आचरण की पारदर्शिता और विचार की पवित्रता का नाम है संन्यास
पतंजलि योगपीठ के ऋषि ग्राम में बृहस्पतिवार को संन्यास दीक्षा के समापन अवसर 92 नव दीक्षित संन्यासियों को योगगुरु बाबा रामदेव ने आशीर्वाद दिया।
हरिद्वार, [जेएनएन]: आचरण की पारदर्शिता और विचार की पवित्रता का नाम ही संन्यास है। यह पूर्णता और अनंत का मार्ग है। मानव जीवन की यह बड़ी उपलब्धि है। शास्त्र कहते हैं कि जिस कुल खानदान में एक भी व्यक्ति संन्यासी हो जाता है तो उसका समूचा कुल पवित्र हो जाता है।
पतंजलि योगपीठ के ऋषि ग्राम में बृहस्पतिवार को संन्यास दीक्षा के समापन पर 92 नव दीक्षित संन्यासियों को आशीर्वाद देते हुए योगगुरु बाबा रामदेव ने कहा कि सेवा धर्म का अनुष्ठान और जीवन सदा मोक्ष के लिए प्रयत्न करना ही संन्यासियों का व्रत है। समस्त सांसारिक भोगों, राग द्वेष रूपी चित्त और अभिमान को छोड़ वैराग्य के भाव से निर्मल अध्यात्म में परायण रहते हुए इस संसार में जनसेवा और परोपकार के लिए अपने जीवन को समर्पित करने वाले ये संन्यासी अत्यंत सौभाग्यशाली हैं।
आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि संन्यासी बनने और बनाने की चीज नहीं है। यह अंदर की ऊर्जा को जागृत कर स्वयं को प्रकट करने की बात है। उन्होंने कहा कि वे परंपरा के संवाहक हैं। पग-पग पर परीक्षा होगी। लोग विद्वेषवश ङ्क्षनदा या स्तुति करें, इस मान अपमान की दशा में भी मन की स्थिति सदैव समान बनी रहनी चाहिए। जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज ने कहा कि यह अत्यंत प्रसन्नता और गौरव का विषय है कि पतंजलि योगपीठ और योगगुरु द्वारा किया गया यह पवित्र प्रयास भविष्य में भारत को विश्व पटल पर एक आध्यात्मिक और समृद्ध राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी भारत की है।
यहीं से वैदिक युग की शुरुआत होगी। सामाजिक न्याय और सामाजिक समरसता की बात भी यहीं से होगी। कहा कि पूरे विश्व में डंका बज गया है कि अब पतंजलि संन्यासी पैदा कर रहा है। नव दीक्षित संन्यासियों को प्रणाम करते हुए उन्होंने कहा कि उनसे ढेरों अपेक्षाएं हैं। स्वामी गोङ्क्षवद गिरी महाराज ने कहा कि यह संन्यास का आरंभ है।
एक गुरु को प्रसन्नता तब होगी जब उसका शिष्य उसे पराजित कर दे। गुरु शरणानंद ने कहा कि संन्यासी किसी का नहीं होता इसलिए वह सबका होता है। गीता मनीषी विज्ञानानंद ने कहा कि योग और संन्यास के ग्लैमर को विश्व मीडिया ने आदर्श रूप में स्वीकार किया है। काष्र्णीपीठाधीश्वर गुरु शरणानंद जी महाराज ने कहा कि संन्यासी कदापि ऐसा आचरण न करे, जिससे उसकी गुरु सत्ता, समाज, कुल व संस्कृति कलंकित हो।500 नवदीक्षु ब्रह्मचारी प्रवेश को तैयार
रामनवमी से गुरुपूर्णिमा तक लगभग 500 नवदीक्षु ब्रह्मचारियों वैदिक गुरुकुलम में प्रवेश के लिए आ रहे हैं। इन्हें अष्टाध्यायी, वेद, पुराण, दर्शन, व्याकरण, उपनिषद आदि की शिक्षा देकर अगले चरण के लिए तैयार किया जाएगा। उन्होंने बताया कि ये सभी नवदीक्षित संन्यासी और नवागंतुक ब्रह्मचारी प्रज्ञावान मस्तिष्क के स्वामी हैं। इनका जीवन ज्ञान की पराकाष्ठा है। यदि ये डॉक्टर, इंजीनियर, आइआइएम के स्कॉलर या किसी भी क्षेत्रा में होते तो वहां भी टॉप करने की क्षमता इनमें है। इनके माता-पिता ने इन्हें उपहार रूप में हमें देकर हम पर उपकार किया है।
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