डीएसबी कॉलेज छात्रसंघ चुनाव में ABVP की हार का कारण सामने आया, भाजपा की गुटबाजी व भितरघात!
नैनीताल के डीएसबी कॉलेज छात्रसंघ चुनाव में एबीवीपी की हार से भाजपा में गुटबाजी उजागर हो गई है। निर्दलीय उम्मीदवार की जीत ने भाजपा संगठन की एकजुटता के दावों को कमजोर कर दिया है। इस हार के बाद भाजपा और संघ के संगठनों में घमासान होने की संभावना है। कांग्रेस के साथ अघोषित गठबंधन ने भी भाजपा को नुकसान पहुंचाया।

किशोर जोशी, नैनीताल। कुमाऊं विवि के सबसे बड़े परिसर डीएसबी कालेज छात्रसंघ चुनाव के अध्यक्ष पद पर आरएसएस के मातृ संगठन एबीवीपी की हार ने एक बार फिर शहर में भाजपा की गुटबाजी व भितरघात की प्रवृति को जगजाहिर कर दिया है।
इस हार के साथ ही 2027 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए बड़ा संदेश दे दिया है। निकाय चुनाव के बाद इस हार के बाद भाजपा संगठन की एकजुटता व मजबूत संगठन के दावे की हवा निकाल दी है। साथ ही भाजपा व संघ के अनुसांगिक संगठनों में घमासान के आसार बन गए हैं।
निकाय के बाद छात्रसंघ में हार से सदमे में भाजपाई
दरअसल इस बार छात्र संघ चुनाव में एबीवीपी ने मजबूत, मिलनसार के साथ छात्रों में लोकप्रिय तनिष्क मेहरा को प्रत्याशी घोषित किया लेकिन टिकट घोषित करने से पहले प्रमुख नेताओं से पूछा तक नहीं। निर्दलीय जीते अध्यक्ष करन सती भी एबीवीपी से टिकट के दावेदार थे। सती तमाम भाजपा नेताओं के करीबी थे। संगठन की गतिविधियों में सक्रिय भूमिका को देखते हुए तनिष्क को प्रत्याशी घोषित किया गया तो सती निर्दलीय काले झंडे के बैनर तले चुनावी समर में कूद पड़े और जीत दर्ज कर संगठन के निर्णय को गलत साबित कर दिखाया। चुनाव परिणाम ने भगवा खेमे में खलबली मचा दी है।
कांग्रेस से किया अघोषित गठबंधन
एबीवीपी से टिकट नहीं मिलने के बाद तनिष्क के रणनीतिकारों ने स्थानीय भाजपा नेताओं ने कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई से कभी नाराज रहे नेताओं से हाथ मिला लिया तो कांग्रेस के नेता भी खुलकर समर्थन में उतर गए। एनएसयूआई के प्रदेश महासचिव रहे तेजतर्रार सूरज पांडे ने सालों पहले टिकट नहीं मिलने पर काले झंडे के बैनर तले अपना प्रत्याशी उतार दिया। एनएसयूआई का टिकट नहीं मिलने पर कांग्रेस मूल के शिवम बिष्ट ने छात्रसंघ अध्यक्ष में जीत दर्ज कर सबको चोंका दिया। तब से काले झंडे के बैनर तले टिकट से नाराज प्रत्याशी मैदान में उतरते रहे हैं। इस बार भी उतरे।
अब तेज होगा घमासान
डीएसबी के करीब आधा दर्जन छात्रसंघ अध्यक्षों की अपील के बाद भी एबीवीपी हार गई जबकि प्रत्याशी तनिष्क के रणनीतिकारों ने मतदाताओं को अपने पक्ष में करने को खूब प्रयास किए। आर्थिक संसाधन भी झोंके लेकिन नतीजा विपरीत आने के बाद हर कोई हक्काबक्का है। स्थानीय निकाय चुनाव में अनुकूल परिस्थितियों के बाद भी भाजपा प्रत्याशी जीवंती भट्ट को हार का मुंह देखना पड़ा लेकिन तब भी भितरघात करने वालों पर कोई एक्शन नहीं हुआ तो छात्रसंघ चुनाव में भितरघात को और हवा मिल गई।
बहरहाल छात्रसंघ चुनाव में एबीवीपी की हार ने भगवा खेमे में खलबली मच गई है जबकि कांग्रेस सहित विपक्षी खेमा जीत का जश्न मना रहा है। अब देखना यह है कि इस हार के बाद भाजपा संगठन की नींद टूटती है या नहीं, इसका राजनीतिक विश्लेषकों को इंतजार है।
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