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    भगवान शिव को प्रिय Sawan 2024 में इस बार अद्भुत संयोग, पढ़ें, इस माह में क्‍यों होता है सोमवार का दिन खास?

    By Rena Edited By: Nirmala Bohra
    Updated: Thu, 18 Jul 2024 11:38 AM (IST)

    Sawan 2024 श्रावण मास 22 जुलाई से प्रारंभ हो रहा है। इस बार श्रावण मास कई विशेषताओं के साथ प्रारंभ होगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की परिसर स्थित श्री सरस्वती मंदिर के आचार्य राकेश कुमार शुक्ल ने बताया कि श्रावण मास भगवान शिव को अधिक प्रिय होता है। श्रावण सोमवार का व्रत करने से कुंवारी कन्याओं को अच्छा वर मिलता है।

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    Sawan 2024: श्रावण मास में पांच सोमवार का होगा अद्भुत संयोग

    जागरण संवाददाता, रुड़की। Sawan 2024: इस बार श्रावण मास कई विशेषताओं के साथ प्रारंभ होगा। इस बाद सावन का सोमवार को ही प्रारंभ और सोमवार को ही समापन होगा। वहीं, इस श्रावण मास में पांच सोमवार का अद्भुत संयोग पड़ रहा है। श्रावण मास 22 जुलाई से प्रारंभ हो रहा है।

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    भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की परिसर स्थित श्री सरस्वती मंदिर के आचार्य राकेश कुमार शुक्ल ने बताया कि श्रावण मास भगवान शिव को अधिक प्रिय होता है। इस बार श्रावण मास सोमवार से शुरू होकर इसी दिन संपन्न होगा। क्योंकि सोम का अर्थ चंद्रमा से होता है और चंद्रमा भगवान शिव को अधिक प्रिय है, जिन्हें वह मस्तक पर धारण करते हैं। इसलिए भगवान शिव को सोमवार का दिन अधिक प्रिय होता है।

    ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति भक्ति भाव से भगवान शिव की पूजा, अभिषेक आदि करता है उसे सकल पदार्थ की प्राप्ति होती है। उन्होंने बताया कि श्रावण सोमवार का व्रत करने से कुंवारी कन्याओं को अच्छा वर मिलता है। वहीं, सुहागिनों को पति की दीर्घायु प्राप्ति होती है। कहा कि वैसे तो पूरा श्रावण मास शिव की आराधना के लिए होता है लेकिन इस मास में पड़ने वाले सोमवार व मंगलवार का अपना विशेष महत्व है। श्रावण मास के मंगलवार को शक्ति स्वरूपा मंगला गौरी की आराधना की जाती है।

    विष की ज्वाला को शांत करने के लिए गंगाजल से किया था अभिषेक

    आचार्य राकेश कुमार शुक्ल ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जिस समय भगवान शिव ने विषपान किया था और उससे उनका कंठ नीला पड़ गया था तो विष की ज्वाला को शांत करने के लिए देवताओं ने भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक किया था। जिससे ज्वाला शांत हुई थी। वो श्रावण का पवित्र मास था। इसलिए भगवान शिव को श्रावण मास अधिक प्रिय है।

    इसके अलावा माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए श्रावण मास में घोर तपस्या की थी। इसलिए भी भगवान शिव को श्रावण मास अधिक प्रिय है। पुराणों के अनुसार श्रावण मास में भगवान शिव पृथ्वी लोक पर दक्ष प्रजापति क्षेत्र में अपनी ससुराल में रहते हैं। इसीलिए ऐसा माना जाता है कि इस समय गंगा का जल शिवमय हो जाता है और गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करने से चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है।

    सावन में शिव के अभिषेक से अभीष्ट की प्राप्ति

    वैसे तो भगवान शिव की पूजा बारहों महीने, 365 दिन फलदायी है, लेकिन सावन के महीने में किए जाने वाले शिव पूजन को समस्त कामनाओं की पूर्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि इस माह में सुपूजित होने पर शिव कष्टों का निवारण करते हैं। मृत्यु के समान कष्ट को भी दूर करने में समर्थ होते हैं। श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा-अर्चना और जलाभिषेक से समस्त अभीष्ट फल प्राप्त होते हैं। सनातन धर्म में श्रावण मास को भगवान शिव की भक्ति के लिए विशेष माना गया है।

    शास्त्रीय मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान शिव की उपासना से जीवन में सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति तो होती ही है, मृतयोग के समान विपत्ति भी टल जाती है। शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव को प्रिय सावन के महीने में ही पर्वतराज हिमालय की पुत्री माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद दिया था।

    यह भी मान्यता है कि श्रावण मास में ही देवता और असुरों के मध्य समुद्र मंथन किया गया था। मंथन में निकले 14 रत्नों में हलाहल विष भी शामिल था। यह ऐसा विष था, जिससे संपूर्ण सृष्टि का सर्वनाश निश्चित था। इसलिए संसार के कल्याण के लिए भगवान शिव ने स्वयं उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया था। इसलिए महादेव को ‘नीलकंठ’ नाम से भी जाना जाता है। सभी देवताओं ने विष के प्रचंड वेग को कम करने के लिए भगवान शिव पर जल का अभिषेक किया था।

    सावन के महीने में भगवान शिव का जलाभिषेक करने से वह प्रसन्न होकर भक्तों की सभी प्रार्थनाएं सुनते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि हमारे दुखों का कारण जाने-अनजाने किए गए पाप ही होते हैं, लेकिन रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से पातक कर्म एवं महापातक जलकर भस्म हो जाते हैं। इससे साधक में शिवत्व का उदय होता है और भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होने से उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

    - पं. राधाकृष्ण थपलियाल, धर्माधिकारी, श्री बदरीनाथ धाम