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    IIT Roorkee ने गेहूं के भूसे से तैयार की डिस्पोजेबल प्लेट, इसलिए है ये खास

    Updated: Sun, 05 Oct 2025 02:37 PM (IST)

    आईआईटी रुड़की ने प्लास्टिक प्रदूषण और पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए गेहूं के भूसे से पर्यावरण-अनुकूल टेबलवेयर बनाया है। नवाचार प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करेगा और किसानों के लिए आय का नया स्रोत बनेगा। यह टेबलवेयर पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ-साथ टिकाऊ और स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित है। संस्थान का यह प्रयास स्वच्छ भारत मिशन और सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने में सहायक होगा।

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    आईआईटी रुड़की ने गेहूं के भूसे से पर्यावरण-अनुकूल टेबलवेयर बनाने का नवाचार किया. IIT Roorkee

    जागरण संवाददाता, रुड़की। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी ) रुड़की ने गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों के लिए स्थायी समाधानों के तहत गेहूं के भूसे से पर्यावरण अनुकूल टेबलवेयर का निर्माण किया है। इससे सिंगल यूज प्लास्टिक के प्रदूषण से निजात मिलेगी वहीं यह पर्यावरण के लिहाज से भी उपयोगी साबित होगा।

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    शादी विवाह समेत विभिन्न आयोजनों में डिस्पोजल प्लेट का इस्तेमाल किया जाता है। आज भी प्लास्टिक प्लेट का इस्तेमाल प्रतिबंध के बावजूद भी हो रहा है। इससे जहां पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। वहीं फसल अपशिष्ट को जलाने की व्यापक प्रथा से भारत में वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है।

    ऐसे में आईआईटी रुड़की के एक ऐसे टेबलवेयर का निर्माण किया है जोकि पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के अनुकूल है। गेहूँ के भूसे को ढाले हुए, बायोडिग्रेडेबल टेबलवेयर में बदलकर, टीम ने प्लास्टिक का एक सुरक्षित, कम्पोस्टेबल एवं टिकाऊ विकल्प तैयार किया है।

    "मिट्टी से मिट्टी तक"

    टिकाऊ, ऊष्मा-प्रतिरोधी व खाद्य-सुरक्षित, ये उत्पाद "मिट्टी से मिट्टी तक" के दर्शन को साकार करते हैं, जो धरती से उत्पन्न होते हैं, लोगों के काम आते हैं और बिना किसी नुकसान के मिट्टी में वापस मिल जाते हैं। संस्थान के काजग प्रौद्योगिकी विभाग के प्रो. विभोर के रस्तोगी ने बताया कि यह शोध दर्शाता है कि कैसे रोज़मर्रा की फसल के अवशेषों को उच्च-गुणवत्ता वाले, पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों में बदला जा सकता है।

    यह विज्ञान एवं इंजीनियरिंग की उस क्षमता को दर्शाता है जो पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित और आर्थिक रूप से व्यवहार्य समाधान प्रदान कर सकती है। उन्होंने बताया कि देश में हर साल 35 करोड़ टन से ज़्यादा कृषि अपशिष्ट उत्पन्न होता है। इसका एक बड़ा हिस्सा या तो जला दिया जाता है, जिससे वायु गुणवत्ता बिगड़ती है और जलवायु परिवर्तन में योगदान होता है, या सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है।

    गेहूं के भूसे का उन्नत उपयोग करके, यह शोध न केवल पर्यावरणीय नुकसान को कम करता है, बल्कि किसानों को आय का एक अतिरिक्त स्रोत भी प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि इस परियोजना में युचा शोधकर्ताओं का अहम योगदान है। जिसमें जैस्मीन कौर एवं डॉ. राहुल रंजन की अहम भूमिका है।

    उन्होंने कहा कि यह पहल स्वच्छ भारत मिशन, आत्मनिर्भर भारत और संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी), विशेष रूप से एसडीजी 12 (जिम्मेदार उपभोग और उत्पादन) और एसडीजी 13 (जलवायु कार्रवाई) के प्रति भारत की प्रतिबद्धता की दिशा में मिल का पत्थर शामिल होगा।

    संस्थान के निदेशक प्रो. कमल किशोर पंत ने कहा, "यह नवाचार समाज के लिए सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करने की आईआईटी रुड़की की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक का पर्यावरण-अनुकूल विकल्प प्रदान करके, साथ ही किसानों की आजीविका को बेहतर बनाकर, यह पहल दर्शाती है कि कैसे शोध स्वच्छ भारत, मेक इन इंडिया जैसे राष्ट्रीय अभियानों और स्थिरता लक्ष्यों की प्राप्ति में सीधे तौर पर सहायक हो सकता है।