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    आयुर्वेद के गौरव को वापस लाएगा पीआरआइ : आचार्य बालकृष्ण

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 14 Dec 2021 07:53 PM (IST)

    आयुर्वेदिक अनुसंधान के क्षेत्र में पतंजलि योगपीठ ने पतंजलि अनुसंधान संस्थान (पीआरआइ) के माध्यम से नवीन क्रांति का सूत्रपात किया है। पतंजलि अनुसंधान संस्थान की ओर से अनुसंधित गुणकारी आयुर्वेदिक औषधियों जैसे कोरोनिल लिपिडोम मधुग्रिट थायरोग्रिट पीड़ानिल गोल्ड आर्थोग्रिट आदि का लाभ पूरी मानव जाति को मिल रहा है।

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    आयुर्वेद के गौरव को वापस लाएगा पीआरआइ : आचार्य बालकृष्ण

    जागरण संवाददाता, हरिद्वार: आयुर्वेदिक अनुसंधान के क्षेत्र में पतंजलि योगपीठ ने पतंजलि अनुसंधान संस्थान (पीआरआइ) के माध्यम से नवीन क्रांति का सूत्रपात किया है। पतंजलि अनुसंधान संस्थान की ओर से अनुसंधित गुणकारी आयुर्वेदिक औषधियों जैसे कोरोनिल, लिपिडोम, मधुग्रिट, थायरोग्रिट, पीड़ानिल गोल्ड, आर्थोग्रिट आदि का लाभ पूरी मानव जाति को मिल रहा है। इस क्रम में पीआरआइ ने प्राचीन ऋषियों की अमूल्य खोज 'च्यवनप्राश' पर गहन अनुसंधान कर उसे वैज्ञानिक मापदंडों के साथ प्रस्तुत करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है, जिसे विश्व प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय जर्नल, फ्रंटियर्स इन फार्मोकोलाजी ने प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया है।

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    इस अवसर पर आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि पीआरआइ के वैज्ञानिकों ने गहन अनुसंधान कर पता लगाया है कि च्यवनप्राश कैसे हमारे शरीर को बुखार, खांसी और सर्दी से लड़ने में मदद करता है और कैसे हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। हमारे वैज्ञानिकों ने पतंजलि च्यवनप्राश के साथ मानव प्रतिरक्षा कोशिकाओं पर और इसके साथ-साथ, संक्रमण के कारण होने वाली बीमारियों के जेब्राफिश माडल पर अपना अध्ययन किया।

    पतंजलि अनुसंधान संस्थान ने आयुर्वेद की प्राचीन विधा को पूरी प्रामाणिकता और वैज्ञानिक मापदंडों के साथ प्रस्तुत किया है। आयुर्वेद के लिए यह एक गौरव का क्षण है। आचार्य ने बताया कि यह शोध-पत्र फ्रंटियर्स इन फार्मोकोलाजी जर्नल की वेबसाइट पर अब निश्शुल्क उपलब्ध है।

    आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि इस प्रकार के अनुसंधान हमारे गौरवशाली आयुर्वेद के इतिहास को पुनर्जीवित करने में एक अग्रणी कार्य है। यह आयुर्वेदिक अनुसंधान को नई दिशा की ओर मोड़ने की शुरुआत है।

    पीआरआइ के प्रमुख वैज्ञानिक डा. अनुराग वाष्र्णेय ने बताया कि संक्रमित जेब्राफिश मनुष्यों की तरह बुखार सहित संशोधित प्रतिरक्षा की स्थिति दर्शाती है। बताया कि जब इन संक्रमित जेब्राफिश पर पतंजलि स्पेशल च्यवनप्राश प्रयोग किया गया तो इनके बढ़े हुए बायोमार्कर (सीआरपी इत्यादि) कम हो गए। बुखार हमारे शरीर को कमजोर कर देता है और हम थकान महसूस करते हैं। इसी प्रकार संक्रमित जेब्राफिश भी कम सक्रिय होती है लेकिन जब उन्हें पतंजलि स्पेशल च्यवनप्राश दिया गया तो उनकी सक्रियता बढ़ी हुई पाई गई। डा. वाष्र्णेय ने बताया कि संक्रमण एक विशेष प्रक्रिया से खांसी, सर्दी, जुकाम का कारण बनता है। विज्ञान की भाषा में इसे इंफ्रलेमेशन कहते हैं। कुछ जैविक अणु जिन्हें साइटोकाइंस कहते हैं। पतंजलि स्पेशल च्यवनप्राश रोगों के कारण बढ़े हुए इन संकेतकों के स्तर को मात्रानुसार कम करता है। इस अध्ययन से यह भी पता चला कि पतंजलि स्पेशल च्यवनप्राश में पौधों से प्राप्त यौगिकों का समावेश है, जोकि उच्च कोटि के औषधीय गुणों से परिपूर्ण है।

    आचार्य बालकृष्ण ने बताया कि जब हम पतंजलि स्पेशल च्यवनप्राश का सेवन करते हैं तो यह हमारी प्रतिरक्षा इम्युनिटी को बढ़ाता है और शरीर में इंफ्रलेमेशन पैदा करने वाले साइटोकाइंस को नियंत्रण में रखता है। प्राचीन आयुर्वेदिक ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के आलोक में प्रस्तुति अपने आप में एक अविस्मरणीय उपलब्धि है। पीआरआइ नित नए अत्याधुनिक शोध कर आयुर्वेद के बहुप्रतीक्षित गौरव को वापस लाएगा।