तनावमुक्ति-खुशी का पाठ पढ़ रहे IIT रुड़की के छात्र, प्रबंधन अध्ययन विभाग ने शुरू किया नया पाठ्यक्रम
भागादौड़ी के इस दौर में तनाव मुक्त एवं खुश रहना सबसे बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। हर क्षेत्र में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण तनाव जीवन का स्थायी भाव बन रहा है और सकारात्मकता की जगह नकारात्मकता हावी होती जा रही है। इसी को देखते हुए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की के प्रबंधन अध्ययन विभाग ने एक ऐसा पाठ्यक्रम शुरू किया है।

रीना डंडरियाल, रुड़की। भागादौड़ी के इस दौर में तनाव मुक्त एवं खुश रहना सबसे बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। हर क्षेत्र में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण तनाव जीवन का स्थायी भाव बन रहा है और सकारात्मकता की जगह नकारात्मकता हावी होती जा रही है।
इसी को देखते हुए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की के प्रबंधन अध्ययन विभाग ने एक ऐसा पाठ्यक्रम शुरू किया है, जो छात्र-छात्राओं को वैज्ञानिक तरीके से जीवन में खुश रहने के गुर सिखाता है। उन्हें बताता है कि खुशी एक विज्ञान है, जिसे अभ्यास से सीखा जा सकता है। इस पाठ्यक्रम को नाम दिया गया है ‘आशा: खुशी, आशावाद, उद्देश्य और सशक्तीकरण’।
इसके तहत एमबीए के छात्र-छात्राओं के लिए 1.5 क्रेडिट का कोर्स शुरू किया है। एक सेमेस्टर के इस कोर्स में प्रथम बैच में 50 छात्रों ने दाखिला लिया था। वहीं, वर्ष 2026 स बीटेक छात्रों के लिए भी पाठ्यक्रम शुरू करने की योजना है। इसके लिए विशेष कोर्स डिजाइन किया जा रहा है, ताकि तकनीकी पढ़ाई के साथ-साथ उनका भावनात्मक एवं मानसिक विकास भी हो सके।
आधुनिक जीवन शैली, अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा, शिक्षा व कैरियर में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़, बेरोजगारी, आपसी संबंध, पारिवारिक एवं सामाजिक जिम्मेदारी सहित तमाम ऐसी वजह हैं, जिनके कारण युवा वर्ग तनाव की चपेट में आ रहा है। सो, जरूरी है कि ऐसी मनोस्थिति पैदा ही न हो, जो तनाव का कारण बने और यदि चिंता बढ़ भी जाए तो सकारात्मक सोच के साथ विपरीत परिस्थितियों का समाधान निकाला जा सके। इसी सोच के साथ आइआइटी रुड़की ने बीते वर्ष रेखी फाउंडेशन फार हैप्पीनेस के साथ मिलकर प्रबंधन अध्ययन विभाग में ‘सेंटर फार द साइंस आफ हैप्पीनेस’ की स्थापना की।
संस्थान के प्रबंधन अध्ययन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर रजत अग्रवाल कहते हैं कि आधुनिक युग में विभिन्न कारणों से युवा पीढ़ी तनाव की चपेट में आ रही है। समाज में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जो नकारात्मक दृष्टिकोण है, उसी के चलते लगभग 20 प्रतिशत तनावग्रस्त लोग ही काउंसिलिंग के लिए विशेषज्ञों तक पहुंच पाते हैं। संस्थान में ‘हैप्पीनेस साइंस सेंटर’ की स्थापना का उद्देश्य है कि छात्र-छात्राओं के वेलनेस सेंटर में जाकर काउंसिलिंग लेने की ही नौबत न आए।
प्रो. अग्रवाल के अनुसार सेंटर के माध्यम से विज्ञान को बढ़ावा देने के साथ ही युवा पीढ़ी के बीच खुशी को बढ़ावा दिया जा रहा है। छात्रों का समग्र विकास कर आधुनिक जीवन के तनाव के बीच उन्हें सशक्त, सकारात्मक व भावनात्मक रूप से मजबूत और उद्देश्य से समृद्ध जीवन जीने में सक्षम बनाना है। साथ ही यह बताना कि खुशी एक विज्ञान है, इसे सीखा एवं इसका अभ्यास भी किया जा सकता है। बताया कि ‘हैप्पीनेस साइंस सेंटर’ की स्थापना के बाद एक कदम आगे बढ़ाते हुए एमबीए के छात्रों के लिए एक सेमेस्टर का 1.5 क्रेडिट का पाठ्यक्रम शुरू किया गया है। इसकी विशेषता उपचार से ज्यादा इसकी नौबत ही न आए, ऐसी स्थिति निर्मित करने की है। ...और जो व्याधिग्रस्त हो चुका है, उसके लिए उपचार भी बताता है।
संस्थान का उद्देश्य ऐसा मानव संसाधन तैयार करने का है, जो अपने पश्चातवर्ती जीवन में अपनी-अपनी जगह पर खुशहाल जिंदगी के रोल माडल बनें। प्रो. अग्रवाल ने बताया कि पहला बैच पासआउट हो चुका है। अगले वर्ष से बीटेक छात्रों के लिए भी यह कोर्स शुरू करने की योजना है। तीन क्रेडिट के इस कोर्स की समयावधि 42 घंटे होगी। लगभग 100 छात्र इसमें दाखिला ले सकेंगे।
