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    हिमालयी नदियों में पाई जाने वाली मछलियों की 41 प्रजातियां संकटग्रस्त, महाशीर भी हो जाएगी ब‍िलुप्‍त

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Sat, 21 Nov 2020 03:48 PM (IST)

    अवैध शिकार खनन बेतहाषा निर्माण कार्य पर्यावरणीय कचरा आदि का अब हिमालयी नदियों में पाए जाने वाले जलचरों में भी दिखाई देने लगा है। इसके दुष्प्रभाव से हिमालयी नदियों में पाई जाने वाली मछलियों की 41 प्रजातियां संकटग्रस्त हैं।

    हिमालयी नदियों में पाई जाने महाशीर के अस्‍ति‍त्‍व पर संकट गहराने लगा है।

    बागेश्वर, चंद्रशेखर द्विेवेदी: अवैध शिकार, खनन, बेतहाषा निर्माण कार्य, पर्यावरणीय कचरा आदि का अब हिमालयी नदियों में पाए जाने वाले जलचरों में भी  दिखाई देने लगा है। इसके दुष्प्रभाव से हिमालयी नदियों में पाई जाने वाली मछलियों की 41 प्रजातियां संकटग्रस्त हैं। इनमें से सबसे अधिक प्रभावित महाशीर मछली है। जीव वैज्ञानिकों का मानना है कि महाषीर हिमालयी नदियों से लगातार लुप्त हो रही है जो नदियों  के  खत्म होने की ओर भी संकेत कर रही है।  अगर हिमालयी  नदियों से इसी तरह महाशीर खत्म होती रही तो अगले 50 वर्षों अधिकांश हिमालयी नदियां सूख जाएगी।

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    महाशीर मछली प्रायं सभी हिमालयी नदियों में पाई जाती है। आज हिमालयी नदियों से महाशीर के अलावा मछलियों की चालीस प्रजातियां समाप्त होने  के कगार पर है। जो भयंकर पर्यावरणीय संकट की ओर इ। महाशीर मछली नदियों के जलस्तर के घटने व बढ़ने  का भी सूचक है अगर यह हिमालयी नदियों से लुप्त हो रही है तो यह घटते जलस्तर का स्पष्‍ट संकेत है। जिस कारण वैज्ञानिकों ने हिमालयी नदियों  के सूखने तक की भविश्यवाणी कर दी है। हिमालयी नदियों में महाशीर की दो प्रजातियां  पाई जाती है। पहली टोरटोर और दूसरी टोरपीटीटोरा महाशीर।  टोरटोर, टोरपीटीटोरा महाषीर से छोटी होती है। यह मछली सुनहरे पीले  रंग की होती है, इसका  वजन 15 से 50 किलो व लम्बाई एक फीट से तीन फीट  तक होती  है। महाषीर का प्रजनन काल अप्रैल से सितम्बर तक होता है। जीव वैज्ञानिकों का मानना है कि महाषीर के  लुप्त होने का  प्रमुख कारण अवैध षिकार, मछलियों को पकड़ने  के लिए बिस्फोटकों का प्रयोग, बेतहाषा अवैध खनन व बड़े-बड़े  बांधों का निर्माण कार्य है।

    अवैध खनन सबसे बड़ा संकट

    पर्यावरणविद् डा. रमेश बिष्ट ने बताया कि महाशीर का प्रजनन काल अप्रैल से सितम्बर माह  के समय होता है। प्रजनन के बाद यह अपने अण्डे देने नदियों के किनारे बालू या झाड़ियों  के पास आते है। लेकिन इसी समय नदियों से अवैध खनन भी होता है। जिस से इसके अण्डे सुरक्षित  नही रहते और बच्चे नही बच पाते। वही बड़े-बड़े बांधों के निर्माण से महाशीर मछलियां एक स्थान  से  दूसरे  स्थान  तक नही जा पाती है। मछलियां अपने जीवन काल में  प्रजनन के समय अण्डे देने के लिए गहरे पानी से किनारे की ओर आते है। बड़े-बड़े बांध इस प्रक्रिया में बाधा बनते है। जिस कारण मछलियां एक स्थान से दूसरे स्थान तक नही जा पाती और अपना प्रजनन नही कर पाती है। जो मछलियों के विलुप्ति का सबसे बड़ा कारण है। सरकार द्वारा महाशीर मछलियों के अवैध षिकार पर पूर्णतया प्रतिबंध लगाने के  बाद भी इसका अवैध शिकार लगातार जारी है।

    व‍िश्‍वभर में फैली है प्रजाति‍

    कुमाऊं विश्वविद्यालय के जीव वैज्ञानिक डा. एसएस पतनी ने बताया कि महाशीर के खत्म होने का बढ़ता मानव हस्तक्षेप के साथ विदेषी मछलियों का हिमालयी नदियों में प्रवेष करना है। इन विदेषी  मछलियों की  प्रजातियों मंे  मुख्य रूप से थाइमांगो, मिरर कार्प, सिल्वर कार्प आदि प्रमुख हैं। इन मछलियों के हिमालयी नदियों में  आने से इसका  असर महाषीर की  खाद्य श्रृंख्ला में पड़ा है। थाइमांगो जैसी  विदेशी प्रजाति की मछलियां तो महाशीर को ही अपना शिकार बनाती है। पतनी ने बताया कि महाषीर के लुप्त होने का  असर जैव विविधता व पारस्थितिकीय तंत्र पर भी पड़ा है। वहीं दूसरी ओर हिमालयी नदियों के सूखने़ की प्रक्रिया भी षुरू हो गयी है। अगर महाषीर मछलियां इसी तरह लुप्त होते रही तो अगले 50  वर्षों  अधिकांश हिमालयी नदियां भी सूख जाएंगी। श्री पतनी ने बताया कि अगर समय रहते युद्ध स्तर पर  कोई कार्य नही किया तो वह दिन दूर नही जब हिमालयी नदियां सूखने के कगार पर होगी।

    सरकार कर रही प्रयास

    जिला मत्स्य अधिकारी राकेश मियान ने बताया कि महाशीर मछलियों को बचाने के लिए सरकार द्वारा कार्य शुरू कर दिए गये है। वहीं मत्स्य के क्षेत्र में स्थानीय  लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है। वह दिन दूर नही  जब राज्य मस्त्य क्षेत्र में क्रांति कर आर्थिक रूप से निर्भर बन जाएगा।