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देश के सीमांत में सेब की खेती के लिए फिर अनुकूल हुआ मौसम, बदलेगा घाटी के लोगों का जीवन

चीन सीमा से लगी व्यास घाटी में सेब की खुशबू अपनी महक बिखेरेगी। व्यास घाटी में 18 हेक्टेयर भूमि पर सेब की खेती की तैयारियां होने लगी हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 06 Jan 2020 08:53 AM (IST)Updated: Mon, 06 Jan 2020 08:53 AM (IST)
देश के सीमांत में सेब की खेती के लिए फिर अनुकूल हुआ मौसम, बदलेगा घाटी के लोगों का जीवन
देश के सीमांत में सेब की खेती के लिए फिर अनुकूल हुआ मौसम, बदलेगा घाटी के लोगों का जीवन

पिथौरागढ़, जेएनएन : चीन सीमा से लगी व्यास घाटी में सेब की खुशबू अपनी महक बिखेरेगी। व्यास घाटी में 18 हेक्टेयर भूमि पर सेब की खेती की तैयारियां होने लगी हैं। मौसम के मेहरबान होने से एक बार फिर जिले में सेब की खेती के लिए अनुकूल माहौल हो चुका है। आने वाले वर्षों में दारमा, व्यास, चौदास सहित उच्च मध्य हिमालय की घाटियों में सेब का अच्छा उत्पादन होने के आसार नजर आ रहे हैं। सेब के लिए वांछित 1300 से 1500 घंटों का चिलिंग प्वाइंट मिल चुका है। सात डिग्री सेल्सियस से कम तापमान होने के कारण से विगत कुछ वर्षों पूर्व तक यहां सेब की खेती तकरीबन बंद हो चुकी थी। एक बार फिर से सेब की खेती शुरू होने से घाटी के लोगों की तकदीर बदलेगी और आर्थिक किल्‍लत दूर हो सकेगी।

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कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग पर होगी सेग की खेती

धारचूला की कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग में पडऩे वाली व्यास घाटी में अठारह हेक्टेयर भूमि पर बीएडीपी के तहत सेब की खेती की जाएगी। इसके अलावा अन्य स्थानों पर सेब मिशन के तहत 25 हेक्टेयर भूमि पर सेब की खेती की जाएगी। अस्सी के दशक से पूर्व तक सेब की खेती के लिए अग्रणी नारायण आश्रम क्षेत्र के सोसा गांव में ग्रामीण सेब की खेती के लिए आगे जा चुके हैं। मौसम के कभी प्रतिकूल होने पर उद्यान विभाग फसल को बचाने के लिए कोल्ड रूम बनाने जा रहा है। इस बार भी बर्फबारी से भले ही शीत में बढ़ोतरी हुई है, परंतु जिले के एक बार फिर सेब उत्पादन का सिरमौर बनने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।

बौना गांव के सेब ने मचाई थी धूम

1990 के दशक तक पिथौरागढ़  जिला सेब उत्पादन में अग्रणी जिला रहा है। धारचूला के भटका फार्म से लेकर नारायण आश्रम हो या फिर मुनस्यारी का बौना, तौमिक गांव ग्रीन डेलिसिस सेब के लिए प्रसिद्ध था। मुनस्यारी के नौ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित बौना गांव के सेब की धाक गांव, जिला व प्रदेश से बाहर निकल कर मुंबई तक पहुंची थी। तब बौना गांव तक पहुंचना काफी कठिन था। बौना गांव सड़क से 86 किमी दूर था। बौना गांव में सेब के असंख्य वृक्ष थे। यहां पर उत्पादित सेब की महक उस दौर में भी देशभर तक पहुंचती थी। इस दौर में मुंबई में सेब की प्रदर्शनी लगी। तत्कालीन जिला उद्यान अधिकारी ने बौना से सेब मंगा कर मुंबई की सेब प्रदर्शनी में भेजे थे। बौना के सेब को देेखकर विशेषज्ञ चौंक गए।

1300 से 1800  घंटे चिलिंग प्वाइंट चाहिए सेब के लिए

सेब के लिए 1300 से 1800  घंटे चिलिंग प्वाइंट चाहिए। बीते वर्षों में मौसम में आए परिवर्तन से बर्फबारी कम होने से सेब को चिलिंग प्वाइंट नहीं मिल पा रहा था। जिसके चलते सेब का उत्पादन अधिक ऊंचाई पर होने लगा था। आइटीबीपी द्वारा तो गुंजी में सेब का बागान बनाया गया है। जहां पर सेब का उत्पादन होने लगा है। बीते वर्ष से हिमपात  की स्थिति में सुधार आ चुका है। लंबे समय बाद इस बार नवंबर माह से ही हिमपात हो रहा है। शीतकाल में अधिक हिमपात होने से सेब को वांछित तापमान मिलने वाला है। सेब उत्पादक क्षेत्रों में वांछित तापमान सात डिग्री से कम हो चुका है।

अनुकूल हुआ मौसम, बनाए जा रहे कोल्‍ड रूम

आरएल वर्मा, जिला उद्यान अधिकारी, पिथौरागढ़ ने बताया कि सेब उत्पादन के लिए अनुकूल माहौल बन चुका है। उद्यान विभाग व्यास घाटी में बीएडीपी की मदद से 18 हेक्टेयर भूमि में सेब के बाग बना रहा है। जिसके लिए सेब की पौध आ चुकी है। सेब मिशन के तहत जिले के 25 हेक्टेयर भूमि पर सेब के पौधे लगाए जा रहे हैं। सेब को बचाने के लिए 15 गुणा 15 फीट के कोल्ड रूम बनाए जा रहे हैं। कभी मौसम खराब होने पर सेब उत्पादक अपनी फसल इनमें रख सकते हैं। सेब की पुरानी प्रजाति समाप्त हो चुकी है नई प्रजाति के पौध लगाए जाएंगे।

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