पाठ्यक्रम की रूपरेखा
खुशी और कल्याण के विज्ञान का अवलोकन, खुशी के बारे में मिथक और गलत धारणाएं, खुशी पर माइंडफुलनेस और तंत्रिका विज्ञान का दृष्टिकोण, कल्याण में आशावाद और भावनात्मक बुद्धिमत्ता की भूमिका, भावनात्मक विनियमन, तनाव और प्रतिक्रियाशीलता, सकारात्मक हस्तक्षेप के माध्यम से खुशी का अभ्यास करना, प्रामाणिक जीवन और सशक्तीकरण, विश्वास, क्षमा और खुशी, लचीलेपन के विज्ञान को समझना, कैरियर, जीवन और खुशी, काम पर खुशी, नेतृत्व और खुशी, उपभोक्ता खुशी।
खुशहाल, संतुलित और अर्थपूर्ण जीवन जीने की समझ
हैप्पीनेस साइंस सेंटर के कोआर्डिनेटर डा. सौरभ अरोड़ा के अनुसार सेंटर में खुशी के विज्ञान की पढ़ाई के लिए विशेष पाठ्यक्रम तैयार किया गया है। इसका उद्देश्य छात्रों को एक खुशहाल, संतुलित और अर्थपूर्ण जीवन जीने की समझ देना है। इस कोर्स में सकारात्मक सोच, मानसिक सेहत, कार्य की संतुष्टि और जीवन के उद्देश्य जैसे विषयों पर ध्यान दिया जाता है। पढ़ाई के दौरान छात्र माइंडफुलनेस (सजगता), भावनाओं को समझना, तनाव से निपटना और जीवन में संतुलन बनाना जैसे जरूरी जीवन कौशल सीखते हैं। इसमें स्व-मूल्यांकन, केस स्टडी, छोटे अभ्यास और अनुभव साझा करने जैसे तरीके अपनाए जाते हैं। ताकि छात्र खुद को बेहतर समझ सकें और मानसिक रूप से मजबूत बन सकें। इस पहल को आगे बढ़ाने में प्रो. कल्पक कुलकर्णी, प्रो. संतोष रंगनेकर आदि का भी योगदान है।
अत्याधुनिक माइंड लैब होगी शुरू
डा. सौरभ अरोड़ा ने बताया कि जल्द एक अत्याधुनिक माइंड लैब शुरू की जाएगी, जो खुशी के विज्ञान के लिए उत्कृष्टता केंद्र के अंतर्गत प्रबंधन अध्ययन विभाग में स्थापित होगी। इसमें रेखी फाउंडेशन यूएसए का सहयोग होगा। यह लैब छात्र एवं शोधकर्ताओं को अनुभव और प्रयोग के जरिये खुशी व मानसिक भलाई को समझने का मौका देगी। माइंड लैब में वर्चुअल रियलिटी और आई-ट्रैकिंग लैब, जिससे भावनात्मक स्थिति को समझा और बदला जा सकेगा। बायोफीडबैक उपकरण, जो शरीर और मन की प्रतिक्रिया को मापेंगे। मनोवैज्ञानिक परीक्षण और आत्म-मूल्यांकन लैब, जिसमें छात्र अपने कल्याण से जुड़े अभ्यास कर सकेंगे।
शोध और आंकड़ों पर आधारित
प्रोफेसर रजत अग्रवाल के अनुसार आशा शीर्षक से प्रारंभ किया गया यह कोर्स शोध और आंकड़ों पर आधारित है। खुशी को सिर्फ भावना नहीं, बल्कि मापी जा सकने वाली चीज के रूप में समझा जाता है। छात्रों को सर्वेक्षण, प्रयोग और आत्मचिंतन के माध्यम से समझाया जाता है कि कौन-सी चीजें खुशी बढ़ाती या कम करती हैं। यह पाठ्यक्रम मनोविज्ञान, न्यूरोसाइंस और व्यवहार विज्ञान जैसे विषयों से जुड़ा है। बताया कि देश की अन्य आइआइटी में स्नातक छात्रों के लिए इस तरह के प्रयास करने पर अधिक जोर रहता है, जबकि आइआइटी रुड़की में शुरुआत में इस कोर्स के लिए स्नातकोत्तर एवं पीएचडी छात्रों को प्राथमिकता दी गई है। क्योंकि, भविष्य की चुनौतियों को लेकर उन पर अधिक दबाव होता है।
कोर्स कर आए सकरात्मक बदलाव
इस कोर्स के प्रथम बैच के छात्र शिवा गुप्ता ने बताया कि भावनाओं को नियंत्रित करने और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने में यह कोर्स मददगार है। पहले वह बिना कुछ सोचे-समझे प्रतिक्रिया दे देते थे, लेकिन अब स्पष्टता के साथ जवाब देते हैं। उनमें धैर्य आ गया है और शांत भी हो गए हैं। वे इस समय पुणे में एक आइटी कंपनी में जाब कर रहे हैं। कारपोरेट वर्ल्ड में यह कोर्स उनके लिए काफी फायदेमंद साबित होगा।
वहीं, सार्थक ने चेन्नई में एक आटो मोबाइल कंपनी में जाब शुरू की है। वे कहते हैं कि कालेज लाइफ में कई सारे इश्यू होते हैं। क्रोध, कुछ अधूरापन, प्रतिस्पर्धा जैसी कई बातें मन में चलती रहती हैं और कई बार तनाव की वजह बन जाती हैं। आइआइटी रुड़की ने हैप्पीनेस साइंस सेंटर में जो कोर्स शुरू किया है, वह इन सब भावनाओं के वैज्ञानिक कारण बताकर उनका समाधान करना सिखाता है। इस कोर्स से उनमें सकारात्मक बदलाव आए हैं।
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