Uttarkashi: आपदाओं के जोखिम कम करने को मजबूत Disaster Management Plan जरूरी, समझनी होगी जिम्मेदारी
भारतीय हिमालय क्षेत्र में आपदाओं का खतरा बना रहता है। केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) रुड़की के वैज्ञानिक डॉ. अजय चौरसिया के अनुसार आपदा प्रबंधन योजना में रोकथाम तैयारी प्रतिक्रिया और पुनर्निर्माण शामिल हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माण नियमों का पालन करना जरूरी है। आपदा पीड़ितों को राहत पहुंचाने के लिए पहले से व्यवस्था होनी चाहिए। आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

रीना डंडरियाल, रुड़की। भारतीय हिमालय क्षेत्र विभिन्न प्रकार की आपदाओं जैसे-बाढ़, भूकंप, भूस्खलन, ग्लेशियर टूटना, ग्लेशियर झील, बादल फटना आदि को लेकर संवेदनशील है। क्योंकि हिमालय पर्वत नया एवं कमजोर है।
वहीं उत्तराखंड, हिमाचल आदि पहाड़ी राज्यों में धराली जैसी प्राकृतिक आपदाओं का जोखिम हमेशा बना रहता है। इसलिए इन राज्यों में मजबूत आपदा प्रबंधन योजना की बेहद आवश्यकता है। क्योंकि इससे भले ही प्राकृतिक आपदाओं को रोका न जा सके लेकिन जान-माल के खतरे को काफी कम किया जा सकता है।
यह कहना है केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआइ) रुड़की के संरचना अभियांत्रिकी प्रभाग के मुख्य विज्ञानी डा. अजय चौरसिया का। वहीं विज्ञानी कहते हैं कि आपदाओं से होने वाले खतरों को कम करने के लिए जहां राजनीति इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। वहीं ब्यूरोक्रेट्स को भी जिम्मेदारी समझनी होगी। साथ ही जन समुदाय को भी जागरूक होना होगा।
सीबीआरआइ के मुख्य विज्ञानी डा. अजय चौरसिया बताते हैं कि आपदा प्रबंधन योजना के छह कंपोनेंट (अवयव) होते हैं। जिसमें किसी भी प्रकार की आपदा से पहले रोकथाम, न्यूनीकरण (मिटिगेशन) और तैयारी शामिल है। जबकि आपदा के बाद प्रतिक्रिया, पुनर्वास और पुनर्निर्माण महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि प्राकृतिक आपदाओं को रोका नहीं जा सकता हे। ऐसे में बाकी पांच कंपोनेंट पर विशेष ध्यान देने की जरुरत है।
साथ ही पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माण को लेकर बायलाज बनाने और उनके पालन की सख्त जरुरत है। डा. चौरसिया कहते हैं कि लेकिन चिंता की बात है कि पर्वतीय क्षेत्रों में करीब 85 प्रतिशत गैर इंजीनियर्ड इमारतें हैं। यानी इन्हें किसी पेशेवर इंजीनियर द्वारा डिजाइन एवं प्रमाणित नहीं किया जाता है। नियमानुसार नदियों के 50 मीटर के क्षेत्र में मकान आदि निर्माण कार्य नहीं किया जा सकता है।
इसके बावजूद पहाड़ी क्षेत्रों में नदियों के आसपास निर्माण हो रहा है। उनके अनुसार जोशीमठ में 2023 में भू धंसाव की वजह नियमों का पालन नहीं होना था। जोशीमठ में लूज स्याल में लोगों ने मकान बना रखे हैं। ड्रेनेज की कोई व्यवस्था नहीं है। एक मंजिला मकान के ऊपर कई-कई मंजिला इमारत खड़ी कर दी गई हैं। ड्रेनेज सिस्टम नहीं होने के चलते पानी रिसने से नींव कमजोर पड़ जाती है। जिस कारण खतरा बढ़ जाता है।
राहत पहुंचाने की पहले से हो तैयारी
रुड़की: विज्ञानी डा. अजय चौरसिया कहते हैं कि आपदा के बाद राहत बचाव कार्य करने में काफी दिक्कतें आती हैं। ऐसे में धराली में आई जलप्रलय जैसी आपदा के पीड़ितों को तुरंत राहत पहुंचाने के लिए पहले से व्यवस्था होनी चाहिए। सर्वे करके कुछ सुरक्षित स्थान पर स्थित स्कूल, अस्पताल आदि जगहों पर कमरों की व्यवस्था करनी चाहिए। ताकि आपदा के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों पर किसी भी प्रकार की आपदा आने पर पीड़ितों को जल्द राहत पहुंचाई जा सके।
हिमाचल को दस हजार करोड़, उत्तराखंड को 6-8 हजार करोड़ का नुकसान
रुड़की: डा. अजय चौरसिया के अनुसार हिमाचल में 2023 में आई आपदा के कारण वहां के पर्यटन को करीब दस हजार करोड़ रुपये का सालाना और उत्तराखंड को 2013 की आपदा के बाद करीब 6-8 हजार करोड़ रुपये सालाना नुकसान हुआ था। उनके अनुसार किसी भी प्रकार की आपदा का प्रभाव लंबे समय तक रहता है। इसलिए आपदाओं से होने वाले जान-माल के जोखिम को कम करने की दिशा में ठोस कदम उठाने की जरुरत है।
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