अब मक्खी की वजह से पालतू जानवरों की नींद नहीं होगी खराब
कुछ मक्खियां जानवरों का रक्त चूसती है और रोगो का संचरण करती हैं, लेकिन अब ऐसी तकनीकी आ गई है जो पालतू जानवरों को मक्खियों के प्रकोप से बचाएगी।
हल्द्वानी, [जेएनएन]: ग्रामीण क्षेत्र हो या शहर मक्खी का प्रकोप हर जगह है। इंसान तो जैसे-तैसे इससे बचाव कर लेता है, लेकिन पालतू जानवरों के पास मक्खियों को भगाने के लिए सिवाए पूंछ हिलाने के कोई दूसरा उपाय नहीं। कुछ मक्खियां जानवरों का रक्त चूसती है और रोगो का संचरण करती हैं, लेकिन अब ऐसी तकनीकी आ गई है जो पालतू जानवरों को मक्खियों के प्रकोप से बचाएगी। पढ़ें, पूरी खबर विस्तार से।
पशुपालक अब भी आग जलाकर जानवरों के आसपास धुंआ लगाकर मच्छर मक्खी भगाने का तकनीक अपना रहे हैं। इससे जानवरों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। पशुओं की उत्पादकता हमेशा बनी रही, इसके लिए जरूरी है कि वे रोगमुक्त रहें।
पढ़ें: कार्बेट और राजाजी पार्क में सालों बाद हाथी की सवारी
अब पॉलीबिनायल क्लोराइड से बने इयर टैग व टेल बेंड्स कॉलर तकनीक से मक्खियां जानवरों के पास फटकेंगी भी नहीं। यह तकनीकी विदेश में तो लोकप्रिय हो रही है, लेकिन स्थानीय स्तर पर इस तकनीक के प्रति पशुपालक ज्यादा गंभीर नहीं हैं।
बता दें कि पशुओं के परजीवी उनमें छिपे रूप में रहते है और धीरे-धीरे उनकी सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं। जानवरों के शरीर के बाहर त्वचा पर पाए जाने वाले परजीवी उनका रक्त पीते हैं। भारत में इन बाहरी परजीवियों के पनपने के लिए उचित तापमान व आर्द्रता मिल जाती है, जिससे पशु इनसे वर्ष भर ग्रसित रहते हैं।
दूसरी ओर पशुपालक पशुओं को परजीवियों से राहत दिलाने के लिए परंपरागत तरीके तो अपना रहे हैं, लेकिन नई तकनीक को अपनाने में अभी भी पिछड़े हैं।
पढ़ें: राजाजी टाइगर रिजर्व में कीजिए जंगल सफारी और रोमांच की सैर
पंतनगर कृषि प्रौद्योगिकी विवि के सहायक प्रोफेसर डा. विद्या सागर के अनुसार, पशुओं की सेहत के प्रति पशुपालक अभी ज्यादा जागरूक नही है। पशुओं को परजीवियों से बचाने के लिए इयर टैग सहित कुछ और नई विधियां तो विकसित की गई है, लेकिन अभी इन्हें अपनाने में पशुपालक संकोच करते हैं।
वरिष्ठ पशु चिकित्सक डा. डीसी जोशी का कहना है कि न्यूजीलैंड और पशुपालन के क्षेत्र में अग्रणी देशों में इयर टैग तकनीक को अपनाया जा रहा है। यहां भी इसे आसानी से इसे अपनाया जा सकता है। क्योंकि एक बार टैग लगाने के बाद यह लंबे समय तक काम करता है।
ऐसे काम करता है इयर टैग
छह माह से कम उम्र के पशु में एक कान, जबकि इससे अधिक उम्र के पशु के दोनों कानों पर इयर टैग लगाया जाता है। टैग लगाने के बाद पशु के कान की नसों के जरिये दवा एक निश्चित मात्रा में रिलीज होती रहती है और पशु के रक्त में मिल जाती है। जिससे पशु के शरीर पर रक्त चूसने वाले बाहरी परजीवी नष्ट होने लगते हैं।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।