सीवरेज-ड्रेनेज की कुल मात्रा का पता नहीं और हजार करोड़ की योजना शुरू
हरिद्वार में उत्सर्जित होने वाले सीवरेज और ड्रेनेज की कुल मात्रा का पता न होने पर भी गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए एक हजार करोड़ रुपये की योजना बना दी गई।
हरिद्वार, अनूप कुमार। अनियोजित विकास का इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा कि धर्मनगरी हरिद्वार में उत्सर्जित होने वाले सीवरेज-ड्रेनेज की कुल मात्रा का पता न होने पर भी गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए एक हजार करोड़ रुपये की योजना बना दी गई। यही नहीं, इसमें से करीब 500 करोड़ की योजना पर काम भी शुरू कर दिया गया है। इसका पता दैनिक जागरण द्वारा आरटीआइ (सूचना का अधिकार) के तहत मांगी गई जानकारी में चला।
कमोबेश यही हाल गंगा को प्रदूषणमुक्तकरने के लिए बाकी स्थानों पर चल रही योजनाओं का भी है। हैरत देखिए कि संबंधित विभागों को अब तक यह भी मालूम नहीं कि हरिद्वार में कुल कितना सीवरेज-ड्रेनेज सीधे गंगा में गिर रहा है। इसका आकलन शहरी क्षेत्र में जल संस्थान की ओर से जलापूर्ति के लिए किए जाने वाले जल उत्पादन की कुल मात्रा 112 एमएलडी (मिलियन लीटर्स पर डे) पर आधारित है।
हरिद्वार की सीवरेज व्यवस्था और उत्सर्जित सीवरेज व ड्रेनेज के ट्रीटमेंट पर अलग-अलग मदों में लगभग एक हजार करोड़ की योजना पर काम हो रहा है। जबकिजिम्मेदार विभाग निर्माण व अनुरक्षण इकाई गंगा पेयजल निगम को यह जानकारी तक नहीं कि हरिद्वार शहर से रोजाना कितना सीवरेज व ड्रेनेज उत्सर्जित होता है, कितना पंपिंग स्टेशनों से होकर एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) तक पहुंचता है और कितना बिना शोधन के रोजाना गंगा में प्रवाहित होता है। दैनिक जागरण की ओर से आरटीआइ में मांगी गई जानकारी में बताया गया कि- हरिद्वार में वर्तमान में तीन एसटीपी की जल शोधित करने की कुल मात्रा और शोधित जल को छोड़ शहरी क्षेत्र से निकलने वाले सीवरेज की मात्रा का आकलन करने की कोई ठोस व्यवस्था विभाग के पास नहीं है। लिहाजा इस संबंध में पुख्ता जानकारी उपलब्ध कराना संभव नहीं है।
बता दें कि निर्माण व अनुरक्षण इकाई गंगा पेयजल निगम हरिद्वार में करीब 480 करोड़ की लागत से गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए जगजीतपुर और सराय में क्रमश: 68 और 14 एमएलडी क्षमता वाले दो एसटीपी का निर्माण करा रहा है। साथ ही 26 पंपिंग स्टेशनों के उच्चीकरण, तकनीकी क्षमता का विकास व विस्तार और सीवरेज विहीन इलाकों में सीवर लाइन की स्थापना आदि पर लगभग 200 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इसके अलावा जर्मन डेवलपमेंट बैंक की सहायता से करोड़ों की योजना का खाका तैयार हो रहा है।
गंगा पेयजल निगम की ओर से कार्यालय अधिशासी अभियंता अनुरक्षण शाखा (गंगा) और उत्तराखंड जल संस्थान ने जो सूचना उपलब्ध कराई है, उसके मुताबिक हरिद्वार में पहले से स्थापित तीन एसटीपी की क्षमता क्रमश: 27 एमएलडी व 18 एमएलडी (जगजीतपुर) और 18 एमएलडी (सराय) है। इनसे इतना ही सीवरेज जल शोधित किया जा रहा है। बाकी सीवरेज के आकलन की न तो कोई व्यवस्था है और न फ्लो मीटर ही लगाया गया है। ऐसे में बता पाना संभव नहीं कि रोजाना सीवरेज और ड्रेनेज का कुल कितनी मात्रा में उत्सर्जन होता है और बिना शोधन के कुल कितना सीवरेज व ड्रेनेज सीधे गंगा में डाला जा रहा है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि गंगा को सीवरेज और ड्रेनेज जल के प्रदूषण से मुक्त करने को करोड़ों की योजना का खाका कैसे और किस आधार पर तैयार किया गया।
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