकीन नहीं होता कि यहां कोई समस्या भी होगी, मगर जनता की थाह लेने पर हकीकत सामने आती है। चौपाल में 75 साल के राम सिंह भी बैठे हैं। कान कम सुनते हैं, लेकिन उन्हें मालूम है बात मुद्दे की हो रही है। कितने नेता चुन चुके हैं अब तक, ठीक से याद नहीं। चुनाव के समय पहले वादा करने कोई तो आ जाता था, इस बार एक भी नहीं दिखा है उन्हें। बहस का निचोढ़ बस एक है कि बग्घा चौवन को आदर्श ही रहने दिया जाए। इसे खाली करवाने के बजाय जिन परिवारों की उम्मीद गांव से बंधी है, वर्षों का अतीत जुड़ा है, उसे वैसा ही रहने दिया जाए। वोट देने को लेकर हर मतदाता बेताब है। तारीख का इंतजार हो रहा है। पसंद किसकी क्या होगी, यह कह पाना मुश्किल है, लेकिन इतना साफ है कि जो थोड़ा-बहुत परिवर्तन दिखा है, वही परिवर्तन इस बार इस गांव से चुनावी परिणाम भी तय करेगा।
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